Wednesday 12 September 2012

और अब दिल्लीवासियों को बिजली का झटका


 Published on 12 September, 2012

अनिल नरेन्द्र

राजधानी वासी बिजली के बिलों से परेशान हैं, उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि यह हो क्या रहा है? हर कोई बिजली की खपत कम करने की कोशिश कर रहा है। बावजूद उसके बिजली का करंट बढ़ता जा रहा है। बिजली कम्पनियों के `पावर गेम' की वजह से उपभोक्ता को कम बिजली खर्च करने पर भी ज्यादा बिल अदा करना पड़ा रहा है और आज के जमाने में  बिजली के बिना गुजारा भी नहीं। सब कुछ तो बिजली पर चलता है। कम करो भी तो क्या? बिजली टैरिफ के मुताबिक अगर आप एक महीने में 200 यूनिट से कम बिजली खर्च करेंगे तो प्रति यूनिट 3.70 रुपए देने होंगे और इसमें सरकार हर यूनिट पर एक रुपए की सब्सिडी भी देती है। लेकिन अगर खर्च 200 यूनिट से ज्यादा है और 400 यूनिट से कम है तो प्रति यूनिट 4.80 रुपए और इससे ज्यादा बिजली खर्च करने पर प्रति यूनिट 6.40 रुपए देने होंगे। लेकिन बिल दो महीने का एक साथ आता है। अगर आपने एक महीने में 195 यूनिट बिजली खर्च की है और दूसरे महीने में 290 यूनिट तब भी आपको पहले महीने की यूनिट के लिए भी 4.80 रुपए चुकाने पड़ रहे हैं क्योंकि दो महीने की कुल यूनिट 485 है, जिससे बिजली कम्पनी हर महीने 242 यूनिट मानकर वसूली करती है। आरडब्ल्यूए प्रतिनिधियों के अनुसार अगर हर उपभोक्ता से अगर 50 रुपए भी ज्यादा वसूला जा रहा है तो 25 लाख उपभोक्ताओं से कम्पनियां 10-15 करोड़ रुपए एक्स्ट्रा ले रही है। यह रिटेल लूट कर होल सेल फायदा जैसा है। कम्पनियों के पास ऐसी तकनीक है कि वह हर दिन खर्च हुई बिजली का हिसाब दे सके, लेकिन जानबूझ कर ऐसा नहीं किया जा रहा। मोबाइल कम्पनियां जिस तरह आइटमाइज्ड बिल देती हैं, उसी तरह बिजली कम्पनियों को भी बिल देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अभी जून के कम टैरिफ की बिजली भी जुलाई की महंगे टैरिफ के साथ जोड़ी जा रही है। ऐसे ही बिजली कम्पनियां हेराफेरी करती हैं। ईस्ट दिल्ली आरडब्ल्यूए फैडरेशन के प्रेजीडेंट अनिल वाजपेयी ने कहा कि कम्पनियों को हर कंज्यूमर को उसके बिल का पूरा हिसाब देना चाहिए। कम्पनियां कंज्यूमर को स्लैब के चक्कर में उलझाकर मोटा मुनाफा कमा रही हैं। दिल्ली में बिजली की दरें बढ़ाए जाने के बाद वितरण कम्पनियों द्वारा भारी-भरकम राशि के बिल भेजे जाने से जहां बिजली उपभोक्ता परेशान हैं वहीं भाजपा और कांग्रेस के विधायक भी कम परेशान नहीं होंगे। चुनावी वर्ष होने के चलते उन्हें यह डर सताने लगा है कि कहीं यह मुद्दा चुनाव पर भारी न पड़ जाए। भाजपा विधायक जहां बिजली वितरण कम्पनियों का खुलकर विरोध कर रहे हैं वहीं कांग्रेस के विधायक दबी जुबान से बिजली कम्पनियों की मनमानी से परेशान हैं। कांग्रेसी विधायकों ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी की है। विधायकों का कहना था कि कम्पनियों द्वारा बिजली दरों के टैरिफ प्लान में जो परिवर्तन किया है उससे दिक्कत हो रही है। पहले जो स्लैब स्तर पर बिल भेजा जाता था उसे समाप्त कर दिया गया है। पहली 200 यूनिट खर्च होने और उसके बाद की यूनिट आने पर सभी यूनिटों का बिल बढ़ी दरों से वसूला जा रहा है। विधायकों का सुझाव था कि बिल पहले की तरह स्लैब वाइज भेजे जाएं तथा 200 यूनिट की संख्या बढ़ाई जाए ताकि लोगों को ज्यादा परेशानी न हो। इधर उपभोक्ता परेशान हैं अगर वह भुगतान नहीं करते तो मरते हैं और करते हैं तो उनका सारा बजट बिगड़ जाता है।

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