Published on 30 September, 2012
Sunday, 30 September 2012
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सरकार को राहत पर दायित्व से मुक्ति नहीं
खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश से हमारा छोटा किसान तबाह हो जाएगा
Published on 30 September, 2012
मनमोहन सिंह सरकार ने खुदरा व्यापार में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी व्यापार के लाभों के पीछे एक बड़ा कारण यह बताया कि इससे हमारे किसानों को लाभ होगा। मैंने श्री इंडिया एफडीआई वाम के निदेशक श्री धर्मेन्द्र कुमार का इस विषय पर एक लेख पड़ा। उन्होंने बताया कि दुनिया के कुछ देशों में जहां यह एफडीआई लागू की जा चुकी है उनके किसानों का क्या अनुभव रहा है। दावा किया जा रहा है कि इससे उपभोक्ताओं को ही नहीं, किसानों को भी फायदा होगा जबकि ऐसे कई अध्ययन मौजूद हैं जिससे यह साबित होता है कि खेती के निगमीकरण से किसानों को नुकसान ही हुआ है। अध्ययन बताते हैं कि निगमीकृत आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनकर किसानों को उचित मूल्य हासिल करने के लिए जूझना ही पड़ता है, उन्हें जीवन-यापन की परेशानी भी झेलनी पड़ती है। मैक्सिको में वाइल्स, ब्रेहम, इन्नोको, कैंडिल जैसे अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि खाद्य आपूर्ति श्रृंखला के बदलाव से छोटे किसानों को आमतौर पर कोई फायदा नहीं हुआ। अपने देश में भी रिटेल सेक्टर में पहले से मौजूद औद्योगिक घराने सिर्प बड़े किसानों से ही माल खरीदते हैं। छोटे किसान इनकी खरीद व्यवस्था से बाहर ही हैं। हमारे देश में 78 प्रतिशत किसान छोटी जोत के हैं, जिनके पास दो हेक्टेयर से भी कम जमीन है। देश की कुल खेतिहर जमीन का 33 फीसद हिस्सा ही इन छोटे किसानों के पास है जबकि देश का 90 फीसद से ज्यादा खाद्य उत्पादन यही लोग करते हैं। कृषि का निगमीकरण छोटे किसानों के लिए हानिकारक हो सकता है। एक कटु सत्य यह भी है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों की हिस्सेदारी में लगातार गिरावट आ रही है। पिछले पांच वर्षों में यह आंकड़ा घटकर 14 फीसदी रह गया है। भारत को कौन खिलाता है? इसका जवाब भारत के छोटे किसानों के पास ही हो सकता है पर लगता है कि इन किसानों की किस्मत का फैसला सरकार ने वॉलमार्ट जैसी कम्पनियों के सुपुर्द कर दिया है। रिटेल में एफडीआई से खेतिहर मजदूरों के हालात में भी सुधार की गुंजाइश नहीं है। एक अध्ययन के मुताबिक वॉलमार्ट की वजह से मैक्सिको में खेतिहर मजदूरों की संख्या में गिरावट हुई है। जिन इलाकों में कारपोरेट रिटेल संचालित होते हैं, वहां रोजगार और मजदूरी पर दुप्रभाव से गरीबी बढ़ी है। अमेरिका में जहां-जहां वॉलमार्ट है, वहां गरीबी बढ़ी है। एक सच्चाई यह भी है कि सुपर मार्केट आपसी प्रतिस्पर्धा से बचते हैं। इसका खामियाजा किसानों को ही भुगतना पड़ता है, क्योंकि सुपर मार्केट उन्हें कम कीमत पर माल बेचने के लिए विवश करता है। घाना के कोकोआ उत्पादक किसानों को रिटेल मूल्य का चार फीसदी से भी कम मूल्य मिलता है। वहां रिटेल मार्जिन 34 फीसदी से ऊपर है। बेशक हमारे देश में किसानों को मिलने वाले मूल्य एवं रिटेल मूल्य के अन्तर को कम किया जाना चाहिए लेकिन इसका उपाय खुदरा में विदेशी निवेश नहीं है। दूध में अमूल जैसा सफल सहकारी प्रयोग हो सकता है, तो खाद्य उत्पादों में क्यों नहीं? कारपोरेट रिटेल के बजाय मार्केटिंग को-ऑपरेटिव को भी दुरुस्त किया जा सकता है। सरकार का एक तर्प यह है कि खाद्य आपूर्ति श्रृंखला के निगमीकरण से बिचौलिए समाप्त हो जाएंगे जबकि सच्चाई यह है कि लाखों छोटे बिचौलियों की जगह बड़ी-बड़ी कम्पनियां ले लेंगी। खाद्य प्रसंस्करण, खाद्य सुरक्षा, खाद्य मानक, पैकेजिंग, लेबलिंग, वितरण करने वाली बड़ी कम्पनियां बतौर सलाहकार नए बिचौलिए बनकर उभरेंगी, जिसके पास मोल-भाव की जबरदस्त ताकत होगी। भारत तमाम तरह के मुक्त व्यापार समझौते कर रहा है, जिससे प्रसंस्कृत और अप्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के आयात पर लगने वाले शुल्क खत्म हो जाएंगे। अमेरिका और यूरोप की रियायती खाद्य सामग्री हमारे बाजारों में भी आएगी। इससे किसानों से उनका बाजार छिन जाएगा। जाहिर है, खुदरा क्षेत्र में एफडीआई जैसे फैसले को छोटे किसानों के पक्ष में मोड़ने के लिए तमाम तरह के नियम-कायदों की जरूरत होगी, क्योंकि बेलगाम कम्पनियां खेती और खुदरा बाजार में तबाही मचा सकती हैं।
Saturday, 29 September 2012
राजधानी में भी पैदा हुई नक्सली समस्या
Published on 29 September, 2012
सरकार ने बाबा रामदेव पर चौतरफा हमला बोल दिया है
Published on 29 September, 2012
अनिल नरेन्द्र
Friday, 28 September 2012
भतीजे अजीत ने चाचा शरद के साथ-साथ कांग्रेस की मुसीबतें बढ़ा दी हैं
Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published From Delhi
Published on 28 September, 2012
अनिल नरेन्द्र
हिना-बिलावल इश्क की कहानी हकीकत या फसाना?
Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published From Delhi
Published on 28 September, 2012
अनिल नरेन्द्र
Thursday, 27 September 2012
फसीह के आतंकी होने का सबूत चाहिए सऊदी सरकार को
Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published From Delhi
Published on 27 September, 2012
अनिल नरेन्द्र
भारत में बेंगलुरु और दिल्ली
में बम विस्फोटों की साजिश में शामिल रहने का आरोपी फसीह मुहम्मद को भारत लाने में
सऊदी अरब अड़ंगा लगा रहा है। सऊदी अरब के अधिकारियों ने जहां उसकी हिरासत की बात कबूली
है वहीं उन्होंने यह भी कहा है कि वे वहां उसकी भूमिका और ठहरने के बारे में सावधानी
से जांच कर रहे हैं। जियाउद्दीन अंसारी उर्प अबू जिंदाल के सऊदी अरब से निर्वासन की
खबरें सामने आने के कुछ ही दिन के भीतर राजनयिक माध्यमों और सुरक्षा एजेंसियों की मुलाकातों
के जरिये भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने फसीह के निर्वासन की मांग की थी। सऊदी अधिकारियों
ने भारतीय एजेंसियों को साफ कहा है कि हम फसीह को तब तक आपके हवाले नहीं करेंगे जब
तक आप हमें फसीह की आतंकी कारगुजारियों के बारे में सबूत मुहैया नहीं कराते। रियाद
की जेल में बन्द इस आतंकवादी के प्रत्यर्पण का मामला लटक गया है। सऊदी अधिकारी जानना
चाहते हैं कि बेंगलुरु और दिल्ली समेत अन्य आतंकवादी वारदातों में फसीह की भूमिका क्या
रही है? आधिकारिक सूत्रों ने हाल ही में यह जानकारी दी है। सूत्रों के अनुसार भारतीय
अधिकारियों को हाल में सऊदी सुरक्षा एजेंसियों की ओर से एक पत्र मिला है। इसमें यह
बताने के लिए कहा गया है कि भारत में किन-किन आतंकवादी वारदातों खासकर बेंगलुरु और
दिल्ली की घटनाओं में फसीह का हाथ रहा है। वह इन घटनाओं को अंजाम देने में किस रूप
से शामिल रहा है। यह भी स्पष्ट करने को कहा गया है कि बिहार निवासी इस आतंकी का इंडियन
मुजाहिद्दीन जैसे प्रतिबंधित संगठनों से किस तरह का जुड़ाव रहा है। सऊदी एजेंसियों
ने बेंगलुरु धमाके और दिल्ली में गोलीबारी की घटना से संबंधित दर्ज केस का ब्यौरा मांगा
है। साथ ही इन घटनाओं के सिलसिले में गिरफ्तार आरोपियों के बयान की प्रतियां भी उपलब्ध
कराने को कहा गया है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का आरोप है कि पेशे से इंजीनियर फसीह
का बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में धमाके और 2010 में दिल्ली में जामा मस्जिद
के निकट हुई गोलीबारी की घटना में हाथ रहा है। इस सिलसिले में दिल्ली और कर्नाटक पुलिस
को भी इस दहशतगर्द की तलाश है। आतंकी वारदातों में फसीह का नाम इंडियन मुजाहिद्दीन
के गिरफ्तार आतंकियों से पूछताछ के दौरान सामने आया। भारत ने फसीह को प्रत्यर्पित करने
की मांग सऊदी अरब से कर रखी है। इस सिलसिले में इंटरपोल के जरिये रेड कॉर्नर नोटिस
भी जारी किया गया है। फसीह को 13 मई को सऊदी अरब में गिरफ्तार किया गया था। उसकी पत्नी
निखत परवीन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए आरोप लगाया है कि उसका पति फसीह
मुहम्मद भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के कब्जे में है। उसे भारतीय और सऊदी अरब की सुरक्षा
एजेंसियों ने साझा ऑपरेशन के तहत गिरफ्तार किया है। सरकार ने इन आरोपों से इंकार किया
है। सूत्रों का कहना है कि भारत प्रत्यर्पित किए गए आतंकवादी जियाउद्दीन अंसारी उर्प
अबू जिंदाल को जिस तरह से मीडिया कवरेज मिला उससे सऊदी सरकार नाराज है लिहाजा फसीह
के मामले में वह पूंक-पूंक कर कदम उठा रही है।
धरती, आकाश के बाद अब समुद्र में भी घोटाला
Published on 27 September, 2012
अनिल नरेन्द्र
मनमोहन सिंह सरकार के घोटालों का पर्दाफाश
होने का सिलसिला थम ही नहीं रहा है। धरती, आकाश के बाद अब समुद्र में भी घोटाले का
पता चला है। आकाश (2जी स्पेक्ट्रम) धरती (कोयला आवंटन घोटाला) के बाद अब समुद्र में
भी घोटाले से अछूती नहीं रही यह सरकार। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में खनिज सम्पदा
की खोज के लिए ब्लॉकों के आवंटन में घोटाले की सीबीआई ने जांच शुरू कर दी है। समुद्र
में खनिज की खोज के लिए कुल 63 ब्लॉकों में से 28 ब्लॉक प्रवर्तन निदेशालय के एक पूर्व
अधिकारी के परिवार से जुड़ी चार कम्पनियों को आवंटित किए जाने का आरोप है। सीबीआई सूत्रों
के अनुसार प्रारम्भिक जांच के केस में नागपुर स्थित केंद्रीय खनन ब्यूरो और केंद्रीय
खान मंत्रालय के अज्ञात अधिकारियों के साथ-साथ चारों निजी कम्पनियों और उनके निदेशकों
को भी आरोपी बनाया गया है। जिन चार कम्पनियों को लगभग आधे खनिज ब्लॉक आवंटित किए गए
हैं वे ईडी के पूर्व अधिकारी अशोक अग्रवाल ईडी के पहले खान मंत्रालय में भी काम कर
चुके हैं। ईडी में काम करते हुए अग्रवाल रक्षा दलाल अभिषेक वर्मा के साथ संबंधों में
भी सुर्खियों में रहे थे। समुद्र के भीतर प्रचुर मात्रा में मौजूद खनिज सम्पदा को निकालने
के लिए खान मंत्रालय ने पहली बार 2010 में 63 ब्लॉकों के लिए टेंडर जारी किए। कुल
377 कम्पनियों ने आवेदन किया। मार्च 2011 में खान मंत्रालय ने आवंटित ब्लॉकों की सूची
जारी की। इनमें से 28 ब्लॉक एक ही परिवार से
जुड़ी चार कम्पनियों को दिए जाने का विरोध करते हुए कुछ कम्पनियों ने मुंबई और हैदराबाद
हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट ने आवंटन प्रक्रिया पर रोक लगाते हुए सीबीआई
को पूरे मामले की जांच का आदेश दिया। हाई कोर्ट के इसी आदेश के तहत सीबीआई ने प्रारम्भिक
जांच कर केस दर्ज किया है। जांच से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जल्द इस संबंध
में खान मंत्रालय और केंद्रीय खनन ब्यूरो के अधिकारियों को पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा।
साथ ही खान मंत्रालय को आवंटन से जुड़े सभी दस्तावेज जांच एजेंसी को सौंपने के लिए
कहा जाएगा। बड़े दुख की बात है कि मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल के दौरान घोटाले दर
घोटाले का पर्दाफाश हो रहा है। इस सरकार ने तो किसी क्षेत्र को नहीं छोड़ा। देश को
पता नहीं कितने अरबों का नुकसान हुआ है। पता नहीं कभी भी इसका सही आंकलन होगा भी या
नहीं कि देश को कितना लूटा गया है? धरती, आकाश और अब समुद्र कहीं भी तो नहीं छोड़ा
गया और यह सब कुछ ईमानदार प्रधानमंत्री की आंखों के नीचे हुआ। फिर भी वह मिस्टर क्लीन
हैं। मिस्टर क्लीन ने तो देश को लूटने का जैसे लाइसेंस ही दे दिया हो, जहां अवसर मिले
लूट लो। पता नहीं अभी और कितने घोटालों का पर्दाफाश होना बाकी है?
