Sunday 16 September 2012

कोयला घोटाले से ध्यान हटाने और निक्रियता का दाग मिटाने के लिए उठाए कदम


 Published on 16 September, 2012

 अनिल नरेन्द्र

  
हमें लगता है कि मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस पार्टी ने अब यह फैसला कर लिया है कि वह  बिना किसी की परवाह किए सारे कदम उठाएंगे जो उन्हें जरूरी लगते हैं और वह कई कारणवश उठा नहीं पा रहे थे। पहले डीजल की कीमत में वृद्धि, अगले दिन रिटेल में एफडीआई का फैसला। आपको क्या लगता है कि डीजल और एलपीजी की कीमतों में वृद्धि करने के पब्लिक रिएक्शन से सरकार और कांग्रेस परिचित नहीं थी? क्या उसे मालूम नहीं था कि इससे पब्लिक में हायतोबा मच जाएगी? उसे मालूम था पर फिर भी उसने ऐसा किया। क्यों? हमें लगता है कि इसके पीछे एक बहुत बड़ा उद्देश्य सरकार का और कांग्रेस पार्टी का कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले पर लगी आग से पब्लिक का ध्यान हटाना था। ध्यान हटाने के लिए जरूरी था कि कोई ऐसा कदम उठाया जाए जिससे जनता नए मुद्दे से घिर जाए और कोयला घोटाले को भूल जाए। इस सरकार पर निक्रियता का बहुत बड़ा आरोप लग रहा था। तमाम देशी-विदेशी मीडिया खुलकर कहने लगा कि यह सरकार बिल्कुल पंगु हो चुकी है और आगे बढ़ने की इसमें न तो कोई इच्छाशक्ति बची है और न ही साहस। प्रधानमंत्री नाकारा हो चुके हैं। नीतिगत निक्रियता के आरोपों को उखाड़ने के लिए मनमोहन सरकार ने पहले डीजल और एलपीजी में आग लगा दी और उस आग में घी डालने के लिए रिटेल में एफडीआई का फैसला कर लिया। इस तरह से आर्थिक सुधारों की रफ्तार बढ़ाने के लिए सख्त संकेत देने के साथ-साथ सरकार अब कुछ और कड़े फैसले लेने के लिए कमर कस चुकी है। डीजल और रसोई गैस के झटके से विपक्ष ही नहीं यूपीए के कई घटकों को भी फैसला नागवार लगा है। खासतौर पर तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को पर इनके विरोध प्रतीकात्मक लगते हैं, ड्रामा लगते हैं। क्या ममता को यह नहीं मालूम था कि राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीपीए) की बैठक में डीजल और एलपीजी के दाम बढ़ाने का फैसला लिया जाएगा? क्योंकि बैठक का एजेंडा ममता को भी भेजा गया था। इसके बावजूद ममता ने दाम बढ़ाने का आरोप सरकार पर लगाया है कि उसने फैसले से पहले उन्हें विश्वास में नहीं लिया। ममता के इस बयान पर भरोसा करना मुश्किल हो गया है। जाहिर है कि मनमोहन सरकार आर्थिक सुस्ती को तोड़कर टूटते बाजार को सहारा देने की आखिरी कोशिश कर रही है। माना जा रहा है कि बाजार की हालत देखते हुए सरकार ने सहयोगियों को थोड़ा भरोसे में लेते हुए उनके विरोध को बर्दाश्त करने का भी फैसला ले लिया है। चाहे वह ममता हों, चाहे मुलायम या करुणानिधि, सभी ने दिखावे के लिए विरोध किया है। इनके तेवरों में कोई तल्खी नहीं है। सरकार और कांग्रेस इस बात से भलीभांति परिचित थी कि डीजल व एलपीजी पर हायतोबा मचेगी। इसका एक सबूत है मंगलवार को प्रधानमंत्री निवास पर हुई कोर ग्रुप की वह महत्वपूर्ण बैठक जिसमें यह फैसला किया गया। कोर ग्रुप की बैठक में सोनिया, मनमोहन के अलावा कोर ग्रुप के स्थाई सदस्य एके एंटनी, सुशील कुमार शिंदे, पी. चिदम्बरम और सोनिया के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल के अलावा पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी विशेष रूप से बुलाए गए थे। बताते हैं कि रक्षा मंत्री एके एंटनी ने वृद्धि का न केवल खुलकर विरोध किया बल्कि सरकार की बिगड़ती छवि पर जमकर प्रहार किए और सोनिया-मनमोहन चुपचाप सुनते रहे पर अन्त में समूह ने किया वही जो पहले से तय था। कोर ग्रुप की बैठक में डीजल और एलपीजी के दाम बढ़ाने के फैसले को टालने के लिए एंटनी ने सबसे ज्यादा दबाव बनाया था। एंटनी ने यह पहल की तो गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे सहित कई नेताओं ने इसका जोरदार समर्थन किया पर प्रधानमंत्री, जयपाल रेड्डी और पी. चिदम्बरम जो कीमतें बढ़ाने की वकालत जोर-शोर से कर रहे थे अन्त में हावी रहे और दाम बढ़ा दिए गए। हमें तो अब लगता है कि यह सरकार पूरी तरह हताश हो चुकी है और `करो या  मरो' की नीति पर उतर आई है। सम्भव है कि आने वाले दिनों में सरकार और कड़े फैसले करे।

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