Sunday, 23 September 2012

राजधानी में बढ़ता सेंसलेस किलिंग का यह दौर चिंता का विषय है


 Published on 23 September, 2012
 अनिल नरेन्द्र
राजधानी में एक बार फिर हत्याओं के दौर ने चिंता पैदा कर दी है। एक तरफा प्रेम, अवैध संबंध व सनक के चलते बढ़ती और कभी-कभी बिल्कुल बेतुकी हत्याओं व आत्महत्या का दौर कम ही देखा गया है। 3 सितम्बर को एक सिरफिरे आशिक रवि ने बिंदापुर और गाजियाबाद में एक के बाद एक 5 हत्याओं को अंजाम दिया और इसके बाद खुद को गोली मार ली। 7 सितम्बर को स्वरूप नगर में दो दोस्तों मनीष व राजबीर ने प्यार की नाकामी व पारिवारिक कलह से परेशान होकर 5 लोगों को गोली मारने के बाद खुद को गोली से उड़ा लिया। दो दिन पहले दिल्ली पुलिस के एक कांस्टेबल विजय कुमार (24) को जब लगा कि उसकी बहन की नौ साल पहले दहेज हत्या में उसे अदालत से इंसाफ नहीं मिलता दिख रहा तो उसने अपनी सरकारी पिस्टल से बाहरी दिल्ली के अलीपुर फार्म हाउस इलाके में अपने बहनोई मनोज कुमार (36) व उसकी मां प्रकाश देवी (62) पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दोनों की हत्या कर दी। बाहरी दिल्ली के रोहिणी सेक्टर-17 इलाके में एक बदमाश ने घर में घुसकर कारोबारी, उसकी पत्नी व बेटी की धारदार हथियार से गला रेत कर हत्या कर दी। तीनों को उसी दिन वैष्णो देवी तीर्थ यात्रा पर जाना था पर सबसे दुखद हादसा सर गंगा राम अस्पताल के डाक्टर संजीव धवन की हत्या का है। न्यू राजेन्द्र नगर में नौकरानी के प्रेम में पागल पूर्व फौजी ने वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. संजीव धवन (57) की गोली मारकर हत्या कर दी। डॉ. धवन अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ कार्डियोलाजी के वाइस चेयरमैन थे। डॉ. धवन ने अपने 20 साल के केरियर में करीब पांच सौ लोगों की जिंदगी बचाई थी। इनमें 15 जिंदगियां तो ऐसे डाक्टरों की हैं जो आज सैकड़ों लोगों को बचा रहे हैं। डॉ. संजीव तो अपनी मौत के बाद भी लोगों को जीवन देना चाहते थे। उनकी इच्छा थी अंग दान की लेकिन दिल में गोली लगने से उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। ऐसे काबिल व्यक्ति जिसने सैकड़ों जानें बचाई हों और भविष्य में बचानी हों उसे मारना कितना बड़ा पाप है। डॉ. भगवान का रूप होता है। उसे ही पागल प्रेमी ने अपनी जलन का शिकार बना दिया? इस हत्या पर स्तब्ध होना स्वाभाविक ही है। सितम्बर में ही इस तरह से करीब 10 मामले सामने आ चुके हैं। ये घटनाएं दर्शाती हैं कि राजधानी में सहिष्णुता की कितनी कमी आ चुकी है। रिश्तों के बिगड़े ताने-बाने से किस तरह समाज में बिखराव की स्थिति पैदा हो गई है। तुनकमिजाजी एकतरफा प्रेम व नाकामी के चलते खुद से नफरत करने लगते हैं। इस तरह की स्थिति पूरे समाज के ढांचे को प्रभावित कर रही है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार पारिवारिक दूरियां, अधिक तनाव, काउंसलिंग की कमी व एकाकीपन इसका प्रमुख कारण बन रहा है। इन सब का एक परिणाम यह हो रहा है कि हमारी सहनशीलता, नैतिक मूल्यों में लगातार गिरावट आ रही है। एकल परिवारों का चलन, उपभोक्तावाद, जल्दी से सब कुछ पाने की ललक एवं तेज भागती जिंदगी में बढ़ती हताशा इस सेंसलेस हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं। फिर आसानी से हथियारों का मिलना, फिल्मों में बढ़ती हिंसा भी युवकों को अपराध की गर्त में ले जा रहे हैं। अपराध का यह स्वरूप पूरे समाज के लिए चुनौती है, महज पुलिस और बिगड़ती कानून व्यवस्था के लिए नहीं।

No comments:

Post a Comment