Wednesday, 26 September 2012
प्रफुल्ल पटेल पर कसता शिकंजा
Published on 26 September, 2012
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एयर इंडिया की विमान खरीद में कथित अनियमितताओं की विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराने संबंधी याचिका पर केंद्र सरकार और विमानन कम्पनी से जवाब तलब किया। यह कथित अनियमितताएं नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में प्रफुल्ल पटेल के कार्यकाल के दौरान हुई बताई गई हैं। न्यायमूर्ति एमएल दत्तू और न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की पीठ ने गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्टलिटीगेशन की ओर से दायर जनहित याचिका पर केंद्र सरकार, एयर इंडिया और सीबीआई से जवाब मांगा है। इस याचिका में आरोप लगाया है कि प्रफुल्ल पटेल के कार्यकाल में लिए गए विभिन्न निर्णयों का उद्देश्य निजी एयरलाइंस कम्पनियों को लाभ पहुंचाना था, जिससे एयर इंडिया को नुकसान हुआ। सीपीआईएल के वकील ने दलील दी कि श्री प्रफुल्ल पटेल ने नागरिक विमानन मंत्री के रूप में अनेक ऐसे फैसले लिए जिससे निजी विमानन कम्पनियों को फायदा हुआ और राष्ट्रीय राजस्व को करोड़ों का चूना लगा। याचिकाकर्ता के अनुसार श्री पटेल ने अपने कार्यकाल में न केवल एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का विलय किया बल्कि लाभ कमाने वाले वायु मार्गों को निजी विमानन कम्पनियों के हवाले भी कर दिया। इतना ही नहीं, इन मार्गों पर एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विमानों का उड़ान समय भी बदला गया जिससे निजी विमानन कम्पनियों को फायदा हुआ। खंडपीठ ने इन दलीलों को सुनने के बाद नोटिस जारी किया। सीपीआईएल ने पहले दिल्ली हाई कोर्ट में यह जनहित याचिका दायर की थी, लेकिन हाई कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि यह मामला संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के समक्ष लम्बित है। इसके बाद सीपीआईएल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ता का दावा है कि एयर इंडिया ने 67 हजार करोड़ रुपए की लागत से 111 उन्नत विमान खरीदे थे, जिसमें भारी अनियमितताओं की शिकायत मिली है। यह दावा किया गया कि पटेल के कई निर्णय हैं जिनसे राजस्व का भारी नुकसान हुआ है। इनमें कई फैसलों का जिक्र भी किया गया है। उदाहरण के तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र की एयरलाइंस कम्पनी के लिए 70 हजार करोड़ खर्च करके 111 विमानों की ब़ड़े पैमाने में खरीद, विमानों को लीज पर लेना, लाभ वाले उड़ान मार्गों और समय निजी कम्पनियों को देना तथा एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय शामिल हैं। आरोप लगाया गया कि तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल की कार्रवाई और उनके फैसलों ने राष्ट्रीय एयरलाइंस को बर्बाद कर दिया, हजारों करोड़ रुपए का बोझ पड़ा है। गत 10 सितम्बर को उच्चतम न्यायालय की दो सदस्यीय खंडपीठ के एक सदस्य ने इस याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था, जिसके बाद यह मामला नई खंडपीठ के समक्ष गुरुवार को रखा गया। एयर इंडिया एक जमाने में दुनिया की जानी-मानी कम्पनियों में से एक हुआ करती थी पर मिसमैनेजमेंट, भ्रष्टाचार और दूसरी निजी कम्पनियों को खड़ा करने में कई मंत्रियों का हाथ है। इन कारणों से आज एयर इंडिया की प्रतिष्ठा धरातल पर है। इन एयरलाइंस के मामलों में बारीकी से जांच होनी चाहिए। एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय के पीछे क्या-क्या असल कारण थे इसकी भी जांच होनी चाहिए। एयर इंडिया की प्रतिष्ठा सीधी देश से जुड़ती है क्योंकि यह राष्ट्रीय एयरलाइंस है।
पाक के मंत्री ने फिल्म निर्माता की हत्या के लिए इनाम की घोषणा की
Published on 26 September, 2012
पाकिस्तान में अमेरिका में बनी एक फिल्म पर जिस तरह बवाल मचा हुआ है उसकी वजह से पहले से ही अस्थिर देश की स्थिति और ज्यादा गम्भीर हो गई है। हालत यहां तक पहुंच गई कि इस्लामाबाद में विदेशी दूतावास जिस इलाके में हैं, उसकी रक्षा के लिए सेना को बुलाना पड़ा। दुखद पहलू यह है कि तमाम सियासी जमातों ने मौके का सियासी फायदा उठाने में कसर नहीं छोड़ी। हद तो तब हो गई जब पाकिस्तान के एक संघीय मंत्री ने इस इस्लाम विरोधी फिल्म बनाने वाले निर्माता की हत्या करने वाले को एक लाख डॉलर देने की घोषणा कर दी। रेल मंत्री गुलाम अहमद बिलौर ने शनिवार को कहा कि यह इनाम फिल्म निर्माता की हत्या करने वाले को दिया जाएगा। उन्होंने दलील दी कि विरोध प्रदर्शित करने और ईशनिन्दा करने वालों में भय पैदा करने के लिए फिल्मकार की हत्या के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने इसके साथ ही यह कहते हुए प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों तालिबान और अलकायदा से भी अपना समर्थन करने का आह्वान किया कि यदि वह ईशनिन्दा फिल्म के निर्माता को मार दें तो उन्हें भी पुरस्कृत किया जाएगा। बिलौर ने यह घोषणा पेशावर में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में की। इस बयान ने पहले से जलती स्थिति में घी का काम किया। पाकिस्तान सरकार ने रेल मंत्री के इस बयान से खुद को अलग करने का प्रयास किया है। सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि मंत्री की टिप्पणी से हम खुद को अलग करते हैं। प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ के कार्यालय (पीएमओ) की ओर से कहा गया है कि बिलौर के बयान से सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। उधर अमेरिकी विदेशी विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि राष्ट्रपति और विदेश मंत्री दोनों का मानना है कि यह वीडियो अपमानजनक, घृणित और निन्दनीय है, लेकिन इससे हिंसा को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है। यह जरूरी है कि जिम्मेदार नेता हिंसा के खिलाफ खड़े हों और बोलें। बयान में इस अधिकारी ने कहा कि हमने इस बात पर भी ध्यान दिया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने बिलौर की इस घोषणा से खुद को अलग कर लिया है। मुस्लिम विरोधी इस फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान आतंकवाद, लूटपाट और हत्या के प्रयास के मामले में पाक पुलिस ने 6000 से भी अधिक अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। लाहौर पुलिस के प्रवक्ता ने बताया कि 36 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं जरदारी सरकार ने विरोध प्रदर्शन को हवा दी ताकि लोगों का ध्यान और ज्वलंत मुद्दों और सरकार की नाकामी से हटाया जा सके। अगले आम चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं और जरदारी सरकार की अलोकप्रियता चरम पर है। सरकार धार्मिक कार्ड खेल कर कुछ लोकप्रियता भी हासिल करना चाहती है, भले ही इस कोशिश में स्थिति ज्यादा बिगड़े। जब सरकार, विपक्ष, सेना सभी पक्ष धार्मिक मुद्दों को हवा देंगे तो जाहिर है कि हिंसक भीड़ को प्रोत्साहन मिलेगा। अगर अमेरिका विरोधी लहर और तेज होती है तो यह सरकार के लिए एक बड़ी समस्या बन जाएगी। तमाम उग्रवादी संगठन पाकिस्तान सरकार पर अमेरिका का साथ देने का दबाव बना रहे हैं। पाकिस्तान में इस इस्लाम विरोधी फिल्म `इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स' को लेकर शुक्रवार को हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद बहस छिड़ गई है। इस फिल्म के खिलाफ पाक सरकार ने प्रदर्शनों को मंजूरी दी थी। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेतृत्व वाली सरकार ने शुक्रवार को पैगम्बर प्रेम दिवस का आयोजन किया था ताकि धार्मिक और कट्टरपंथी संगठनों के हिंसक विरोधी प्रदर्शनों को रोका जा सके। जानकारों का कहना है कि सरकार पूरी स्थिति का आंकलन करने में नाकाम रही। समाचार पत्र `द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' के सम्पादक उमर आर कुरैशी ने सम्पादकीय में लिखा कि सरकार ने सोचा था कि वह धार्मिक संगठनों को अलग-थलग कर लेगी, लेकिन आखिर में उसने इन संगठनों को प्रोत्साहित करने का काम किया। कुरैशी की तरह पाकिस्तान के कई अन्य टिप्पणीकारों का मानना है कि सरकार ने एक संवेदनशील मुद्दे पर कट्टरपंथी संगठनों को आगे बढ़ने का मौका दिया।
Tuesday, 25 September 2012
अगर वॉलमार्ट इतना ही अच्छा है तो न्यूयार्प में इसका विरोध क्यों?
