Saturday 15 September 2012

भारतीयों की रग-रग में बसा है सोना


 Published on 15 September, 2012

अनिल नरेन्द्र

एक जमाना था जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। इसकी वजह थी भारत इतना सम्पन्न था कि दुनिया इसे सोने की चिड़िया कहती थी। सोने की चाह तो आज भी भारत में बहुत है। पता नहीं भारत में कितना सोना है? हर घर में खाने के लिए जरूरी सामान न हो पर सोने के आभूषण जरूर मिलेंगे। इसके पीछे एक कारण है सुरक्षा। बड़े बूढ़े कहते थे कि घर में सोना आड़े वक्त काम आता है। इसलिए भी सोने को बुरे वक्त के लिए इंश्योरेंस के तौर पर रखा जाता है पर सोने की मांग ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। सोना 32 हजार रुपए की ऊंचाई पर चढ़ बैठा है। सोना रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बनाते हुए रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। विदेश में भड़की तेजी देख राष्ट्रीय राजधानी के सर्राफा बाजार में शनिवार को सोना 32 हजार 450 रुपए प्रति 10 ग्राम के नए शिखर पर पहुंच गया। इसी तरह चांदी 2100 रुपए छलांग लगाकर 61 हजार 800 रुपए प्रति किलो  हो गई। बढ़ती मुद्रास्फीति दर से अपने धन को सुरक्षित रखने के मकसद से निवेशक सोने की खरीद पर टूट पड़े हैं। नतीजतन न्यूयॉर्प के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पीली धातु 34 डॉलर उछल गई। यह इस साल फरवरी के बाद से इसमें आया सबसे बड़ा उछाल है। घरेलू बाजार भी पूरी तरह इस तेजी के बहाव में बह रहा है। आगे दामों के और ऊपर जाने की आशंका में आगामी त्यौहारी सीजन के लिए स्टॉकिस्ट पहले से ही स्टॉक जमा करने में जुट गए हैं। ऐसा क्या है सोने में? माना कि दुर्लभ है पर इतनी भी नहीं जितनी सत्ताधारियों में ईमानदारी है। वे सोना पचा भले लेते हैं पर सोने के बिस्कुट चाय में डुबाकर खा नहीं सकते। सोने के पलंग पर सुनहरे सपने आएंगे, यह भी जरूरी नहीं। अकसर खलनायकों के दांतों में दमकने वाले सोने की बत्तीसी क्यों खिली है? दत कथाओं में यूनानी राजा मिडप्स को यह वरदान था कि वो जिस चीज को छूता वह सोने की हो जाती। यह मरा वह भूख से ही। उम्र ज्यादा होने पर चाहते हुए भी मनपसंद व्यंजन को हाथ नहीं लगा पाते। भारतवर्ष में मर्यादा पुरुषोत्तम की अयोध्या उनके खड़ाओं पर खड़ी रही और सोने की लंका चरमरा कर गिर गई। इतिहास की पंक्ति है भारत सोने की चिड़िया होता था। लाजिम है तैमूर लंगड़े से लेकर नादिर शाह तक बहेलिए इसकी तलाश में आते। बहुत खून बहाते और लूट ले जाते। सोने के मंदिर, सोने की मूर्तियां, आभूषण और सोने की जंजीरें। दुनिया के कुल घरेलू उत्पाद में हमारी हिस्सेदारी पांच प्रतिशत है पर सोने की खपत 25 प्रतिशत है। खस्ता आर्थिक हालत होने के बाद भी पिछले साल भारत ने 1067 टन सोना खरीदा। डॉलर के सामने हमारी दमड़ी की चमड़ी निकल गई। अर्थशास्त्राr कहते हैं कि जब-जब अर्थ संकट गहराता है, लोगों का कागज के नोटों पर भरोसा घट जाता है और सोने का सिक्का मनपसंद बन जाता है। आयातित 1067 टन में 720 टन हमने पहन लिए, बाकि लॉकर में बन्द हैं। निवेश जो दाम में बढ़ता है, काम में नहीं। कमरबन्द का सोना किसी को रोजगार नहीं देता। जमीन से निकलने वाला हर एक टन सोना एक आदमी निगल लेता है और दर्जनभर को अपाहिज कर देता है। इन सब के बावजूद भारत में सोने की मांग लगातार बढ़ती जा रही है और इसी का नतीजा है कि सोना आज तीस हजारी हो गया है। मजेदार बात यह है कि यह कीमत कहां ठहरेगी, यह आज कोई नहीं बता सकता।

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