Saturday 1 September 2012

क्या पाक ज्यूडिश्यरी सेना का खेल खेल रही है?


 Published on 1 September, 2012

अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान में जरदारी सरकार और वहां की सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई जारी है। सोमवार को पाक के नए प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ अदालत में पेश हुए। अशरफ को 18 सितम्बर को दोबारा सुप्रीम कोर्ट में पेश होना होगा। अशरफ ने सोमवार को राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से खोलने के लिए स्विस प्रशासन को पत्र लिखने के लिए अतिरिक्त मोहलत मांगी। डॉन अखबार के मुताबिक अशरफ (61) ने न्यायालय से अनुरोध किया कि स्विस प्रशासन को पत्र लिखने के लिए उन्हें चार से छह सप्ताह का अतिरिक्त वक्त दिया जाए। अशरफ के पूर्ववर्ती यूसुफ रजा गिलानी को न्यायालय ने इसी मामले में न्यायालय के आदेश को अस्वीकार करने के लिए अवमानना का दोषी पाया था और उन्हें अयोग्य करार दे दिया था। न्यायपालिका व कार्यपालिका में संघर्ष का इतिहास पाकिस्तान में लम्बा है। पाकिस्तान में जजों को बर्खास्त करने या इस्तीफा देने पर मजबूर किए जाने या उन्हें नजरबन्द करने का एक लम्बा इतिहास रहा है पर अब घड़ी की सूई उल्टी दिशा में घूमती प्रतीत हो रही है। अब सुप्रीम कोर्ट निर्वाचित प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर रहा है। गिलानी के बाद अब अशरफ पर भी सुप्रीम कोर्ट की तलवार लटक रही है। उनका भी हश्र गिलानी जैसा ही हो। कपड़ों की तरह प्रधानमंत्री बदलने का यह सिलसिला एक प्रकार से न्यायिक तख्ता पलट है। यूसुफ रजा गिलानी अपना कार्यकाल पूरा कर एक इतिहास रचने जा रहे थे किन्तु उन्हें सैनिक विद्रोह के कारण नहीं बल्कि न्यायिक आदेश पर पद छोड़ना पड़ा। अजीब विडम्बना है कि पाकिस्तान में अब सेना के अलावा सुप्रीम कोर्ट भी प्रधानमंत्रियों को पद से हटा सकती है। पाकिस्तानी सेना ने लगता है अपनी सरकारों को बदलने की प्रक्रिया बदल ली है। सीधा खुद उन्हें न हटाकर वह अपना काम अदालतों के जरिये करवा रही है। पाकिस्तान में न्यायपालिका शुरू से ही सैन्य शासकों की मुट्ठी में रही है। पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट पूरी दुनिया में अकेली ऐसी अदालत है जिसने सेना द्वारा तख्ता पलट जाने को भी आवश्यकता के सिद्धांत के तहत वैध ठहरा दिया था। आज यह संस्था अति आक्रामक होकर लोकतंत्र की हत्या करने पर आमादा है। अपने इस उद्देश्य को पूरा करने हेतु न तो उसे राष्ट्रपति की परवाह है और न ही चुनी हुई संसद की। मजेदार बात यह है कि पाकिस्तानी संविधान के अनुच्छेद 248(2) के अनुसार राष्ट्रपति या राज्यपाल के विरुद्ध कोई भी आपराधिक कार्यवाही किसी अदालत में उनके कार्यकाल के दरम्यान नहीं चलाई (या जारी रखी) जाएगी। इतने स्पष्ट संवैधानिक प्रावधान के बावजूद पाक सुप्रीम कोर्ट प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति के विरुद्ध फौजदारी मामले खोलने के  लिए स्विस अधिकारियों को लिखने का निर्देश दे रही है। भारत सहित अधिकतर देशों के संविधानों में मौजूद यह प्रावधान ब्रिटेन के इस न्याय सिद्धांत पर आधारित है कि राजा कुछ भी गलत नहीं कर सकता। इसके पीछे तर्प बिल्कुल स्पष्ट है कि यदि राष्ट्राध्यक्ष को आपराधिक मामले में अदालत के कठघरे में खड़ा होना पड़े तो व्यवस्था काम नहीं करेगी। अपनी अति-सक्रियता में पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने सेना का खेल खेल कर एक खतरनाक परम्परा शुरू कर दी है जिसका अन्त क्या होगा, कल्पना करना मुश्किल है।

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