Published on 25 September, 2012
दुनिया की दिग्गज रिटेल कम्पनी वॉलमार्ट का रास्ता साफ करने के लिए भारत में तमाम फायदे गिनाए जा रहे हैं। अमेरिका की यह दिग्गज कम्पनी का 16 देशों में 404 अरब डॉलर का कारोबार है। हालांकि और भी कई दिग्गज रिटेल कम्पनियां हैं जैसे फ्रांस की केयरफोर (34 देशों में 2009 में 112 अरब डॉलर का कारोबार)। जर्मनी में मेट्रो एजी जिसका 33 देशों में 2009 में 91 अरब डॉलर का कारोबार था, ब्रिटेन की टैस्को जिसका साम्राज्य 13 देशों में फैला हुआ है और जिसका 2009 में राजस्व 90.43 अरब डॉलर का था पर सबसे बड़ी कम्पनी वॉलमार्ट है। वॉलमार्ट (एशियन) के प्रेजीडेंट व सीईओ स्कॉट प्राइस ने कहा है कि भारत में पहला वॉलमार्ट रिटेल स्टोर 12 से 18 महीने के अन्दर खुल सकता है। उनका कहना है कि अभी हम उन राज्यों में इजाजत मांगेंगे जो विदेशी रिटेल शॉप अपने यहां खोलने की इच्छा जता चुके हैं। हालांकि अभी यह तय नहीं है कि भारत में हम कहां-कहां कितने रिटेल स्टोर खोलेंगे। इस समय भारत के साथ 17 कैश एण्ड कैरी स्टोर्स में वॉलमार्ट की हिस्सेदारी है। सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि बेशक प्रधानमंत्री सिंह जितनी भी वॉलमार्ट के फायदे गिनाएं पर यह कम्पनी खुद अपने देश में ही तगड़े झटके से दो-चार हो रही है। चाहे मामला अमेरिका के सबसे बड़े शहर व वित्तीय राजधानी न्यूयार्प का ही क्यों न हो। कम्पनी ने यहां अपना पहला मेगा स्टोर खोलने की योजना बनाई थी, लेकिन स्थानीय छोटे व्यापारियों के भारी विरोध के चलते कम्पनी को अपने कदम पीछे खींचने पड़े। वैसे न्यूयार्प में पहले से ही छह छोटे स्टोर मौजूद हैं। अमेरिकी अखबार न्यूयार्प टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक वॉलमार्ट ने पूर्वी न्यूयार्प के ब्रुकलिन में नया शॉपिंग सेंटर बनाया है। इसी में वह मेगा स्टोर खोलने की तैयारी कर रही थी। मगर स्थानीय यूनियन, सिटी काउंसिल के कई सदस्यों और सामुदायिक समूहों ने इस पर कड़ा एतराज जताया। इसके बाद कम्पनी ने पिछले हफ्ते इस योजना को रद्द कर दिया। अमेरिका के लगभग हर छोटे-बड़े शहर में कम्पनी के चार हजार से ज्यादा स्टोर हैं। मगर सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि मेगा स्टोर खोलने के लिए कम्पनी को हर जगह चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। न्यूयार्प से पहले कई और बड़े शहरों में कम्पनी के मेगा स्टार का विरोध हो चुका है। न्यूयार्प में मेगा स्टोर खोलने के लिए कम्पनी 2007 से प्रयासरत है, लेकिन अभी तक उसे सफलता नहीं मिली है। न्यूयार्प को वॉलमार्ट से मुक्त कराने के लिए बाकायदा एक संगठन बनाया गया है। वॉलमार्ट फ्री न्यूयार्प सिटी ग्रुप के प्रवक्ता स्टेफनी यागजी के मुताबिक कम्पनी के पीछे हटने से यह साबित हो गया है कि न्यूयार्प के लोगों को भी वॉलमार्ट का कारोबारी तरीका नहीं सुहा रहा है। विरोध करने वाले अमेरिकियों का कहना है कि यह कम्पनी अपने कर्मचारियों को कम वेतन तो देती ही है, साथ ही इन्हें जो सुविधाएं मिलनी चाहिए वह भी बदतर होती हैं। यह दाम कम रखकर अपने आसपास के छोटे दुकानदारों के मुनाफे पर चोट पहुंचाती है ताकि इन्हें इलाके से खदेड़ा जा सके। मनमोहन सिंह एक तर्प यह दे रहे हैं कि इससे किसानों और उपभोक्ताओं को फायदा होगा। मगर कुछ जानकार इसे सिरे से खारिज करते हैं। कृषि विशेषज्ञ देविन्दर शर्मा कहते हैं कि अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के संगठित रिटेल कारोबार में भले ही तेजी आई हो लेकिन इसका फायदा किसानों को कम ही हुआ है। अगर ऐसा होता तो इन देशों का कृषि क्षेत्र अभी भी भारी सरकारी सब्सिडी पर नहीं पल रहा होता। मनमोहन सिंह भले ही वॉलमार्ट सरीखे को भारत लाने में जो भी मर्जी आए दलीलें दें पर हकीकत तो कुछ और ही दर्शाती है।
गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले मुलायम सिंह यादव
Published on 25 September, 2012
Monday, 24 September 2012
Sunday, 23 September 2012
साइना नेहवाल ने साइन किया 40 करोड़ का करार
Published on 23 September, 2012
खेल की दुनिया में अब भारत का नाम भी आ रहा है और यह हर भारतीय के लिए गर्व की बात है। भारत में हुनर यानी टेलेंट की कमी नहीं है, कमी है तो खिलाड़ियों को सुविधाएं और प्रोत्साहन की। आज क्रिकेट जगत में टीम इंडिया विश्व की चोटी की टीमों में से एक है। इसके पीछे मेरी राय में बीसीसीआई का बहुत बड़ा योगदान है। क्रिकेट खिलाड़ियों को प्रोत्साहन के रूप में इतना पैसा मिल रहा है कि वह और भी बेहतर प्रदर्शन करने के इच्छुक हैं। हम हॉकी में इसलिए पिछड़े कि हॉकी में वह जरूरी कदम नहीं उठाए गए जिनके बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते थे। लंदन ओलंपिक्स में एक खेल जिसमें भारत का नाम पहली बार इस स्तर पर आया वह है बैडमिंटन का खेल। बेशक हमने शूटिंग, रेसलिंग, बाक्सिंग व एथलैटिक्स में भी अच्छा प्रदर्शन किया पर मैं समझता हूं कि साइना नेहवाल ने जो कमाल किया वह अभूतपूर्व है। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं कि बैटमिंटन एक ऐसा खेल है जिसमें वर्षों से चीन का डोमिनेशन रहा है, वर्चस्व रहा है। साइना ने इस डोमिनेशन को पहली बार तोड़ा है। इसलिए जब मैंने यह खबर पढ़ी कि एक स्पोर्ट्स मैनेजमेंट कम्पनी ने साइना के साथ तीन साल के लिए एक एग्रीमेंट किया है जिसके तहत उनको पूरे 40 करोड़ रुपए मिलेंगे तो मुझे बहुत खुशी हुई। दरअसल साइना एक ब्रांड के तौर पर उसी वक्त से उभरना शुरू हो गई थीं जब उन्होंने लंदन ओलंपिक्स में चीन की वान शिन को हराकर ओलंपिक्स मैडल अपने नाम कर लिया। क्रिकेट को छोड़कर किसी अन्य खेल में देश की सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाली खिलाड़ी अब साइना बन गई है। साइना ने रिती स्पोर्ट्स से यह करार किया है। साइना ने कहा कि मैं रिती स्पोर्ट्स से जुड़कर काफी खुश हूं। रिती की पृष्ठभूमि और विश्वसनीयता को देखते हुए पता चलता है कि वे किस तरह से चीजों के साथ सामंजस्य बिठाते हैं और यह उनका सबसे सकारात्मक पहलू है। रिती स्पोर्ट्स के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अरुण पांडे ने कहाöहम साइना से जुड़कर काफी खुश हैं, जिन्होंने अपने प्रदर्शन से देश को गौरवान्वित किया है। साइना इस तरह रिती स्पोर्ट्स से जुड़ने वाली विभिन्न हाई प्रोफाइल हस्तियों की सूची में शामिल हो गई हैं जिसमें भारतीय क्रिकेट कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी मौजूद हैं। लंदन ओलंपिक्स से लौटने के बाद सचिन तेंदुलकर ने उन्हें एक बीएमडब्ल्यू कार भेंट की थी। क्रिकेटर के अलावा किसी भारतीय खिलाड़ी के साथ ऐसी डील अपने आप में खासी उत्साहजनक है। पिछले वर्ष के मुकाबले साइना के ब्रांड वैल्यू में भी इधर जबरदस्त इजाफा हुआ है। मौजूदा समय में वह 10 मल्टी नेशनल कम्पनियों के एड में नजर आ रही हैं। बिग बी के साथ भी उन्हें एक सौंदर्य प्रसाधन कम्पनी के एड में काम करने का मौका मिला है। यह भी खुशी की बात है कि सिल्वर मैडल जीतने वाले पहलवान सुशील कुमार भी एक विज्ञापन में नजर आ रहे हैं। इस बदलाव का हम स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि बाक्सिंग, वेट लिफ्टिंग, शूटिंग, हॉकी, फुटबाल और तीरंदाजी के भी कुछ खिलाड़ी इसी तरह पर्दे पर नजर आएंगे और भारतीय खिलाड़ियों को वह सम्मान, पैसा मिलेगा जिसके वह पूरी तरह हकदार हैं।
