Thursday, 11 November 2021

नोटबंदी के पांच साल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवम्बर 2016 को जब आधी रात से 500 और 1000 रुपए के उन नोटों को बंद करने की घोषणा की थी जो उस समय चलन में थे तो ऐसा करने के पीछे कुछ कारण बताए थे। इनमें काले धन पर रोक, आतंकवाद और नक्सलवाद के धन स्रोतों पर रोक और धन के डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना प्रमुख थे। सोमवार को नोटबंदी के पांच साल पूरे हो गए। इन पांच सालों में धन का डिजिटल लेनदेन तो बढ़ा, लेकिन काला धन न तो खत्म हुआ और रही आतंकवाद की बात तो वह बढ़ गया है। नोटबंदी में सौ से ज्यादा परिवार उजड़ गए। मिडिल क्लास महिलाओं की तमाम जीवन की बचत निकल गई। बैंकों के बाहर लंबी-लंबी लाइनें देखी गईं। कुछ ने तो वहां दम तोड़ दिया। लाखों परिवार सड़क पर आ गए और रही बात चलन में नोटों की संख्या कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के ताजा आंक़ड़ों के अनुसार मूल्य के हिसाब से चार नवम्बर 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपए के नोट चलन में थे, जो 29 अक्तूबर 2021 को 29.17 लाख करोड़ रुपए हो गए। आरबीआई के मुताबिक 30 अक्तूबर 2020 तक चलन में नोटों का मूल्य 26.88 लाख करोड़ था। 29 अक्तूबर 2021 तक इसमें 2,28,963 करोड़ रुपए की वृद्धि हो गई। दरअसल कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों ने अहतियात के रूप में नकदी रखना बेहतर समझा। इसी कारण चलन में बैंक नोट पिछले वित्त वर्षों के दौरान बढ़ गए। नोटबंदी के पांच साल के बाद नकदी का चलन जरूर बढ़ा है, लेकिन इस दौरान डिजिटल लेनदेन भी तेजी से बढ़ा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार डेबिट-क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग और यूनिफाइड पेमेंट्स ट्रांसफर (यूपीआई) जैसे माध्यमों से डिजिटल भुगतान में भी बड़ी वृद्धि हुई है। भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) का यूपीआई देश में भुगतान के एक प्रमुख माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा है। इन सबके बावजूद चलन में नोटों का बढ़ना धीमी गति से ही सही, लेकिन जारी है। इसे आसान शब्दों में कहा जाए तो अर्थव्यवस्था में नकदी का बोलबाला है। कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन के दौरान लोगों ने अपने पास काफी नकदी रखी ताकि रोजमर्रा के सामान और दवाओं, हॉस्पिटल के बिल इत्यादि को आसानी से निपटाया जाए। त्यौहारी सीजन में भी नकदी की मांग बनी रही, क्योंकि ज्यादातर दुकानदार नकदी लेनदेन पर निर्भर रहे। नकदी के चलन में वृद्धि का कारण औपचारिक अर्थव्यवस्था भी है, पैरेललइकोनॉमी भी है। छोटे व्यवसायी डिजिटल लेनदेन से बचते हैं, उन्हें सामान अल्प मात्रा में चाहिए होता है। उन्हें लगता है कि डिजिटल लेनदेन में पैसा पाने के लिए बैंकों की मदद लेनी पड़ती है और इससे दोनों झंझट और पैसे की कटौती आती है। दूसरी ओर काला धन रखने वालों के ]िलए आसानी हो गई, क्योंकि अब उन्हें 2000 का नोट मिल जाता है। कुल मिलाकर नोटबंदी से नुकसान, फायदे से ज्यादा हुआ है। आज जो अर्थव्यवस्था का हाल है उसके पीछे नोटबंदी एक बहुत बड़ा कारण है।

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