Sunday 16 September 2012

अगर देवगौड़ा प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो मैं क्यों नहीं?


 Published on 16 September, 2012

  अनिल नरेन्द्र

यह कहना है समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का। समाजवादी पार्टी की कोलकाता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिनों तक चली  बैठक के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा कि तीसरे मोर्चे का गठन चुनाव बाद होगा, साथ ही उन्होंने यह कहकर सनसनी फैला दी कि जब देवगौड़ा प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो वह क्यों नहीं, लेकिन पार्टी इस बात का प्रचार नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि वे राजनीति में हैं और राजनीति कर रहे हैं, कोई साधु-संत नहीं हैं और राजनीति में कुछ भी सम्भव है। समाजवादी पार्टी ने कोलकाता में आयोजित अपने राष्ट्रीय सम्मेलन के जरिए सियासी तबके को अपनी हैसियत का अहसास कराने की कोशिश की है। अपना सम्मेलन उत्तर प्रदेश से बाहर करके सपा ने यह संदेश देना चाहा है कि वह एक राष्ट्रीय पार्टी है जिसका आधार अनेक राज्यों में है। मुलायम ने जिस तरह प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से अपनी नजदीकी का इजहार किया और ज्योति बसु के कार्यकाल की तारीफ की उससे उनकी मंशा स्पष्ट है। वह यूपीए और एनडीए घटक दलों के साथ-साथ लेफ्ट से भी बेहतर संबंध बनाए रखना चाहते हैं। वह केंद्र की सत्ता में पहुंचने के लिए सारे विकल्प खुले रखना चाहते हैं। सत्ता की राजनीति में उत्तर प्रदेश हमेशा निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। लोकसभा के लिए 80 सीटें सारे समीकरण बदल सकती हैं। फिर बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र, कर्नाटक का साथ मिल जाए तो कोई भी पार्टी सत्ता  पर कब्जा कर सकती है। यही कारण है कि मुलायम अपनी साइकिल को मुंबई से कोलकाता तक दौड़ाने की कोशिश कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की बागडोर अपने सुपुत्र अखिलेश यादव को सौंप कर वह लाल किले पर झंडा फहराने का सपना संजोकर राष्ट्रीय राजनीति में हर दांव खेल रहे हैं। वे लोकसभा चुनाव भी 2014 से पहले यानी जल्द से जल्द चाहते हैं, क्योंकि फिलहाल उत्तर प्रदेश में उनके पैर मजबूत हैं। उत्तर प्रदेश में 50 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य बनाकर वह ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, चन्द्रबाबू नायडू की तेलुगूदेशम और अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल की हर सम्भव कोशिश कर रहे हैं। महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वह केंद्र की कांग्रेस सरकार के विरुद्ध निरन्तर अभियान जारी रख सकते हैं। वाम मोर्चे के साथ वैचारिक रिश्ता रखना चाहते हैं और धर्मनिरपेक्ष छवि बनाकर केंद्र में जरूरत पड़ने पर कांग्रेस का साथ लेने की सम्भावना बनाए रखे हैं। निश्चित रूप से मुलायम कांग्रेस और भाजपा की कमजोरियों का लाभ उठाना चाहते हैं। तीसरे मोर्चे का नाम वह अभी नहीं लेना चाहते, क्योंकि सत्ता के समीकरण चुनावी परिणामों के आधार पर ही बनने वाले हैं। लगता है कि मुलायम ने भांप लिया है कि अब कांग्रेस के साथ जुड़े रहने से राजनीतिक डूब का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे में नए राजनीतिक समीकरणों के तोल-मोल का दौर तेज हो सकता है। मुलायम अब ताड़ चुके हैं कि कांग्रेस जनता के बीच अलोकप्रिय होती जा रही है, दूसरी तरफ भाजपा अपने आपको कांग्रेस के विकल्प के रूप में अभी तक स्थापित नहीं कर पाई। ऐसे में अगर यूपीए और एनडीए में असुविधा महसूस कर रहे घटक दलों को वह अपनी छत्रछाया में एकत्र कर सके तो कुछ भी हो सकता है।

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