राजधानी में बढ़ता सेंसलेस किलिंग का यह दौर चिंता का विषय है
Published on 23 September, 2012
Saturday, 22 September 2012
राजा परवेज अशरफ की शातिर चाल
Published on 22 September, 2012
अपने पुराने रुख से यू-टर्न लेते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ मंगलवार को राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में मुकदमा चलाने के लिए स्विस अधिकारियों को पत्र लिखने को राजी हो गए। परवेज अशरफ के इस यू-टर्न पर कई सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने अदालत को बताया कि इसके लिए कानून मंत्रालय को निर्देश दिए जा चुके हैं। पाकिस्तान सरकार इस मामले में लम्बे समय से स्विस अधिकारियों को पत्र लिखने से इंकार करती रही है। कुछ लोग अशरफ के इस स्टैंड को एक स्मार्ट मूव मान रहे हैं। सरकार के पास अब कुल चार महीनों का कार्यकाल बचा है और इस स्टेज पर सुप्रीम कोर्ट की शर्त मानने से सदर जरदारी को कोई नुकसान होने वाला नहीं है। पत्र लिखने में कई दिन निकल जाएंगे। फिर स्विस अधिकारी भी किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष के खिलाफ इतनी फुर्ती से तो काम करने से रहे। इस सरकार का कार्यकाल 2013 में समाप्त होने वाला है और अगर यह सरकार तब तक चल जाती है तो यह भी एक चमत्कार ही होगा कि एक चुनी हुई सरकार पाकिस्तान में अपना कार्यकाल पूरा कर ले। प्रधानमंत्री अशरफ ने अपनी सरकार को इतना टाइम दिला दिया है कि बुरी तरह से पीछे पड़े सुप्रीम कोर्ट के पास अब इस सरकार को घेरने का कोई बहाना नहीं बचता। इस कदम से पाकिस्तानी ज्यूडिश्यिरी और चुनी हुई सरकार के बीच अरसे से श्रेष्ठता की लड़ाई में भी कुछ दिनों के ठहराव की गुंजाइश बनी है। कोर्ट ने अशरफ को पत्र का मसौदा तैयार करने के लिए 25 सितम्बर और अदालत की रजामंदी मिलने के बाद उसे स्विस अधिकारियों तक पहुंचाने के लिए दो अक्तूबर तक का समय दिया है। प्रधानमंत्री के इस रुख के बाद उनके खिलाफ अदालत की अवमानना को लेकर चल रहे मुकदमे की सुनवाई पत्र का मजमून जमा करने की तारीख तक के लिए टाल दी गई है। पिछले तीन सालों से पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट जरदारी के खिलाफ स्विटजरलैंड में जांच करवाने के लिए हाथ धो कर पीछे पड़ा हुआ है। सरकार का स्टैंड यह था कि देश के शीर्ष कार्यकारी अधिकारी के रूप में उन्हें किसी भी जांच से मुक्त रहने का संवैधानिक विशेषाधिकार प्राप्त है। बीते जून में सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराते हुए पद के अयोग्य घोषित कर दिया था। उनकी जगह लेने वाले राजा परवेज अशरफ भी हाल तक गिलानी के रास्ते पर ही बढ़ते नजर आ रहे थे। लेकिन अब शायद अपनी सरकार का कार्यकाल पूरा होते देखकर सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और उसके सहयोगी दलों ने अदालत से एक और टकराव न मोल लेने का फैसला किया है। पाकिस्तान में आज तक किसी भी निर्वाचित केंद्र सरकार को पांच साल का निर्धारित कार्यकाल पूरा करने का मौका नहीं मिला है। इस लिहाज से जरदारी सरकार अगर अपना कार्यकाल पूरा कर लेती है तो यह न केवल एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी बल्कि आगामी चुनाव में भी पीपीपी और उनके सहयोगी दलों को इसका फायदा मिलेगा और पाकिस्तान में कार्यपालिका और न्यायपालिका का टकराव भी टलेगा। कुल मिलाकर अशरफ की यह मूव शातिर चाल मानी जाएगी।
क्या मनमोहन सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई है?
Published on 22 September, 2012
श्री प्रणब मुखर्जी को यूं ही नहीं कहा जाता था कि वह कांग्रेस पार्टी और यूपीए सरकार के संकट मोचन हैं। उन्हें राष्ट्रपति बने अभी दो महीने का भी समय नहीं हुआ यानी कांग्रेस का संकट मोचन हटे दो महीने नहीं हुए और यह सरकार डांवाडोल हो गई है। प्रणब दा की अनुपस्थिति में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खुद पार्टी और सरकार की बागडोर सम्भाली। यह कितनी सफल नेता हैं दो महीने में पता चल गया। इस दौरान सरकार का और विपक्ष का सिर्प टकराव ही हुआ है। रही बात टाइमिंग की तो पता नहीं मनमोहन सिंह ने क्या सोच कर एक और डीजल और एलपीजी मूल्यों में वृद्धि की और अभी जनता इससे सम्भली ही नहीं थी कि एफडीआई की नई समस्या खड़ी कर दी। क्या एफडीआई और डीजल, एलपीजी मूल्यों के साथ-साथ लाना जरूरी था। नतीजा यह हुआ कि तमाम विपक्ष एकजुट हो गया। भारत बन्द ने यह तो साबित कर ही दिया कि लोकसभा के बहुमत सांसद सरकार के खिलाफ है। चाहे वह भाजपा हो, सपा हो या फिर वाम मोर्चा हो सभी आज सरकार के खिलाफ खड़े हैं। ममता लगता है अब मानने वाली नहीं। उनकी अपनी मजबूरियां हैं। प. बंगाल में उनका मुकाबला वाम मोर्चा से है। ममता एक मिनट के लिए डीजल कीमतों पर सौदेबाजी कर सकती थी पर एफडीआई पर वह किसी कीमत पर यह समझौता नहीं कर सकतीं। अगर वह करती हैं तो प. बंगाल में वाम मोर्चा इसका फायदा उठाकर ममता के खिलाफ चुनावी मुद्दा बना सकता है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर खुले आरोप लग रहे हैं कि वह आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक के सिद्धांत से प्रेरित होकर फैसले ले रहे हैं, उन्हें अमेरिका की ज्यादा चिन्ता है बनिस्पत भारत के। यूपीए सरकार में कांग्रेस सबसे बड़ा घटक दल है, इसलिए उसे सभी दलों को विश्वास में लेकर चलना चाहिए। ऐसा लगता है कि 2004 में गठबंधन सरकार चलाने के बावजूद कांग्रेस आठ साल बाद भी गठबंधन की राजनीति को लेकर सहज नहीं हो पाई है और जब-तब अहंकार उसके आड़े आ जाता है। वह यह भूल जाती