Saturday 8 September 2012

कोयला आवंटन रद्द करने में कांग्रेस को मुश्किलें?



 Published on 8 September, 2012

अनिल नरेन्द्र

कोयला ब्लॉक आवंटन में भारी घपलेबाजी धीरे-धीरे साबित होती जा रही है। स्वयं भारत सरकार के कोयला मंत्रालय का अनुमान है कि प्रतिस्पर्धी बोलियां मंगाए बिना आवंटित 60 कोयला खदानों की आवंटी कम्पनियों को 1.97 लाख करोड़ का फायदा पहुंचा है। कोयला मंत्रालय ने यह बात ऐसे समय में कही है जब सरकार उन कोयला खदान आवंटियों के खिलाफ कार्रवाई पर विचार कर रही है जहां अब तक उत्पादन शुरू करने के मामले में काफी कम काम हुआ है। वर्ष 1998 से 2009 के बीच निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को बिना प्रतिस्पर्धा बोली के 60 कोयला खदान आवंटित किए गए। इन 60 खदानों में से सात का आवंटन 1998 से 2004 के बीच भाजपा नीत राजग सरकार के समय हुआ। भाजपा का कहना है कि सीबीआई द्वारा कई स्थानों पर की जा रही छापेमारी से साफ हो गया है कि कोयला आवंटन में धांधली हुई जिसके लिए संप्रग सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सीधे जिम्मेदार हैं। उधर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साफ कह दिया है कि कोल आवंटन रद्द नहीं होगा। भाजपा व वाम मोर्चा दोनों मांग कर रहे हैं कि इतना कुछ जाहिर होने पर भी सरकार आवंटन को रद्द क्यों नहीं कर रही? सीबीआई ने कुछ जगह छापे मारे हैं। इस पर भी विवाद शुरू हो गया है। कोयला ब्लॉक आवंटन में सीबीआई के छापे में फिक्सिंग का आरोप लग रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने वाले अरविन्द केजरीवाल ने कहा है कि कम्पनियों की सीबीआई की रेड की सूचना पहले ही दे दी गई थी। उन्होंने ट्विटर पर कहा कि जिन कम्पनियों पर आरोप लगे हैं उन्हें दो दिन पहले ही छापों के बारे में बता दिया गया था और उनसे कहा गया था कि वे सारे दस्तावेज हटा लें। केजरीवाल ने दावा किया है कि उन्हें एक ऐसे अधिकारी का मेल मिला है जिसकी कम्पनी पर सीबीआई ने छापा मारा था। उन्होंने सवाल उठाया है कि क्या सीबीआई छापे दिखावा हैं? सीबीआई ने केजरीवाल के आरोपों का खंडन किया है। सीबीआई द्वारा मारे गए छापों में कई दिलचस्प बातें सामने आई हैं। सीबीआई ने मंगलवार को पांच कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई की। जांच में सामने आया कि इनमें तीन कम्पनियों के नाम भले ही अलग हों, लेकिन उनके मालिक एक ही हैं। इन सूत्रों का कहना है कि एफआईआर में शामिल पांचों कम्पनियों ने बड़े पैमाने पर अनियमितताएं तो बरतीं साथ ही कोल ब्लॉक पाने के लिए अपनी-अपनी कम्पनियों का मूल्य पूंजी फर्जी दस्तावेज लगाकर कई गुना अधिक दिखाई। विनी आयरन एण्ड स्टील ने कोल ब्लॉक के लिए आवेदन किया तो दस्तावेजों में कहा कि उनके साथ 15 कम्पनियों का सपोर्ट है। लेकिन जांच में पता चला कि नौ कम्पनियों का विनी आयरन एण्ड स्टील कम्पनी के साथ किसी तरह का कोई रिश्ता ही नहीं था। हैदराबाद की नवभारत पॉवर प्राइवेट लिमिटेड ने अपनी बैलेंसशीट भी गलत पेश की। इस कम्पनी के डायरेक्टर ने अपनी कम्पनी के 85 करोड़ के शेयर एसआर ग्रुप को बेच दिए थे। विपक्षी दलों के जबरदस्त दबाव के कारण केंद्र सरकार के सामने आवंटित किए गए कोल ब्लॉक आवंटन को रद्द करने का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। कांग्रेस के लिए खतरे की बात तो यह है कि यदि वे आवंटन रद्द करती है तो उसकी साख पर और गहरा धब्बा लगेगा। 2जी आवंटन रद्द होने के बाद यदि कोयला आवंटन भी रद्द हो गए तो सरकार की बची-खुची साख मिट्टी में मिल जाएगी जिसके कारण न केवल सरकारी क्षेत्र में उसके लिए निवेशकों का अकाल पड़ जाएगा बल्कि बाजार में तेजी से गिरावट आ जाएगी जिसे बर्दाश्त करने की स्थिति में फिलहाल यह सरकार नहीं है। इतना ही नहीं, जिन कम्पनियों को ये कोयला खदानें दी गई हैं वे सरकार की पोल-पट्टी खोल सकती हैं। एक चौंकाने वाला पक्ष यह भी है कि ज्यादातर कम्पनियों ने इन खदानों से कोयला निकालने में होने वाले खर्च का 70 फीसदी पैसा सरकारी बैंकों से ब्याज पर लिया है। ऐसे में बैंकों का पैसा डूबने की हालत में आ जाएगी जिससे सरकार पर बेहद दबाव बढ़ जाएगा। एक और खतरा जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और व्यावहारिक है वह है कांग्रेस को मिलने वाली चुनावी फंड का। विपक्षी पार्टियों के मुताबिक जिन कम्पनियों को ये कोयला खदानें सरकार से एकदम मुफ्त में मिली हैं उसकी एवज में कांग्रेस और संबंधित मंत्रियों को मोटा पैसा मिला है। अब अगर सौदा रद्द होता है तो यह कम्पनियां अपना चन्दा वापस मांगेंगी, नहीं देने पर ये मंत्रियों की बदनामी कर सकती हैं। साथ ही कांग्रेस को मिलने वाले चुनावी चन्दे पर भी जबरदस्त विपरीत असर पड़ सकता है। बुरी फंसी कांग्रेस के लिए इधर कुआं तो उधर खाई।



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