Published on 1 September, 2012
Saturday, 1 September 2012
गुजरात दंगों पर स्वागत योग्य फैसला, न्याय की जीत हुई
27 फरवरी 2002 को हुए गोधरा कांड के एक दिन बाद यानि 28 फरवरी को विश्व हिन्दू परिषद ने गुजरात में बन्द का आयोजन किया था। इस बन्द के दौरान अहमदाबाद के नरोडा पाटिया इलाके में भारी संख्या में लोग जमा हुए। उत्तेजित भीड़ ने वहां के अल्पसंख्यक समुदाय पर हमला बोल दिया। इस हिंसा में 97 लोग मारे गए जबकि 33 अन्य लोग घायल हुए। तकरीबन साढ़े 10 साल बाद इस नरसंहार के लिए अदालत ने 32 लोगों को दोषी करार दिया है जबकि 29 लोग बरी हो गए। अहमदाबाद की विशेष अदालत ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए इन लोगों को षड्यंत्र और हत्या के मामले में दोषी ठहराया। दोषी पाए जाने वाले लोगों में गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी शामिल हैं। गुजरात में पहली बार किसी पूर्व मंत्री को दोषी करार दिया गया है। इस मामले में 70 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनके खिलाफ 325 से ज्यादा लोगों ने गवाही दी। इनमें प्रत्यक्षदर्शी, पुलिसकर्मी, डाक्टर, फोरेंसिक विशेषज्ञ और इस मामले में स्टिंग ऑपरेशन करने वाले एक पत्रकार शामिल थे। मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की करीबी मानी जाने वाली माया कोडनानी को आपराधिक साजिश, हत्या और हत्या के प्रयास के तहत दोषी करार दिया गया है। इस फैसले से लोगों का देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा मजबूत होगा। विशेष अदालत में भाजपा की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के बदनाम नेता बाबू बजरंगी पर आरोप सिद्ध होने से इतना तो साफ हो ही जाता है कि मोदी सरकार की इस शर्मनाक दंगों में अगर कोई भूमिका न भी रही हो तो कुछ हद तक दंगा रोकने में समय रहते कदम उठाने में विलम्ब जरूर हुआ। यह सही है कि दंगों के दौरान माया कोडनानी सिर्प विधायक थीं, मगर दंगों में उनकी प्रत्यक्ष भूमिका के तब भी आरोप लगे थे। इसके बावजूद नरेन्द्र मोदी द्वारा उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करना क्या दर्शाता है? क्या उन्हें इस बात के लिए पुरस्कृत किया गया और लोक-लाज को उठाकर ताक पर रख दिया गया? इस फैसले से मोदी सरकार साफ तौर पर परेशान है और भाजपा नेताओं के लिए मोदी सरकार का बचाव करना मुश्किल हो रहा है। बेशक यह फैसला 10 साल के बाद आया है लेकिन इससे हमले में मारे गए लोगों के परिवारों के मन में न्याय की आस बनी है। गुजरात दंगों में जिन मामलों में इंसाफ की आस पूरी हुई है उसका ज्यादा श्रेय सुप्रीम कोर्ट को जाता है। अगर एसआईटी का गठन और पहले होता तो फैसला और जल्द आ सकता था। किसी भी राज्य सरकार का यह दायित्व होता है कि वह दंगों के दोषियों और साजिश रचने वालों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाए, लेकिन इस मामले में स्थानीय जनता ने अभूतपूर्व काम किया और कई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष धमकियों के बावजूद 327 गवाहों ने सामने आकर गवाही दी। दुनिया जानती है कि गुजरात दंगों को रोकने में मोदी सरकार नाकाम रही थी और मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह कहकर दंगों को उचित ठहराया था कि न्यूटन के नियम के अनुसार हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को नरेन्द्र मोदी को राजधर्म की याद दिलानी पड़ी थी। इस अदालती फैसले का नरेन्द्र मोदी और भाजपा पर दूरगामी असर पड़ सकता है। गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। देखना यह होगा कि उन पर इस फैसले का क्या असर पड़ेगा। गुजरात की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस इसे गुजरात में और पूरे देश में उछालने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। नरेन्द्र मोदी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं पर भी इसका असर पड़ सकता है। इस फैसले से इतना तो साबित हो ही जाता है कि दंगों में भाजपा और बजरंग दल के कुछ लोग शामिल थे पर नरेन्द्र मोदी अपने बचाव में यह कह सकते हैं कि यह कहीं नहीं कहा गया कि मोदी सरकार इनमें शामिल थी या उसने इन्हें रोकने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए। कहने को तो भाजपा यह भी कह सकती है कि चलो हमने तो गुजरात दंगों के दोषियों को सजा दिलवा दी पर हजारों सिखों के कत्लेआम के 1984 के दंगों में आज तक एक भी नेता को दोषी करार नहीं दिया जा सका।
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