है कि 1991 की नरसिंह राव की अगुवाई वाली अल्पमत सरकार बनाने के बाद से उसकी स्वीकार्यता उस स्तर को नहीं छू सकी है जिसके जरिये वह अपने दम पर सरकार बना लेती थी या चला सकती है। पिछली बार भी उसे 205 सीटें ही मिली थीं और वह घटक दलों के समर्थन से ही चल रही है पर इसके बावजूद कांग्रेस में आज अहंकार इतना हावी हो गया है कि वह जरूरी से जरूरी फैसलों पर भी महत्वपूर्ण घटक दलों से सलाह मशविरा नहीं करती और एकतरफा फैसला लेकर उम्मीद करती है कि घटक दल उसकी मदद करने पर मजबूर होंगे। आज अगर सीबीआई का हौवा नहीं होता तो दोनों मुलायम और मायावती कांग्रेस को उनकी सही औकात दिखा देते। वैसे भी सपा और बसपा विश्वसनीय सहयोगी नहीं कहे जा सकते और फिलहाल तो ये दोनों भी कठोर रवैया अपनाए हुए हैं और सरकार को अहंकारी और जन विरोधी बता रहे हैं। संप्रग के एक अन्य घटक दल द्रमुक ने जिस तरह भारत बन्द में शामिल होकर कांग्रेस को एक झटका दिया है, द्रमुक के इस फैसले से यह स्पष्ट है कि वर्तमान में कोई भी दल सरकार के साथ खड़ा दिखने को तैयार नहीं है। बेहतर हो कि कांग्रेस के नीति-नियंता इस बारे में विचार करें कि ऐसी स्थिति क्यों बनी? कांग्रेस यह कह कर आम जनता और सहयोगी दलों को प्रभावित नहीं कर सकती कि वह आर्थिक सुधारों के प्रति प्रतिबद्ध है और उनसे पीछे हटने वाली नहीं। कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता ने हाल ही में जो फैसले लिए हैं उन्हें पूरी तौर पर आर्थिक सुधार की संज्ञा देना कठिन है। डीजल के दामों में वृद्धि और रिटेल कारोबार में विदेशी पूंजी को अनुमति देने के फैसले को वास्तविक आर्थिक सुधार मानना कठिन है। तेल कम्पनियां डीजल मूल्य के मामले में अभी भी सरकार की मोहताज हैं इसी तरह रिटेल कारोबार में विदेश पूंजी को अनुमति देने का फैसला तब तक आधा-अधूरा ही है जब तक उस पर राजनीतिक सहमति नहीं बन जाती। हमारी नजर में भारत बन्द सफल रहा। भाजपा ने इसकी सफलता के लिए बहुत मेहनत की। बन्द को सफल बनाने के लिए पार्टी ने अपने 50 नेताओं को अलग-अलग शहरों में भेजा। भारत बन्द में गिरफ्तारी देते समय सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा कि फिलहाल उनका समर्थन यूपीए के साथ है लेकिन यह कब तक रहेगा कह नहीं सकते। इसका मतलब है कि वो बसपा के फैसले का इंतजार करेंगे। मायावती आगामी 10 अक्तूबर को आगे का रास्ता तय करेगा। चूंकि मुलायम सिंह राजनीति में मंझे हुए खिलाड़ी हैं इसलिए वो नहीं चाहेंगे कि वह माया से पहले अपने पत्ते खोलें। इतना तय है कि मनमोहन सिंह सरकार के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह जरूर लग गया है। कुछ लोगों का तो यहां तक मानना है कि यूपीए सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई है।
Friday, 21 September 2012
देश में बढ़ते बलात्कार और वारदातें ः 2012 में 29.27 फीसद वृद्धि
Published on 21 September, 2012
मंजिल एक पर रास्ते अलग-अलग ः अन्ना हजारे
Published on 21 September, 2012
अन्ना हजारे ने साफ कर दिया है कि वह राजनीतिक दल का गठन करने के अपने सहयोगी अरविन्द केजरीवाल के प्रस्ताव से सहमत नहीं हैं। अपने गांव रालेगण सिद्धि में अन्ना ने अपने संगठन भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन को सक्रिय करने का जो फैसला किया है उसके बाद इस आंदोलन की दो अलग-अलग दिशाएं तय हो गई हैं। एक ओर अब अरविन्द केजरीवाल हैं जो दो अक्तूबर को एक राजनीतिक पार्टी शुरू करने का ऐलान कर चुके हैं, दूसरी ओर अन्ना ने अपने पुराने गैर राजनीतिक संगठन को फिर से सक्रिय करके राजनीति से दूर रहने का साफ संकेत दे दिया है। भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन अन्ना हजारे का पुराना संगठन है, जिसके तहत उन्होंने महाराष्ट्र में कई आंदोलन किए थे। अन्ना ने मंगलवार को कहा कि केजरीवाल के पार्टी बनाने का मतलब होगा भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने का एक समान लक्ष्य पाने के लिए अलग-अलग रास्ता अपनाना। अन्ना हजारे ने कहा कि मैंने तय किया है कि मैं किसी राजनीतिक दल का गठन नहीं करूंगा और चुनाव भी नहीं लड़ूंगा। अन्ना से पूछा गया था कि क्या केजरीवाल के नई राजनतीकि पार्टी का गठन करने में उन दोनों के बीच दरार आ जाएगी। अभी तक ऐसा नहीं लग रहा था कि अन्ना हजारे राजनीतिक पार्टी के विचार के खिलाफ हैं या वह राजनीति में लिप्त नहीं होना चाहते, लेकिन अब शायद उन्हें लगा हो कि राजनीति की कीचड़ से उनकी छवि को दाग लग सकते हैं। वह अब कह रहे हैं कि वह राजनीति से दूर रहेंगे, पर चुनावों में ईमानदार और स्वतंत्र उम्मीदवारों को समर्थन दे सकते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चे में सिर्प यही दरार नहीं है। अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी के बीच भी मतभेद सामने आ गए हैं। इसके अलावा अन्ना की टीम के प्रमुख सदस्य भी अपनी-अपनी राह पकड़ सकते हैं क्योंकि भ्रष्टाचार विरोध के अलावा अन्य मुद्दों पर उनकी राय अलग-अलग नजर आ रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अन्ना हजारे एक नेक नीयत, ईमानदार और मेहनती व्यक्ति हैं, लेकिन तमाम राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर उनका कोई व्यापक नजरिया नहीं है। दूसरी ओर अरविन्द केजरीवाल एक बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं जो आमतौर पर लेफ्ट की भाषा बोलते हैं। हाल ही में उन्होंने एक सर्वेक्षण कराया। इंडिया अगेंस्ट करप्शन द्वारा किए गए सर्वे में निष्कर्ष निकला कि 7,37,041 लोगों में से 5,61,701 ने एक राजनीतिक पार्टी बनाने का समर्थन किया। सर्वे में 76 फीसदी ने पार्टी बनाने और 24 फीसदी ने विरोध में राय दी है। पुणे में सामाजिक कार्यकर्ताओं से बैठक के बाद अन्ना शाम को नई दिल्ली पहुंचे। उन्होंने कहा कि जो लोग चुनाव नहीं लड़ना चाहते उन्हें एक बड़ा आंदोलन खड़ा करना होगा। पिछले साल अगस्त के रामलीला मैदान आंदोलन से भी बड़ा। अन्ना ने आंदोलन के बदलते रंग को देखते हुए जेपी आंदोलन का भी जिक्र किया। यह भी कहा कि जय प्रकाश नारायण को क्या पता था कि उनके आंदोलन से लालू प्रसाद जैसे नेता निकलेंगे। इस बात की क्या गारंटी है कि हमारे पास ऐसे लोग नहीं होंगे। उन्होंने कहा, `मेरी अपील तो यह है कि चुनाव मत लड़ो। जो भी लड़ना चाहता है लड़े। आखिर हमारी मंजिल तो एक ही है बेशक रास्ते अलग-अलग।'
Thursday, 20 September 2012
देश में सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने के पीछे साजिश है
