Sunday, 7 November 2021
पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने का सियासी फैसला?
केंद्र सरकार ने दीपावली की पूर्व संध्या पर पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटा दी। पिछले तीन सालों में पहली बार इतनी बड़ी कटौती की गई है और साथ ही दिन-प्रतिदिन बढ़ती तेल की कीमतों की वजह से बढ़ती महंगाई से परेशान जनता को लंबे समय बाद थोड़ी राहत मिली है। एक्साइज ड्यूटी या उत्पाद शुल्क पांच रुपए पेट्रोल और डीजल पर 10 रुपए कम कर दिया गया। इसके बाद भाजपा शासित कई राज्यों में भी कटौती का ऐलान किया गया है। साथ ही यह फैसला लोकसभा की तीन और विधानसभा की 29 सीटों के उपचुनाव के नतीजे आने के दो दिन बाद लिया गया। नतीजों की समीक्षा में कहा जाने लगा कि लोग पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों से नाराज हैं। ऐसे में कयास लगने लगे कि कहीं इन नतीजों की वजह से तो यह फैसला नहीं लिया गया, क्योंकि अगले साल पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं जिसके लिए सरगर्मी बढ़ चुकी है। अगले साल के चुनाव सबसे अहम बताए जा रहे हैं और भाजपा के एक नेता सुनील भराला ने कुछ दिनों पहले केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री को एक चिट्ठी लिखी थी। इन्हीं कुछ कारणों से राजनीतिक विश्लेषक कटौती के इस फैसले के पीछे एक सियासी रणनीति को देख रहे हैं। विश्लेषक तेल की कीमतों में कमी को पांच महत्वपूर्ण कारणों से मोदी सरकार का एक राजनीतिक फैसला बताते हैं। पहलाöयह दिखाना कि मोदी को आम जनता की परवाह है, दूसराöकेंद्र सरकार कर घटाती है लेकिन राज्य नहीं घटाते। ऐसे में उसे लोगों की सहानुभूति मिल सकती है, तीसराöभाजपा के लिए उत्तर प्रदेश का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है, तो ऐसे में लोगों की लंबी समय तक नाराजगी उसे महंगी पड़ सकती है। चौथाöउपचुनाव के नतीजे और पांचवांöकोरोना महामारी से परेशानी के बीच बढ़ती महंगाई जिसने जनता की कमर तोड़ दी है। अभी तक मोदी सरकार ने लोगों की नाराजगी पर ध्यान नहीं दिया। मगर अब शायद उसे अहसास हो रहा है कि आम लोगों की नाराजगी को कम करना जरूरी है। हाल के उपचुनावों में भाजपा को मामूली फायदा हुआ। उसे आठ सीटें मिलीं, पहले से दो ज्यादा। मगर हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल में उसे जबरदस्त झटका लगा। कर्नाटक में भी पार्टी मुख्यमंत्री बासराव बोम्मई के जिले में हार गई। उपचुनाव के नतीजे भाजपा के आशानुरूप नहीं रहे, इसलिए केंद्र ने निश्चित तौर पर इन परिणामों से सबक लिया है। भाजपा उपचुनाव में नाकाम रही। यह फैसला उस डर से लिया गया कि कहीं किला हाथ से न निकल जाए। एक और राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि भाजपा ने इन उपचुनावों में अपना गढ़ गंवा दिया तो वह इस प्रकोप को दबाने का प्रयास कर रही है। 2022 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनाव होने हैं। इनमें उत्तर प्रदेश का चुनाव सबसे खास है क्योंकि कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है। गोवा और उत्तराखंड भाजपा के लिए 2024 के आम चुनाव के हिसाब से अहमियत रखते हैं। अब जबकि उत्तर प्रदेश में चुनाव दूर नहीं, सरकार लोगों की नाराजगी नहीं झेल सकती। क्योंकि उसकी आंच दिल्ली तक आ सकती है, इसलिए चुनाव से पहले वो ऐसा कुछ नहीं करना चाहती जिससे लोगों का असंतोष बढ़े पर दीपावली पर ही क्यों? यह घोषणा का समय महत्वपूर्ण इसलिए है कि लोग अपनी तकलीफें भूल कर त्यौहार मनाते हैं। ऐसे समय दी गई राहत लंबे समय तक याद रहती है।
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