Friday, 14 September 2012

गुटखे पर दिल्ली सरकार ने बैन तो लगा दिया पर क्रियान्वयन कैसे करेगी?


 Published on 14 September, 2012  

अनिल नरेन्द्र


दिल्ली सरकार ने सोमवार को गुटखे पर बैन लगाने का फैसला किया है। दिल्ली में अब गुटखा न बिकेगा, न बनेगा। सरकार ने गुटखा और उससे जुड़ी चीजों के उत्पादन, बिक्री, प्रदर्शन, परिवहन और भंडारण पर पाबंदी लगा दी है। पड़ोसी राज्य हरियाणा ने 15 अगस्त को ही गुटखे को बैन कर दिया था। गुजरात ने 11 सितम्बर से राज्य में गुटखे को बेचने, भंडारण और वितरण पर पाबंदी लगा दी है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि गुटखा सेहत के लिए अत्यंत हानिकारक है। गुटखा खाने से न केवल दांत खराब होते हैं बल्कि कैंसर भी होता है। गुटखे में मौजूद तम्बाकू व कैमिकल शरीर पर बुरा असर डालते हैं। कैंसर विशेषज्ञों के मुताबिक सिर व गले के कैंसर से पीड़ितों में सर्वाधिक तम्बाकू चबाने की आदत से कैंसर के शिकार होते हैं। यह धूम्रपान से भी ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि यह घंटों तक हमारे मुंह के सम्पर्प में रहता है। डाक्टर बताते हैं कि भारत में स्मोकलेस तम्बाकू यानि गुटखा या खैनी के तौर पर तम्बाकू खाना ज्यादा प्रचलन में है। यही वजह है कि देश में सिर व गले के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। सिर व गले के कैंसर के करीब 90 फीसदी मामले तम्बाकू की वजह से हो रहे हैं। एक कैंसर विशेषज्ञ डाक्टर सुदर्शन डे की मानें तो गुटखे में सिर्प तम्बाकू ही नहीं होता बल्कि कई प्रकार के रसायन भी होते हैं, जो कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं पर सवाल यह है कि सरकार केवल कानून बनाने से गुटखे पर बैन लगा पाएगी? सबसे पहली बात कि दिल्ली सरकार जिस खाद्य अपमिश्रण विभाग को इस पाबंदी के खिलाफ कार्रवाई करने को कहेगी उसके पास क्या इतनी मैन पॉवर है कि वह सख्ती से इसे लागू कर सके? हमारी जानकारी के मुताबिक इस विभाग में महज 70 कर्मचारी हैं। वहीं राजधानी में दो दर्जन ब्रांड के गुटखे बनाने वाली करीब 30 कम्पनियां हैं और रोजाना दो करोड़ से अधिक के गुटखे व अन्य तम्बाकू उत्पादों की खपत होती है। एक अनुमान के मुताबिक राजधानी में करीब 2000 बड़े व मझौले स्तर पर दुकानदार गुटखे के थोक व्यापार से जुड़े हैं। राजधानी में एक लाख से अधिक पनवाड़ी व छोटे-छोटे व छतरियों से गुटखे की खुदरा बिक्री होती है। ऐसे में इतने कम कर्मचारियों के भरोसे गुटखे पर कैसे लगेगी पाबंदी? सरकार को गुटखे पर कर के जरिये करोड़ों रुपए का राजस्व मिलता है। इस पर सरकार ने 20 फीसदी का वैट लगा रखा है जबकि पान मसाले पर 12.5 फीसदी वैट है। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली में महीने का करीब 100 करोड़ रुपए का व्यापार होता है। पान मसाला, गुटखे का सबसे बड़ा व्यापार दिल्ली इलाके के नए बांस से होता है। सरकार के फैसले से व्यापारी खासे नाराज हैं। हालांकि वह गुटखे के नुकसान से भी वास्ता रखते हैं। यहां के एसोसिएशन के महासचिव अशोक कुमार जैन ने बताया कि स्वदेशी व्यापार को तहस-नहस करने के लिए और विदेशी सिगरेट कम्पनियों को बढ़ावा देने के लिए यह खेल किया जा रहा है। हमारी राय में सारी परिस्थितियों को देखते हुए पाबंदी लगाना शायद मसले का हल नहीं होगा। आवश्यकता है उपभोक्ताओं को और जागरुक करने की। बैन से केवल ब्लैक मार्केटिंग बढ़ेगी। कहीं इस प्रतिबंध का हाल भी सार्वजनिक स्थानों पर स्मोकिंग बैन की तरह न हो? प्रतिबंध लगाना किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता।

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