Published on 20 September, 2012
जिस तरीके से उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों में दंगा-फसाद हो रहा है उससे तो यही लगता है कि कुछ ताकतें देश में अराजकता, सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने में लगी हुई हैं। शुक्रवार को गाजियाबाद के मसूरी थाना क्षेत्र के आध्यात्मिक नगर स्टेशन के पास एक धार्मिक पुस्तक के पन्ने पर अपशब्द लिखे होने की अफवाह फैली जिसकी शिकायत मसूरी पुलिस से की गई थी। शाम को मसूरी में मामला दर्ज किया जा रहा था कि इसी बीच भारी संख्या में एक समुदाय के लोग थाने पहुंचे और उपद्रव शुरू कर दिया। हिंसक भीड़ ने एनएच-24 को जाम कर थाने में तोड़फोड़ और आगजनी की। पुलिस ने हालात पर काबू पाने के लिए बल प्रयोग किया तो भीड़ की ओर से गोलीबारी व पथराव होने लगा। तब पुलिस ने भी फायरिंग की। दोनों तरफ से फायरिंग और पथराव में छह लोग मारे गए तथा दर्जनों घायल हुए। मरने वालों में नाहल निवासी आसिफ, पिपलैड़ा निवासी वाहिद, दियरा का निवासी लुकमान, कबीर नगर निवासी आमिर, डासना निवासी वसीम तथा मसूरी निवासी हयात के रूप में हुई। वसीम बीटेक का छात्र था। उपद्रव के दौरान एसपी देहात जगदीश शर्मा, दरोगा रमेश चन्द, हैड कांस्टेबल रूप चन्द, कांस्टेबल जनरेवर सैनी समेत दूसरे पक्ष के भी कई लोग घायल हो गए। फिलहाल हालात प्रशासन के नियंत्रण में है। लेकिन इस घटना से जो सवाल खड़े हुए हैं वे जरूर बड़े हैं और महत्वपूर्ण भी। पहले असम हिंसा, फिर मुंबई में उपद्रव और इस क्रम में पूर्वोत्तर के लोगों के पलायन के बाद इस बात के पुष्ट संकेत थे कि देश की आबोहवा में जहर घोलने की साजिश चल रही है। बाद में देश के कई अन्य हिस्सों, खासकर उत्तर प्रदेश में ऐसी घटनाएं घटीं जिनसे अन्देशा हुआ कि कुछ शक्तियां देश के अन्दर और बाहर ऐसी हैं जो हमारे सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने में तुली हुई हैं। यहां तक कि एक पखवाड़ा पहले उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे दिल्ली के मयूर विहार फेज-1 में भी मामूली विवाद के बाद व्यापक हिंसा और आगजनी हुई थी। अब गाजियाबाद में यह हुआ। प्रश्न जरूर उठता है, क्या वजह है कि तमाम पुख्ता अन्देशों के बाद आखिर एक छोटी-सी चिंगारी को जानलेवा आग में बदलने से नहीं रोका जा सका? सवाल हमारी गुप्तचर एजेंसियों पर भी उठता है कि क्या वजह है कि उन्हें समय रहते इन साजिशों का आभास नहीं होता? साथ ही स्थानीय प्रशासन क्या सो रहा था, उसे इस माहौल का पता नहीं चला? सपा की अखिलेश यादव की सरकार राज्य में कानून व्यवस्था सुरक्षित रखने में नाकाम साबित हो रही है। इन तत्वों का पता लगाना अत्यंत जरूरी है जो देश में सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का पूरा प्रयास कर रहे हैं, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि आज जनता में भारी असंतोष है और कोई भी मौका मिले वह सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर कर उपद्रव और आगजनी करने से नहीं चूकते। कुछ हद तक पुलिस का खौफ भी कम होता जा रहा है। पुलिस को भी हम दोष नहीं दे सकते क्योंकि राजनेता उन्हें स्पष्ट आदेश देने से कतराते हैं। इस वोट बैंक पालिटिक्स ने देश को तबाह कर दिया है। लगता है कि हम एक ज्वालामुखी पर बैठे हैं जो कभी भी फट सकता है।
इस बार टी-20 वर्ल्ड कप किसी की भी झोली में जा सकता है
Published on 20 September, 2012
अनिल नरेन्द्र
आखिर खत्म हो गया क्रिकेट प्रेमियों का इंतजार। पूरी दुनिया एक बार फिर फटाफट क्रिकेट का आनन्द उठाने को तैयार है। टी-20 वर्ल्ड कप 2012 का आगाज हो चुका है। इस बार आयोजन श्रीलंका में हो रहा है। श्रीलंका में अगले 20 दिनों तक 12 टीमों के बीच रोमांच की नई कहानी लिखी जाएगी। एक विकेट से मैच का रुख बदलेगा तो एक रन से जीत का फैसला तय होगा। कुछ मैच सुपर ओवर तक भी जा सकते हैं। गेंद और बल्ले की जंग में ग्लैमर का तड़का भी लगेगा, मतलब मनोरंजन की होगी पूरी गारंटी। कई नए रिकार्ड बनेंगे, कई पुराने टूटेंगे। उपमहाद्वीप की पिचें हमेशा से रोमांचक क्रिकेट के लिए मशहूर रही हैं। लिहाजा इस बार का टी-20 वर्ल्ड कप भी रोमांचक होगा, इसमें कोई शक नहीं है। टी-20 वर्ल्ड कप की विजेता टीम को 10 लाख डॉलर मिलेंगे। उपविजेता को पांच लाख डॉलर। सेमीफाइनल में पहुंचने वाली टीम को 2,50,000 डॉलर मिलेंगे। इस बार का टी-20 वर्ल्ड कप शायद सबसे खुला टूर्नामेंट है। इस बार टी-20 विश्व कप का खिताब कौन जीतेगा या फिर कौन-सी दो टीमें फाइनल में पहुंचेंगी, अनुमान लगाना थोड़ा मुश्किल है। वैसे भी टी-20 खेल में किसी प्रकार की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। क्योंकि खेल में कई रोचक उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं। मैच के दिन कौन-सी टीम अच्छा प्रदर्शन करती है, इस पर उस दिन हार-जीत निर्भर करती है। कागजों में बेशक आप बहुत मजबूत दिखो पर उस दिन आप अच्छा नहीं खेलोगे तो हार जाओगे। पहले सत्र की चैंपियन टीम इंडिया श्रीलंका की धीमी पिचों में जरूर एक बार फिर खिताब अपने नाम करने की पूरी कोशिश करेगी पर पाकिस्तान के साथ खेल अभ्यास मैच में एक बॉलर की कमी महसूस हुई। सात बल्लेबाजों को खिलाने का कोई तुक नहीं। एक बल्लेबाज को कम कर एक स्पिनर को लेना बेहतर होगा। पाकिस्तानी टीम अप्रत्याशित प्रदर्शन में माहिर है। मोहम्मद हफीज की टीम इस बार बेहद संतुलित दिखती है। आस्ट्रेलिया को हराकर यहां पहुंची इस टीम का मनोबल ऊंचा है। भारत को अभ्यास मैच में हराकर भी पाकिस्तान का आत्मविश्वास बढ़ा होगा। मेजबान श्रीलंका भी एक संतुलित टीम है। अच्छे धुआंधार बल्लेबाजों के साथ मलिंगा जैसा टी-20 बॉलर भी उनके पास है। वेस्टइंडीज में क्रिस गेल अगर चल गए तो उस दिन उनके सामने कोई बॉलर, टीम नहीं टिक सकती। आस्ट्रेलिया भी अच्छी टीम है। जार्ज बैली की कप्तानी वाली आस्ट्रेलियाई टीम अभी तक टी-20 प्रारूप में अपना लोहा नहीं मनवा सकी है। चैंपियन इंग्लैंड को पिछले मैन ऑफ द टूर्नामेंट केविन पीटरसन की कमी खलेगी। विवादों से घिरे रहने वाला यह बिग हिटर टी-20 और वन डे क्रिकेट से संन्यास ले चुका है। इंग्लैंड क्रिकेट ने टी-20 क्रिकेट खेलते रहने की उसकी गुजारिश ठुकरा दी थी। एबी डिविलियर्स की दक्षिण अफ्रीकी टीम ने अभी तक एक भी आईसीसी ट्रॉफी नहीं जीती है। दबाव के आगे घुटने टेकने के लिए बदनाम दक्षिण अफ्रीका इस बार चोकर्स का दाग धोना चाहेगी। वेस्टइंडीज और न्यूजीलैंड छुपे