Published on 19 September, 2012
दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन (डूसू) चुनाव में कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई को शानदार सफलता मिली है और भाजपा की इकाई एबीवीपी का सूपड़ा साफ हो गया है। एनएसयूआई चारों सीटों में जीत गई है। 2007 के बाद डीयू की राजनीति में लगातार कमजोर हो रही एनएसयूआई को संजीवनी मिल गई है। एनएसयूआई अच्छे खासे अन्तर से प्रेजिडेंट, वाइस प्रेजिडेंट व सैकेटरी की पोस्ट पर कब्जा करने में सफल रही। डूसू की हिस्ट्री में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी पोस्ट पर मुकाबला टाई रहा। ज्वाइंट सैकेटरी के लिए हुए चुनाव में दोनों संगठनों को बराबर-बराबर वोट मिले। चुनाव परिणाम ने भारतीय जनता पार्टी को पूरी तरह सकते में ला दिया है और वह समझ नहीं पा रही है कि आखिर छात्रों ने यह कैसा जनादेश दिया है कि तमाम विपरीत मुद्दों की भरमार के बाद भी उनकी समर्थित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की करारी हार ही नहीं हुई अपितु छात्र संघ में उसका सूपड़ा ही साफ हो गया जो वर्तमान हालातों में पार्टी के लिए पचाना आसान नहीं होगा। दूसरी तरफ एनएसयूआई की इस जीत ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में एक नई संजीवनी का संचार कर दिया है और उन्हें यह कहने का मौका मिल गया है कि दिल्ली के युवाओं ने साफ संदेश दे दिया है कि वह कांग्रेस पार्टी और उसकी नीतियों के साथ हैं। राजधानी में अन्ना हजारे के द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए आंदोलन में भारी तादाद में उस समय युवाओं ने भागीदारी दर्ज की थी। स्कूल और कॉलेज सभी के छात्र अन्ना की टोपी पहने नजर आते थे जिसे लेकर भाजपा कहीं ज्यादा उत्साहित थी और उसे लग रहा था कि कांग्रेस विरोधी युवाओं में जो लहर है उसका लाभ उन्हें ही मिलेगा और इस बात को वह पक्का मानकर चल रही थी कि डूसू चुनाव में तो उनका परचम फहराना तय है। एबीवीपी को लगा कि जिस तरह से देश में भ्रष्टाचार, महंगाई से लोग परेशान हैं उसके चलते डूसू चुनाव में लोग एनएसयूआई को वोट नहीं देंगे। वोटिंग के कुछ घंटे पहले जब डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई तो यह कांफिडेंस और भी बढ़ गया पर एनएसयूआई ने बेहतर रणनीति से चुनाव लड़ा और राष्ट्रीय मुद्दों को इस चुनाव में आने ही नहीं दिया। बीजेपी की ओर से भी एबीवीपी को कोई खास सपोर्ट नहीं मिली जबकि कई सीनियर कांग्रेस लीडर चुनाव में कूद पड़े और हर स्तर पर अपनी छात्र इकाई की मदद की। पैसा भी पानी की तरह बहाया। कोड ऑफ कंडक्ट के मुताबिक कोई उम्मीदवार पांच हजार से ज्यादा खर्च नहीं कर सकता पर पार्टी ने यह कमी पूरी कर दी। बताया जाता रहा है कि इस बार कांग्रेस ने चुनाव के लिए करोड़ों का बजट रखा और उम्मीदवारों को पैसे की कमी नहीं होने दी जबकि एबीवीपी के एक सीनियर छात्र नेता का कहना है कि उन्हें बीजेपी से कोई मदद नहीं मिली। कांग्रेस ने इस चुनाव को बहुत गम्भीरता से लिया और अपनी पूरी ताकत झोंक दी। एमएलए, पार्षदों, मुख्यमंत्री सभी ने मोर्चा सम्भाल रखा था। डीयू में रिजर्व कैटेगरी की खाली सीटों का मुद्दा काफी गरमाया और इन सीटों को इस बार जनरल कैटेगरी में तब्दील नहीं होने दिया। एचआरडी मंत्रालय के आदेश पर कॉलेजों को ज्यादा दाखिले करने पड़े। इसका असर देखने को मिला। वोटिंग पर्सेंटेज 29 से बढ़कर 40 तक पहुंच गया। माना जा रहा है कि बम्पर एडमिशन का फायदा एनएसयूआई को हुआ है। एनएसयूआई के प्रवक्ता का कहना है कि एबीवीपी ने डूसू चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों को उछाला और छात्रों के हितों वाले मसले पीछे रह गए जबकि स्टूडेंट्स ने राष्ट्रीय मुद्दों को महत्व नहीं दिया। खास बात यह है कि डूसू चुनाव में फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स ही ज्यादा वोट करते हैं और उन्हें अपने पक्ष में लाने में एबीवीपी नाकाम रही। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने हाथोंहाथ इस जीत को भुना भी लिया। उन्होंने व उनके समर्थकों ने इसको मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के स्वच्छ प्रशासन का परिणाम बताते हुए छात्रों का जनादेश बताया है। उनका कहना है कि भाजपा ने इस चुनाव में भी घटिया हथकंडे अपनाए और झूठ के सहारे चुनाव जीतने का सपना देखा था जिसे छात्रों ने चकनाचूर कर दिया, अब उसे बहानों का सहारा नहीं लेना चाहिए। इस जीत से मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का कद बढ़ा है। खुद मुख्यमंत्री की पीठ पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने थपथपाई है, क्योंकि कांग्रेस विरोधी माहौल में इसे रोशनी की किरण मान रहे हैं।
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