Published on 20 September, 2012
जिस तरीके से उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों में दंगा-फसाद हो रहा है उससे तो यही लगता है कि कुछ ताकतें देश में अराजकता, सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने में लगी हुई हैं। शुक्रवार को गाजियाबाद के मसूरी थाना क्षेत्र के आध्यात्मिक नगर स्टेशन के पास एक धार्मिक पुस्तक के पन्ने पर अपशब्द लिखे होने की अफवाह फैली जिसकी शिकायत मसूरी पुलिस से की गई थी। शाम को मसूरी में मामला दर्ज किया जा रहा था कि इसी बीच भारी संख्या में एक समुदाय के लोग थाने पहुंचे और उपद्रव शुरू कर दिया। हिंसक भीड़ ने एनएच-24 को जाम कर थाने में तोड़फोड़ और आगजनी की। पुलिस ने हालात पर काबू पाने के लिए बल प्रयोग किया तो भीड़ की ओर से गोलीबारी व पथराव होने लगा। तब पुलिस ने भी फायरिंग की। दोनों तरफ से फायरिंग और पथराव में छह लोग मारे गए तथा दर्जनों घायल हुए। मरने वालों में नाहल निवासी आसिफ, पिपलैड़ा निवासी वाहिद, दियरा का निवासी लुकमान, कबीर नगर निवासी आमिर, डासना निवासी वसीम तथा मसूरी निवासी हयात के रूप में हुई। वसीम बीटेक का छात्र था। उपद्रव के दौरान एसपी देहात जगदीश शर्मा, दरोगा रमेश चन्द, हैड कांस्टेबल रूप चन्द, कांस्टेबल जनरेवर सैनी समेत दूसरे पक्ष के भी कई लोग घायल हो गए। फिलहाल हालात प्रशासन के नियंत्रण में है। लेकिन इस घटना से जो सवाल खड़े हुए हैं वे जरूर बड़े हैं और महत्वपूर्ण भी। पहले असम हिंसा, फिर मुंबई में उपद्रव और इस क्रम में पूर्वोत्तर के लोगों के पलायन के बाद इस बात के पुष्ट संकेत थे कि देश की आबोहवा में जहर घोलने की साजिश चल रही है। बाद में देश के कई अन्य हिस्सों, खासकर उत्तर प्रदेश में ऐसी घटनाएं घटीं जिनसे अन्देशा हुआ कि कुछ शक्तियां देश के अन्दर और बाहर ऐसी हैं जो हमारे सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने में तुली हुई हैं। यहां तक कि एक पखवाड़ा पहले उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे दिल्ली के मयूर विहार फेज-1 में भी मामूली विवाद के बाद व्यापक हिंसा और आगजनी हुई थी। अब गाजियाबाद में यह हुआ। प्रश्न जरूर उठता है, क्या वजह है कि तमाम पुख्ता अन्देशों के बाद आखिर एक छोटी-सी चिंगारी को जानलेवा आग में बदलने से नहीं रोका जा सका? सवाल हमारी गुप्तचर एजेंसियों पर भी उठता है कि क्या वजह है कि उन्हें समय रहते इन साजिशों का आभास नहीं होता? साथ ही स्थानीय प्रशासन क्या सो रहा था, उसे इस माहौल का पता नहीं चला? सपा की अखिलेश यादव की सरकार राज्य में कानून व्यवस्था सुरक्षित रखने में नाकाम साबित हो रही है। इन तत्वों का पता लगाना अत्यंत जरूरी है जो देश में सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का पूरा प्रयास कर रहे हैं, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि आज जनता में भारी असंतोष है और कोई भी मौका मिले वह सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर कर उपद्रव और आगजनी करने से नहीं चूकते। कुछ हद तक पुलिस का खौफ भी कम होता जा रहा है। पुलिस को भी हम दोष नहीं दे सकते क्योंकि राजनेता उन्हें स्पष्ट आदेश देने से कतराते हैं। इस वोट बैंक पालिटिक्स ने देश को तबाह कर दिया है। लगता है कि हम एक ज्वालामुखी पर बैठे हैं जो कभी भी फट सकता है।
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