Wednesday, 30 June 2021
24 हाई कोर्टों में 40 प्रतिशत कम जज काम कर रहे हैं
देश के 24 उच्च न्यायालयों में दो साल से लगातार जजों की लगभग 40 प्रतिशत रिक्तियां बनी चली आ रही हैं। एक जून 2021 तक यह रिक्तियां 430 थीं, जबकि उच्च न्यायालयों में पांच लाख से ज्यादा केस लंबित हैं। न्याय विभाग के अनुसार उच्च न्यायालयों में जजों की अधिकृत संख्या 1081 है लेकिन यह संख्या 430 रिक्तियों के कारण 650 ही है, जितने जजों की नियुक्तियां की जाती हैं उसी अनुपात में जज रिटायर भी हो जाते हैं। इससे खाली पदों की संख्या ज्यों की त्यों बनी रहती है। गत वर्ष एक जून 2020 को उच्च न्यायालयों में जजों की रिक्तियां 388 थीं वहीं 2019 में रिक्तियों की संख्या 399 थीं। एक जनवरी 2019 को उच्च न्यायालयों में जजों के 392 पद खाली थे। उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति का मामला पूरी तरह से उच्चतम न्यायालय के हाथ में है, लेकिन इससे पहले यह काम उच्च न्यायालयों के पास रहता है। न्यायालयों में नियुक्तियों का कोटा 70 प्रतिशत वकीलों से तथा 30 प्रतिशत निचली अदालतों के जिला जजों को प्रमोशन देकर भरा जाता है। लेकिन यह दोनों कोटे भी पूरी तरह से प्रयुक्त नहीं हो पाते जिसके कारण रिक्तियां बनी रहती हैं। इसके पीछे अनेक कारण हैं। एक प्रमुख कारण यह है कि सफल वकील जज बनने से मना कर देते हैं। पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया था कि रिक्त पद होने से छह माह पूर्व ही नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करें जिससे जज के रिटायर होने तक उनकी जगह दूसरा जज आ जाए। लेकिन इस निर्देश का भी उच्च न्यायालयों की ओर से पालन नहीं किया जाता। इलाहाबाद उच्च न्यायालय देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है और यहां जजों की संख्या 160 है। लेकिन इसमें 31 रिक्तियां अब भी बनी हुई हैं। पिछले दिनों हुए एक अध्ययन में यह सिफारिश की गई थी कि उच्च न्यायालय में 80 प्रतिशत पद निचली अदालतों से जिला जजों को प्रमोट करके भरें और 20 प्रतिशत वकीलों से भरें। इन रिक्तियों को अविलंब भरना होगा अगर न्याय सही ढंग से देना है। जब जज ही नहीं होंगे तो केसों की संख्या तो बढ़ती ही जाएगी। माननीय उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों को इस पर तुरन्त ध्यान देना होगा ताकि न्याय मिल सके।
-अनिल नरेन्द्र
कश्मीरी नेताओं के बदलते तेवर
गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कश्मीरी नेताओं की बातचीत के बावजूद एक बार फिर अविश्वास की बात उठना कोई आश्चर्य की बात नहीं। दिल्ली में इकट्ठे हुए कश्मीरी नेता दिल्ली में एक स्वर से बात करते हैं और वापस श्रीनगर पहुंचते ही इनके तेवर बदल जाते हैं। एक तरफ पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती लगातार पाकिस्तान से बातचीत पर जोर दे रही हैं। वहीं नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख फारुख अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर में अविश्वास का स्तर बरकरार है और इसे खत्म करना केंद्र की जिम्मेदारी है। शनिवार को फारुख ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जम्मू-कश्मीर के लोगों से जनमत संग्रह का वादा किया था, लेकिन वह पलट गए। 