Friday, 26 November 2021
मठ-मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्ति मिले
राजधानी दिल्ली अभी किसानों के आंदोलन से मुक्त भी नहीं हुई अब साधु-संतों ने सरकार को राष्ट्रवादी आंदोलन की चेतावनी दे दी है। देश के कई हिस्सों से साधु-संत दक्षिणी दिल्ली के कालकाजी मंदिर में इकट्ठा हुए और मठ-मंदिर मुक्ति आंदोलन की शुरुआत की। संतों ने कहा कि हम केंद्र और राज्य सरकारों को शांति से मनाएंगे, अगर नहीं मानेंगी तो शस्त्र भी उठाएंगे। मंच से कई अखाड़ों, आश्रमों और मठों के साधु-संतों ने आक्रामक तेवर दिखाए। इस दौरान किसान आंदोलन का भी जिक्र हुआ। ज्यादातर साधु-संतों का कहना था कि जब मुट्ठीभर किसान दिल्ली के कुछ रास्ते रोककर, जमकर बैठ गए तो सरकार को झुकना पड़ा, फिर भला साधु-संतों से ज्यादा अड़ियल कौन होगा? जरूरत पड़ी तो रास्तों पर साधु-संत अपना डेरा बनाएंगे। यानि दिल्ली को स्पष्ट संदेश हैöएक और बड़े आंदोलन के लिए तैयार रहो। धर्म और आस्था से जुड़े होने की वजह से यह आंदोलन जितना महत्वपूर्ण है, उससे भी ज्यादा अहम इसके आयोजन का जिम्मा लेने वाले महंत का परिचय है। दरअसल इस आंदोलन के आगाज के लिए कार्यक्रम का आयोजन अखिल भारतीय संत समिति ने किया। समिति के अध्यक्ष महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत हैं। महंत सुरेंद्र नाथ एक और वैश्विक संस्था, विश्व हिन्दू महासंघ के राष्ट्रीय अंतरिम अध्यक्ष भी हैं। आंदोलन के बारे में बातचीत करते हुए एक और संत ने कहा-जब आस्तिक सरकार सत्ता में आई तो राम मंदिर बना, लेकिन हमारा आंदोलन राम मंदिर जितना लंबा नहीं जाएगा, क्योंकि अब सत्ता नास्तिकों के हाथ में नहीं है। उन्होंने कहाöदेश के अगले चुनाव से पहले-पहले हम एक व्यापक आंदोलन खड़ा करेंगे ताकि जब दोबारा सरकार बने, तो सबसे पहले मठ-मंदिरों को सरकार के कब्जे से मुक्त करने के लिए कानून बनाए। साधु-संतों ने मंदिरों और मठों को स्वतंत्र कराने का संकल्प लिया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार कानून बनाकर सरकारी नियंत्रण वाले सभी मठ-मंदिरों को संबंधित संप्रदायों और संस्थानों को सौंपने का निर्णय करे। महंत अवधूत ने कहा कि कर्नाटक में कई मंदिर समाप्त होने की कगार पर हैं, जबकि मंदिरों से होने वाली कमाई पर सरकार का कब्जा है, वहीं मंदिरों के बोर्ड में विधर्मियों को सरकारों ने जगह दी है, जिन्हें धर्म और मंदिर से कोई सरोकार नहीं है। ऐसे में सकार मंदिरों को उनसे संबंधित संप्रदायों और संस्थाओं को सौंपे।
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