Tuesday, 16 November 2021
प्रजापति को आखिरी सांस तक कारावास
सपा की पूर्ववर्ती सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे गायत्री प्रजापति और उसके दो सहयोगियोंöअशोक तिवारी एवं आशीष शुक्ला को एमपी कोर्ट/एमएलए कोर्ट ने शुक्रवार को उम्रकैद की सजा सुनाई है। अदालत ने तीनों को अंतिम सांस तक जेल में रखने का आदेश दिया है। सामूहिक दुराचार एवं नाबालिग के साथ दुष्कर्म मामले में विशेष न्यायाधीश पवन कुमार राय ने तीनों पर दो-दो लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि तीनों आरोपियों को अपना शेष जीवन जेल में गुजारना होगा। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि दोषियों द्वारा किया गया अपराध गंभीर प्रकृति का है जिसका समाज पर असर पड़ता है। सुनवाई के समय सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता एसएन राय एवं विशेष अधिवक्ता रमेश कुमार शुक्ला का कहना था कि सर्वोच्च न्यायालय के 16 फरवरी 2017 को दिए गए आदेश के बाद मामला गौतम पल्ली थाने में 18 फरवरी 2017 को गायत्री प्रसाद प्रजापति, अशोक तिवारी, अमरेंद्र सिंह उर्प पिंटु सिंह, विकास शर्मा, चव्रपाल, रूपेश एवं आशीष कुमार के विरुद्ध दर्ज किया गया था। इस मामले की विवेचना के बाद पुलिस ने धारा 37डी, 354ए(1), 509, 504, 506 भारतीय दंड संहिता एवं धारा 5जी धारा 6 लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आरोप पत्र प्रषित किया था। पीड़िता ने प्रजापति और उसके साथियों के विरुद्ध सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाते हुए उनकी नाबालिग बेटी के साथ भी जबरन शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की थी जिसकी शिकायत भी दर्ज कराई गई थी। निर्णय सुनाए जाने के समय अदालत साक्षी पीड़िता, साक्षी राम सिंह, अंतिम साक्षी अंशु गौड़ के प्रति संतोषजनक नहीं रही। इन गवाहों पर न्यायालय का सहयोग न करने, समय से साक्ष्य पेश न करने और कोर्ट के सामने झूठ का साथ देने का भी आरोप लगा। विशेष अदालत ने 72 पेज के आदेश में कहा कि धारा 76डी के अनुसार अर्थदंड की धनराशि पीड़िता को दिए जाने का प्रावधान है परन्तु इस मामले में पीड़िता (मां) का आचरण ऐसा नहीं रहा कि उसे जुर्माने का भुगतान किया जाए। जहां तक द्वितीय पीड़िता (बेटी) का प्रश्न है, उसके द्वारा उपरोक्त कृत्य अपनी मां वादिनी मुकदमा के दबाव में किया जाना माना जा सकता है। इस मामले में पीड़िता वास्तव के पीड़ित हैं जिसको पुनर्वास की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में अर्थदंड की संपूर्ण छह लाख रुपए की राशि द्वितीय पीड़िता को दी जाएगी। फैसले की प्रति मजिस्ट्रेट लखनऊ को भेज दी गई है। 2017 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मामला दर्ज हुआ था।
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