1996 के चुनाव से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने सदन के पटल से स्वायत्तता का वादा किया था। कहां गया वह वादा? फारुख ने कहाöअविश्वास का स्तर है... हमें इंतजार करना चाहिए और देखना चाहिए कि वह (केंद्र) क्या करता है... क्या वह अविश्वास को दूर करेंगे या इसे जारी रखेंगे? पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती ने एक बार फिर पाकिस्तान से बात करने पर जोर दिया है। एक न्यूज चैनल के साथ इंटरव्यू में महबूबा ने कहा कि केंद्र सरकार को पीड़ित जम्मू-कश्मीर के नागरिकों की स्थिति में सुधार के लिए पाकिस्तान से बातचीत करनी चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि वह केंद्र के साथ आगे बातचीत करने के लिए तैयार हैं, लेकिन विश्वास बहाली के उपायों को पहले लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरे पिता हमेशा बातचीत करने के लिए तैयार रहते थे। लोकतंत्र का मतलब बात करना है, आप संवाद से नहीं भाग सकते हैं। पीडीपी अध्यक्ष ने कहा कि केंद्र को जम्मू-कश्मीर के लोगों तक पहुंचने की जरूरत है, जो पीड़ित हैं और उनके साथ दिल की दूरी हटा दें। पिछले गुरुवार को बैठक में पीएम मोदी ने कहा था कि वह दिल्ली की दूरी को मिटाना चाहते हैं। महबूबा ने कहाöजिस तरह से जम्मू-कश्मीर में लोगों को आतंकित किया जाता है, उसे रोकने की जरूरत है। इन डोमिसाइल आदेशों को रोकने की जरूरत है। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि हमने प्रधानमंत्री की बैठक के दौरान यह स्पष्ट कर दिया था कि विधानसभा चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल किया जाना चाहिए। गुलाम नबी आजाद ने कहा कि हम इस समयसीमा को स्वीकार नहीं करते हैं। हम परिसीमन, चुनाव, राज्य का दर्जा स्वीकार नहीं करते हैं। हम परिसीमन, राज्य का दर्जा फिर चुनाव चाहते हैं। उमर ने कहा कि प्रधानमंत्री की बैठक के दौरान केंद्र को यह स्पष्ट कर दिया गया कि विधानसभा चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल किया जाना चाहिए। हम परिसीमन, राज्य का दर्जा फिर चुनाव चाहते हैं। यदि आप चुनाव कराना चाहते हैं तो आपको पहले राज्य का दर्जा बहाल करना होगा।
पहली बार ड्रोन से आतंकी हमला
पाकिस्तान से सटी अंतर्राष्ट्रीय सीमा से महज 14 किलोमीटर की दूरी पर भारतीय वायुसेना के सामरिक रूप से महत्वपूर्ण जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर शनिवार-रविवार की दरम्यानी रात को दो बम धमाके हुए। इन धमाकों में दो जवान मामूली रूप से घायल हुए हैं तथा टेक्निकल एरिया में बने एक भवन की छत को नुकसान पहुंचा है। यह धमाके भले ही कम तीव्रता के थे, मगर सबसे खास बात यह थी कि पहली बार सीमापार से ड्रोन हमला किया गया। पहली बार ड्रोन के जरिये एयरबेस के भीतर दो आईईडी गिराए गए। एक आईईडी एक भवन की छत पर गिरा, जबकि दूसरा खुले स्थान पर गिरा। जांच एजेंसियों को आशंका है कि हमले का निशाना एयरफोर्स स्टेशन पर खड़े विमान थे। धमाके इनसे कुछ ही दूरी पर हुए हैं, मगर किसी मशीनरी को नुकसान नहीं पहुंचा है। घटना के बावजूद यहां उड़ानों का संचालन सामान्य रहा। जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह ने इसे एक आतंकी हमला बताया। आतंकी हमले में ड्रोन का इस्तेमाल चिंताजनक है। ड्रोन के मामले में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि छोटा और नीची उड़ान भरने के कारण राडार की पकड़ में भी नहीं आता। बहुत पास आने पर ही इसे देखा जा सकता है। यही कारण है कि ड्रोन के मामले में शूट टू किल का एसओ भी अपनाया जाता है। इसके लिए अमेरिका और इजरायली मिसाइलों का इस्तेमाल करते हैं। हम भी ड्रोन के हमले रोकने में पूरी तरह सक्षम हैं। ड्रोन की रेंज पांच से लेकर 100 किलोमीटर हो सकती है, यह ड्रोन के पेलोड पर निर्भर है। ड्रोन के टुकड़ों से 24 घंटे में पता चल जाएगा कि यह कितनी रेंज का था, कहां से उड़ान भरी होगी। मौके पर वायुसेना, राष्ट्रीय कमांडेंट सेंटर, स्पेशल सिक्यूरिटी फोर्स व एनआईए की टीम मौजूद है। अधिकारी इस बात की जांच में सीसीटीवी फुटेज खंगाल रहे हैं कि ड्रोन किधर से आए