Published on 4 September, 2012
अनिल नरेन्द्र
कोल ब्लॉक आवंटन से जुड़ी कैग रिपोर्ट पर संसद में मचे घमासान में बृहस्पतिवार को एक नया मोड़ आ गया जब मुलायम सिंह ने एक नया शोशा छोड़ दिया। मुलायम सिंह यादव जो राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं, ने एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की है। उन्होंने वाम मोर्चों और तेलुगूदेशम के साथ संसद में गतिरोध तोड़ने के लिए नया फॉमूला पेश कर दिया है। मुलायम ने कहा कि वे लोग कोयला प्रकरण में किसी की तरफदारी नहीं कर रहे, इतना-भर चाहते हैं कि इस गम्भीर मामले में संसद के अन्दर खुली बहस और चर्चा हो जबकि भाजपा के लोग जिद पर उतारू हैं। यह ठीक नहीं है। उन्होंने मांग की कि विवादित कोयला ब्लॉक आवंटन में जो भी गड़बड़ियां हुई हैं, उसकी जांच सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश से करा ली जाए। लेकिन कैग की रिपोर्ट में संसद के इसी सत्र में व्यापक बहस की जरूरत है। जहां मुलायम ने एक तरफ कांग्रेस को अपने स्टैंड से प्रसन्न कर दिया, वहीं विपक्षी एकता तोड़ने का प्रयास कर कांग्रेस की मदद करने का प्रयास किया है। दरअसल मुलायम 2014 की रणनीति पर अमल करने का प्रयास कर रहे हैं। वाम मोर्चा, तेलुगूदेशम को साथ लेकर वह 2014 के लिए नया मोर्चा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। मुलायम के इस सियासी दांव को 2014 के लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाना चाहिए। कोल ब्लॉक आवंटन मामले को 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से भी बड़ा घोटाला माना जा रहा है और भाजपा ने इस मसले पर आसमान सिर पर उठाकर सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस्तीफा मांगा है। कोयले पर मचे इस कोहराम से कठघरे में खड़ी यूपीए सरकार की सियासी मुश्किलों को भांपते हुए मुलायम सिंह ने यह दांव चला है ताकि यूपीए सरकार को समर्थन दे रही सपा पर किसी तरह का लांछन न लग सके और अगले चुनाव के लिए अपनी पोजीशनिंग की जा सके। इसलिए अब तक भाजपा बनाम कांग्रेस की जंग बनी कैग रिपोर्ट के निष्कर्षों की सुप्रीम कोर्ट के जज से जांच कराने की मांग कर मुलायम सिंह ने इसमें नया मोड़ ला दिया है। इस तथाकथित तीसरा मोर्चा बनाने के प्रयास में एक फायदा मुलायम सिंह को यह हुआ है कि उन्होंने अपने आपको भाजपा से दूर कर लिया है। याद रहे कि मुलायम सिंह यादव ऐसे पहले नेता हैं जिन्होंने मध्यावधि चुनाव की बात कही थी। मुलायम सिंह का उद्देश्य 2014 में प्रधानमंत्री पद तक पहुंचना है। उनकी रणनीति है कि उन्हें उत्तर प्रदेश से 60 सीटें मिल जाएं और तीसरा मोर्चा इतनी सीटें ले आए तो वह सर्वसम्मति से नेता चुन लिए जाएंगे। कांग्रेस इस बात को समझते हुए भी मुलायम का साथ देने पर मजबूर है पर कांग्रेस रणनीतिकार सोनिया गांधी को यह समझाने में जुटे हैं कि मुलायम से परेशान होने की जरूरत नहीं है। जो बात कांग्रेस समझ नहीं रही वह यह है कि मुलायम सिंह समय से पहले चुनाव होने की स्थिति में अपनी तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। नौ सितम्बर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बेरोजगारी भत्ता बांटने जा रहे हैं। इसके बाद कन्या विद्या धन और फिर लैपटॉप की बारी है। बेरोजगारी और लैपटॉप ही वह मुद्दा था जिसने नौजवानों को पार्टी की तरफ खींचा था। इसी बीच कोलकाता में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी है, इस सभी से पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर संदेश देना चाहती है। प्रदेशाध्यक्ष अखिलेश यादव जन सामान्य तक सपा सरकार की उपलब्धियों को पहुंचाने के लिए सभी विधानसभा क्षेत्रों में 15 से 30 सितम्बर 2012 के बीच कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित करने जा रहे हैं। इस तरह मुलायम सिंह यादव ने एक तीर से कई शिकार करने के लिए यह सियासी दांव चला है। पता नहीं, कांग्रेस को यह समझ आएगा या नहीं? भाजपा के लिए भी यह एक चुनौती है।
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