Tuesday 30 November 2021

सवाल दागी राजनेताओं पर ताउम्र पाबंदी लगाने का?

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या वह उन राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने पर विचार करने को तैयार है, जिन्हें अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की पीठ ने वकील अश्विनी उपाध्याय की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से यह सवाल पूछा। न्यायमूर्ति रमण के साथ पीठ में न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी थे। न्यायाधीशों ने कहा कि जब तक केंद्र चुनाव आयोग की राय लेने के बाद लोक प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन का निर्णय नहीं लेता है, तब तक अदालत के लिए इस मुद्दे पर फैसला करना मुश्किल है। राजू ने जवाब दिया कि वह सरकार के निर्देश लिए बिना कुछ भी नहीं कह सकते। उपाध्याय की जनहित याचिका में दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। याचिका जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 के दायरे को इस हद तक चुनौती देती है, जब यह व्यक्तियों को निर्दिष्ट अपराधों के लिए सजा दिए जाने पर केवल कुछ वर्षों की अवधि के लिए चुनाव लड़ने से रोकती है। याचिकाकर्ता उपाध्याय ने पीठ से आजीवन प्रतिबंध की मांग वाली अपनी जनहित याचिका में उठाए गए मुख्य मुद्दे पर सुनवाई करने का आग्रह किया था। उन्होंने तर्प दियाöएक दोषी व्यक्ति क्लर्प नहीं बन सकता, लेकिन मंत्री बन सकता है। यह मनमानी है। न्यायमूर्ति रमण ने चुटकी लेते हुए कहाöअश्विनी उपाध्याय ने 18 याचिकाएं दायर की हैं। मैं चाहता हूं कि अश्विनी उपाध्याय और एनएल शर्मा के मामलों की सुनवाई के लिए एक विशेष अदालत की जरूरत है। उपाध्याय की याचिका पर अदालत ने मौजूदा और पूर्व सांसदों/विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनाने के लिए कई आदेश पारित किए हैं। अदालत मुख्य रूप से इस मुद्दे पर चर्चा कर रही थी कि क्या मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय मामलों में सेशन अदालत स्तर पर बनाई गई विशेष एमपी/एमएलसी अदालतों को सौंपा जा सकता है। पीठ ने स्पष्ट किया कि उसके आदेशों का गलत अर्थ नहीं निकाला जा सकता है कि मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय मामलों को सेशन अदालत को सौंपा जाना है। पीठ ने कहाöइस अदालत के निर्देश पूर्व और मौजूदा विधायकों से संबंधित आपराधिक मामलों को सेशन अदालतों या जैसा भी मामला हो, मजिस्ट्रियल अदालतों को सौंपने और आवंटित करने का आदेश देते हैं। यह लागू कानून के शासी प्रावधानों के अनुसार होना चाहिए। परिणामस्वरूप जहां दंड संहिता के तहत एक मजिस्ट्रेट द्वारा मामला विचारणीय है। मामले को अधिकार क्षेत्र वाले मजिस्ट्रेट की अदालत को सौंपना/आवंटित करना होगा और इस अदालत के दिनांक चार दिसम्बर 2018 के आदेश को एक निर्देश के रूप में नहीं माना जा सकता है।

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