Published on 4 September, 2012
अनिल नरेन्द्र
सुप्रीम कोर्ट ने सहारा ग्रुप को करारा झटका दिया है। अदालत ने समूह की दो कम्पनियों को निवेशकों से जुटाई गई 17,400 करोड़ रुपए की राशि ब्याज समेत लौटाने के आदेश दिए। कम्पनी को 15 फीसदी ब्याज के साथ तीन महीने में निवेशकों को उनका धन वापस लौटाने को कहा गया है। गौरतलब है कि सहारा समूह की दोनों कम्पनियों ने 2008-09 में बाजार में निवेशकों के लिए एक स्कीम लाकर यह धन जुटाया था। सेबी ने नियमों के उल्लंघन की वजह से दोनों कम्पनियों को पैसा लौटाने को कहा था। इस आदेश के खिलाफ सहारा समूह ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट ने सेबी के पक्ष में फैसला दिया जिसके बाद मामला शीर्षस्थ अदालत में पहुंचा। जस्टिस केएस राधाकृष्णन व जस्टिस जेएस खेहर की पीठ ने सेबी को निर्देश दिया है कि यदि सहारा समूह की कम्पनियां सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कारपोरेशन और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन निवेशकों का पैसा लौटाने में विफल रहता हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए। आदेश का अनुपालन नहीं करने पर सेबी से इन कम्पनियों की सम्पत्ति जब्त करने और बैंक खातों को सील करने को कहा गया है। शीर्षस्थ अदालत ने सेबी को इन कम्पनियों के खिलाफ जांच करने और उनके वास्तविक ग्राहक आधार का पता लगाने व अन्य संबंधित सूचनाएं जुटाने का भी निर्देश दिया है। पीठ ने इन कम्पनियों को अपने सभी दस्तावेज और खातों का ब्यौरा सेबी के पास जमा करने का भी निर्देश दिया है, साथ ही दोनों कम्पनियों के खिलाफ सेबी की जांच की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीएन अग्रवाल को नियुक्त किया है। अदालत ने 14 जून को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इससे पहले नौ जनवरी को अदालत ने सैट के आदेश पर स्थगन देते हुए सहारा समूह की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली थी। अपनी याचिका में सहारा समूह ने कहा था कि उसके पास निवेशकों के हितों के संरक्षण के लिए पर्याप्त सम्पत्तियां हैं। इससे पहले समूह ने अदालत को बताया था कि उसने हलफनामा देकर यह स्पष्ट किया है कि वह इन दोनों कम्पनियों में धन लगाने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करेगा। शीर्ष अदालत ने 28 नवम्बर 2011 को दोनों कम्पनियों से 2010-11 की अपनी बैलेंसशीट के नवम्बर 2011 में हुए लेन-देन का ब्यौरा पेश करने को कहा था, साथ ही उसने सहारा की याचिका पर केंद्र सरकार और सेबी को नोटिस जारी किया था। सैट का निर्देश सहारा समूह की सेबी के जून 2011 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर आया था। इसमें समूह की दोनों कम्पनियों को नियामक निदेशकों के उल्लंघन के लिए ओएफसीडी के जरिए निवेशकों से जुटाए गए धन को लौटाने का निर्देश दिया था। शेयर बाजार से धन जुटाने पर भी रोक लगा दी थी। दोनों कम्पनियों के प्रवर्तकों सुब्रत रॉय और निदेशकों वन्दना भार्गव, रविशंकर दुबे और अशोक राम चौधरी को संयुक्त रूप से यह राशि लौटानी होगी। सहारा समूह देश में तेजी से उभरता औद्योगिक समूह है। खेलों के क्षेत्र और होटल व्यवसाय में समूह ने बहुत नाम कमाया है। समूह के मुखिया सुब्रत रॉय आज देश की जानी-मानी हस्तियों में से एक हैं। मीडिया जगत में भी समूह ने तेजी से एंट्री की है। इस केस पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। सभी उत्सुक हैं कि आखिर असलियत क्या है? पाठकों को हम बताना चाहेंगे कि मामला है क्या। सहारा समूह ने रिटेल एस्टेट में निवेश करने के नाम पर 2.3 करोड़ निवेशकों से वैकल्पिक पूर्ण परिवर्तनीय एण्ड बेयर (ओएफसीडी) के जरिए 17,400 करोड़ रुपए की राशि जुटाई थी। लेकिन जब कोर्ट ने पूछा कि इस राशि को वह कहां और किस तरह निवेश करेगा तो सहारा ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। समूह का कहना था कि निवेशकों के हितों के संरक्षण के लिए उसके पास पर्याप्त परिसम्पत्तियां हैं। लेकिन प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधीश, सैट इससे संतुष्ट नहीं हुआ और उसने जून 2011 में आदेश देकर कम्पनी में निवेश करने वाले लोगों को पैसा लौटाने का आदेश दिया। इस आदेश को सहारा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। अदालत के फैसले के बाद सहारा समूह आजकल बड़े-बड़े विज्ञापन देकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर रहा है। यही स्पष्टीकरण उसे सुप्रीम कोर्ट में देना चाहिए था तो इस स्थिति से शायद बच जाता पर जाहिर है कि स्पष्टीकरण से सुप्रीम कोर्ट संतुष्ट नहीं है।
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