रुस्तम साबित हो सकते हैं। कैरेबियाई टीम जरूर चाहेगी कि क्रिस गेल आईपीएल फार्म में रहें जिसके दम पर उन्होंने राष्ट्रीय टीम में वापसी की। कैरेबियाई टीम संघर्षरत थी, लेकिन जब से गेल ने वापसी की है टीम ने पिछले कुछ महीनों में अच्छे नतीजे दिए हैं। न्यूजीलैंड के पास डेनियल विटोरी जैसे स्पिनर हैं जिसे पिच से मदद मिलेगी। अफगानिस्तान, आयरलैंड के अलावा जिम्बाब्वे भी अच्छा प्रदर्शन देंगे। अब बात करते हैं टीम इंडिया की। भारतीय टीम 2007 में उद्घाटन टूर्नामेंट जीतने के बाद से उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है। बेशक उनके पास अच्छे बल्लेबाज हैं जो एक अच्छा स्कोर बोर्ड पर टांग सकते हैं पर हमारी बालिंग में भी तो इतना दम हो कि हम विरोधी टीम को रन चेस में थाम सकें। अभ्यास मैच में जिस तरीके से पाकिस्तानी बल्लेबाजों ने रन चेस किया और हम उन्हें अतिरिक्त रन देने से रोक नहीं सके जो दो टीमों के बीच हार-जीत का अन्तर पैदा करती है। युवराज सिंह का टीम में लौटना भारतीय क्रिकेट के लिए शुभ संकेत है। युवी वही खिलाड़ी हैं जिन्होंने इंग्लैंड के स्टुअर्ट ब्राड की छह गेंदों में छह छक्के लगाकर मैच का रुख पलट दिया। ब्राड अब इंग्लैंड टीम के कप्तान हैं। भारत को ग्रुप `ए' स्टेज में ही इंग्लैंड से भिड़ना है और यहां देखना रोचक होगा कि इस बार ब्राड के पास मुस्कराने का मौका होगा या फिर युवराज उनकी गेंदों पर छक्के उड़ाएंगे? इस बार टूर्नामेंट में मुकाबला बराबरी का है। कोई भी दावेदार नहीं है और किसी खास दिन किए गए टीम का प्रदर्शन ही महत्व रखता है नाकि उनकी प्रतिष्ठा या पेपर पर दावेदारी।
Wednesday, 19 September 2012
डूसू में एनएसयूआई की धमाकेदार जीत
Published on 19 September, 2012
दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन (डूसू) चुनाव में कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई को शानदार सफलता मिली है और भाजपा की इकाई एबीवीपी का सूपड़ा साफ हो गया है। एनएसयूआई चारों सीटों में जीत गई है। 2007 के बाद डीयू की राजनीति में लगातार कमजोर हो रही एनएसयूआई को संजीवनी मिल गई है। एनएसयूआई अच्छे खासे अन्तर से प्रेजिडेंट, वाइस प्रेजिडेंट व सैकेटरी की पोस्ट पर कब्जा करने में सफल रही। डूसू की हिस्ट्री में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी पोस्ट पर मुकाबला टाई रहा। ज्वाइंट सैकेटरी के लिए हुए चुनाव में दोनों संगठनों को बराबर-बराबर वोट मिले। चुनाव परिणाम ने भारतीय जनता पार्टी को पूरी तरह सकते में ला दिया है और वह समझ नहीं पा रही है कि आखिर छात्रों ने यह कैसा जनादेश दिया है कि तमाम विपरीत मुद्दों की भरमार के बाद भी उनकी समर्थित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की करारी हार ही नहीं हुई अपितु छात्र संघ में उसका सूपड़ा ही साफ हो गया जो वर्तमान हालातों में पार्टी के लिए पचाना आसान नहीं होगा। दूसरी तरफ एनएसयूआई की इस जीत ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में एक नई संजीवनी का संचार कर दिया है और उन्हें यह कहने का मौका मिल गया है कि दिल्ली के युवाओं ने साफ संदेश दे दिया है कि वह कांग्रेस पार्टी और उसकी नीतियों के साथ हैं। राजधानी में अन्ना हजारे के द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए आंदोलन में भारी तादाद में उस समय युवाओं ने भागीदारी दर्ज की थी। स्कूल और कॉलेज सभी के छात्र अन्ना की टोपी पहने नजर आते थे जिसे लेकर भाजपा कहीं ज्यादा उत्साहित थी और उसे लग रहा था कि कांग्रेस विरोधी युवाओं में जो लहर है उसका लाभ उन्हें ही मिलेगा और इस बात को वह पक्का मानकर चल रही थी कि डूसू चुनाव में तो उनका परचम फहराना तय है। एबीवीपी को लगा कि जिस तरह से देश में भ्रष्टाचार, महंगाई से लोग परेशान हैं उसके चलते डूसू चुनाव में लोग एनएसयूआई को वोट नहीं देंगे। वोटिंग के कुछ घंटे पहले जब डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई तो यह कांफिडेंस और भी बढ़ गया पर एनएसयूआई ने बेहतर रणनीति से चुनाव लड़ा और राष्ट्रीय मुद्दों को इस चुनाव में आने ही नहीं दिया। बीजेपी की ओर से भी एबीवीपी को कोई खास सपोर्ट नहीं मिली जबकि कई सीनियर कांग्रेस लीडर चुनाव में कूद पड़े और हर स्तर पर अपनी छात्र इकाई की मदद की। पैसा भी पानी की तरह बहाया। कोड ऑफ कंडक्ट के मुताबिक कोई उम्मीदवार पांच हजार से ज्यादा खर्च नहीं कर सकता पर पार्टी ने यह कमी पूरी कर दी। बताया जाता रहा है कि इस बार कांग्रेस ने चुनाव के लिए करोड़ों का बजट रखा और उम्मीदवारों को पैसे की कमी नहीं होने दी जबकि एबीवीपी के एक सीनियर छात्र नेता का कहना है कि उन्हें बीजेपी से कोई मदद नहीं मिली। कांग्रेस ने इस चुनाव को बहुत गम्भीरता से लिया और अपनी पूरी ताकत झोंक दी। एमएलए, पार्षदों, मुख्यमंत्री सभी ने मोर्चा सम्भाल रखा था। डीयू में रिजर्व कैटेगरी की खाली सीटों का मुद्दा काफी गरमाया और इन सीटों को इस बार जनरल कैटेगरी में तब्दील नहीं होने दिया। एचआरडी मंत्रालय के आदेश पर कॉलेजों को ज्यादा दाखिले करने पड़े। इसका असर देखने को मिला। वोटिंग पर्सेंटेज 29 से बढ़कर 40 तक पहुंच गया। माना जा रहा है कि बम्पर एडमिशन का फायदा एनएसयूआई को हुआ है। एनएसयूआई के प्रवक्ता का कहना है कि एबीवीपी ने डूसू चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों को उछाला और छात्रों के हितों वाले मसले पीछे रह गए जबकि स्टूडेंट्स ने राष्ट्रीय मुद्दों को महत्व नहीं दिया। खास बात यह है कि डूसू चुनाव में फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स ही ज्यादा वोट करते हैं और उन्हें अपने पक्ष में लाने में एबीवीपी नाकाम रही। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने हाथोंहाथ इस जीत को भुना भी लिया। उन्होंने व उनके समर्थकों ने इसको मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के स्वच्छ प्रशासन का परिणाम बताते हुए छात्रों का जनादेश बताया है। उनका कहना है कि भाजपा ने इस चुनाव में भी घटिया हथकंडे अपनाए और झूठ के सहारे चुनाव जीतने का सपना देखा था जिसे छात्रों ने चकनाचूर कर दिया, अब उसे बहानों का सहारा नहीं लेना चाहिए। इस जीत से मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का कद बढ़ा है। खुद मुख्यमंत्री की पीठ पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने थपथपाई है, क्योंकि कांग्रेस विरोधी माहौल में इसे रोशनी की किरण मान रहे हैं।
Subscribe to:
Posts (Atom)