Published on 26 September, 2012
पाकिस्तान में अमेरिका में बनी एक फिल्म पर जिस तरह बवाल मचा हुआ है उसकी वजह से पहले से ही अस्थिर देश की स्थिति और ज्यादा गम्भीर हो गई है। हालत यहां तक पहुंच गई कि इस्लामाबाद में विदेशी दूतावास जिस इलाके में हैं, उसकी रक्षा के लिए सेना को बुलाना पड़ा। दुखद पहलू यह है कि तमाम सियासी जमातों ने मौके का सियासी फायदा उठाने में कसर नहीं छोड़ी। हद तो तब हो गई जब पाकिस्तान के एक संघीय मंत्री ने इस इस्लाम विरोधी फिल्म बनाने वाले निर्माता की हत्या करने वाले को एक लाख डॉलर देने की घोषणा कर दी। रेल मंत्री गुलाम अहमद बिलौर ने शनिवार को कहा कि यह इनाम फिल्म निर्माता की हत्या करने वाले को दिया जाएगा। उन्होंने दलील दी कि विरोध प्रदर्शित करने और ईशनिन्दा करने वालों में भय पैदा करने के लिए फिल्मकार की हत्या के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने इसके साथ ही यह कहते हुए प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों तालिबान और अलकायदा से भी अपना समर्थन करने का आह्वान किया कि यदि वह ईशनिन्दा फिल्म के निर्माता को मार दें तो उन्हें भी पुरस्कृत किया जाएगा। बिलौर ने यह घोषणा पेशावर में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में की। इस बयान ने पहले से जलती स्थिति में घी का काम किया। पाकिस्तान सरकार ने रेल मंत्री के इस बयान से खुद को अलग करने का प्रयास किया है। सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि मंत्री की टिप्पणी से हम खुद को अलग करते हैं। प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ के कार्यालय (पीएमओ) की ओर से कहा गया है कि बिलौर के बयान से सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। उधर अमेरिकी विदेशी विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि राष्ट्रपति और विदेश मंत्री दोनों का मानना है कि यह वीडियो अपमानजनक, घृणित और निन्दनीय है, लेकिन इससे हिंसा को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है। यह जरूरी है कि जिम्मेदार नेता हिंसा के खिलाफ खड़े हों और बोलें। बयान में इस अधिकारी ने कहा कि हमने इस बात पर भी ध्यान दिया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने बिलौर की इस घोषणा से खुद को अलग कर लिया है। मुस्लिम विरोधी इस फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान आतंकवाद, लूटपाट और हत्या के प्रयास के मामले में पाक पुलिस ने 6000 से भी अधिक अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। लाहौर पुलिस के प्रवक्ता ने बताया कि 36 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं जरदारी सरकार ने विरोध प्रदर्शन को हवा दी ताकि लोगों का ध्यान और ज्वलंत मुद्दों और सरकार की नाकामी से हटाया जा सके। अगले आम चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं और जरदारी सरकार की अलोकप्रियता चरम पर है। सरकार धार्मिक कार्ड खेल कर कुछ लोकप्रियता भी हासिल करना चाहती है, भले ही इस कोशिश में स्थिति ज्यादा बिगड़े। जब सरकार, विपक्ष, सेना सभी पक्ष धार्मिक मुद्दों को हवा देंगे तो जाहिर है कि हिंसक भीड़ को प्रोत्साहन मिलेगा। अगर अमेरिका विरोधी लहर और तेज होती है तो यह सरकार के लिए एक बड़ी समस्या बन जाएगी। तमाम उग्रवादी संगठन पाकिस्तान सरकार पर अमेरिका का साथ देने का दबाव बना रहे हैं। पाकिस्तान में इस इस्लाम विरोधी फिल्म `इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स' को लेकर शुक्रवार को हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद बहस छिड़ गई है। इस फिल्म के खिलाफ पाक सरकार ने प्रदर्शनों को मंजूरी दी थी। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेतृत्व वाली सरकार ने शुक्रवार को पैगम्बर प्रेम दिवस का आयोजन किया था ताकि धार्मिक और कट्टरपंथी संगठनों के हिंसक विरोधी प्रदर्शनों को रोका जा सके। जानकारों का कहना है कि सरकार पूरी स्थिति का आंकलन करने में नाकाम रही। समाचार पत्र `द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' के सम्पादक उमर आर कुरैशी ने सम्पादकीय में लिखा कि सरकार ने सोचा था कि वह धार्मिक संगठनों को अलग-थलग कर लेगी, लेकिन आखिर में उसने इन संगठनों को प्रोत्साहित करने का काम किया। कुरैशी की तरह पाकिस्तान के कई अन्य टिप्पणीकारों का मानना है कि सरकार ने एक संवेदनशील मुद्दे पर कट्टरपंथी संगठनों को आगे बढ़ने का मौका दिया।
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