और हमले के बाद कहां गए। जांचकर्ताओं ने कहाöसीसीटीवी सड़कों पर नजर रखते हैं। स्पष्ट नहीं कि ड्रोन सीमापार गए या कहीं और? अधिकारियों ने कहा कि एयरपोर्ट का राडार ड्रोन को पकड़ने में सक्षम नहीं है। इसके लिए ऐसे राडार की जरूरत है जो चिड़िया को भी देख सके। पाकिस्तान पिछले दो साल से ड्रोन भेजकर लगातार अंतर्राष्ट्रीय सीमा तथा नियंत्रण रेखा पर नापाक साजिशें रच रहा है। सीमापार से हथियारों और नशे की खेप की तस्करी के साथ ही बॉर्डर पर लगे सुरक्षा प्रतिष्ठानों की रैकी भी करता है। हाई सिक्यूरिटी जोन में स्थित एयरफोर्स स्टेशन पर हमले के बाद यह शक और गहरा गया है। सुरक्षा और जांच एजेंसियों का मानना है कि हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट में लगातार बने रहने तथा दिल्ली में हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कश्मीरी नेताओं की सर्वदलीय बैठक में अनुच्छेद 370, 35ए को तवज्जो न मिलने से बौखलाए पाकिस्तान के इशारे पर एयरफोर्स स्टेशन को निशाना बनाया गया। चूंकि यह पहली बार है, जब किसी आतंकी हमले में ड्रोन के जरिये हमला किया गया, इसलिए सुरक्षा एजेंसियों को न केवल और अधिक यंत्र दिए जाने चाहिए, बल्कि इस तरह के हमलों की काट के लिए कमर भी कसनी चाहिए। इन्हें इस तरह के हमले का जवाब भी खोजना होगा कि एयरफोर्स स्टेशन की व्यवस्था में किस खामी के चलते ड्रोन हमला संभव हुआ। उन्हें इस बात का जवाब भी खोजना चाहिए कि सुरक्षा व्यवस्था में किस खामी के चलते ड्रोन हमले से एयरफोर्स स्टेशन को निशाना बनाया गया? ज्यादा नुकसान नहीं हुआ तो इसका मतलब यह नहीं कि हमले की साजिश कमजोर थी। पाक ने अपने इरादों में एक नया हथियार जोड़ लिया है।
Tuesday, 29 June 2021
दिल्ली सरकार-केंद्र फिर आमने-सामने
देश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जीवनदायिनी ऑक्सीजन के विकट संकट के चलते अनेकानेक कोविड मरीज असमय काल के गाल में समा गए। जहां एक तरफ मरीज ऑक्सीजन के लिए छटपटा रहे थे वहीं उनके परिवारजन उनके लिए ऑक्सीजन का इंतजाम करने के लिए मारे-मारे फिर रहे थे। इस दौरान ऑक्सीजन संकट के लिए राज्यों खासतौर पर दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। यह विवाद यहीं नहीं थमा और मामला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया। सुप्रीम कोर्ट के दखल से दिल्ली को केंद्र से मिलने वाला ऑक्सीजन का कोटा तो बढ़ गया पर उसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के लिए ऑक्सीजन की सही जरूरत का पता लगाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का भी गठन कर दिया। अब विशेषज्ञ समिति ने रिपोर्ट दी है कि दिल्ली ने अपनी जरूरत से चार गुणा अधिक ऑक्सीजन की मांग की। इसे लेकर एक बार फिर दिल्ली और केंद्र सरकार आमने-सामने आ गई है। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान राष्ट्रीय राजधानी के अस्पतालों में ऑक्सीजन की खपत के ऑडिट के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक उपसमूह ने कहा कि दिल्ली सरकार ने ऑक्सीजन की खपत बढ़ाचढ़ा कर बताई और 289 मीट्रिक टन की आवश्यकता के लिए फॉर्मूले से चार गुणा अधिक 1140 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का दावा किया। एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय समिति ने कहा कि दिल्ली सरकार ने गलत फॉर्मूले का इस्तेमाल करते हुए 30 अप्रैल को 700 एमटी मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन का दावा किया। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ऑक्सीजन ऑडिट मामले पर पलटवार करते हुए भाजपा पर निशाना साधते हुए केंद्र सरकार और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से सवाल पूछते हुए कहा कि केंद्र और भाजपा के नेता जवाब दें और बताएं कि जब ऑक्सीजन ऑडिट कमेटी द्वारा कोई रिपोर्ट जारी ही नहीं की गई तो यह रिपोर्ट कहां से और कैसे अस्तित्व में आई। भाजपा के नेताओं को चुनौती देते हुए उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि भाजपा के नेता बताएं कि यह तथाकथित रिपोर्ट कहां से आई? मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भी केंद्र पर ऑक्सीजन रिपोर्ट मामले पर निशाना साधा। केजरीवाल ने कहा कि मेरा गुनाह है कि मैं दो करोड़ लोगों के लिए लड़ा। उन्होंने कहा कि जब आप चुनावी रैली कर रहे थे, तब मैं रातभर जाग कर ऑक्सीजन का इंतजाम कर रहा था। लोगों ने ऑक्सीजन की कमी से अपनों को खोया है। उन्हें झूठा मत कहिए, उन्हें बहुत बुरा लग रहा है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि केजरीवाल के झूठ के कारण 12 राज्यों में ऑक्सीजन आपूर्ति बाधित हुई, क्योंकि सभी जगहों से ऑक्सीजन काट कर दिल्ली भेजनी पड़ी। इन राज्यों को ऑक्सीजन मिल जाती तो कई लोगों की जान बच सकती थी। केजरीवाल ने जघन्य अपराध किया है, इसके लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट में दोषी ठहराया जाना चाहिए। पैनल की मानें तो भी दिल्ली को 351 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत थी, जबकि केंद्र सरकार ने 289 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत का अनुमान लगाया था। वहीं कांग्रेस ने भी दिल्ली और केंद्र सरकार, दोनों पर सीधा हमला बोला। प्रदेश कांग्रेस ने इसके लिए केजरीवाल सरकार और केंद्र के नेताओं समेत जिम्मेदार अधिकारियों पर भी हत्या का मामला दर्ज करने की मांग की। प्रदेशाध्यक्ष अनिल कुमार ने सुप्रीम कोर्ट की ऑक्सीजन ऑडिट कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि दिल्ली में 1140 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग की गई थी। सच्चाई यह है कि ऑक्सीजन की कमी से नहीं, बल्कि दिल्ली सरकार के कुप्रबंधन के कारण दिल्लीवासियों को अत्यंत कठिन समय में ऑक्सीजन की किल्लत से जूझना पड़ा और मौतें भी हुईं।
... और अब डेल्टा प्लस का तेजी से फैलता संक्रमण
जैसे-जैसे देश में टीकाकरण की रफ्तार बढ़ रही है वैसे-वैसे कोरोना के तो मामले घटने लगे हैं, यह अच्छा संकेत है परन्तु एक नई चिन्ता बढ़ने लगी है। यह है कोरोना वायरस के नए स्वरूप डेल्टा प्लस की। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि अब तक देश में अनुकृत (जीनोम) किए गए नमूनों में से कोविड के डेल्टा प्लस स्वरूप के 51 मामले सामने आए और इनमें से सबसे ज्यादा 20 मामले महाराष्ट्र से हैं। कहा जा रहा है कि डेल्टा प्लस बहुत तेजी से फैलने वाला वायरस है और आशंका जताई जा रही है कि भारत में कोरोना की तीसरी लहर का कारण यही स्वरूप बनेगा। लगता है कि दुनिया में कोरोना से मुक्ति का जो सपना देखा जा रहा है, उसमें डेल्टा प्लस वायरस का बदलता स्वरूप ही पलीता लगाने वाला है। कोविड-19 विषाणु जितनी जल्दी-जल्दी अपना स्वरूप बदल रहा है, उसके कारण समझने में कठिनाई आ रही है। हालांकि अन्य बीमारियों के विषाणु भी अपना स्वरूप बदलते हैं लेकिन कोरोना विषाणु के अब तक करीब एक हजार स्वरूप सामने आ चुके हैं। जाहिर है कि ऐसे में इसे नियंत्रित कर पाना मुश्किल काम है। माना जा रहा है कि भारत में पहली बार मिला डेल्टा विषाणु ही दूसरी लहर का कारण था। इसलिए भी डेल्टा प्लस से ज्यादा सतर्प रहने की जरूरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) प्रमुख ट्रेटोस गेब्रेयेसस ने भी आगाह किया कि कम से कम 85 देशों में पाया गया कोविड-19 का डेल्टा स्वरूप अभी तक सामने आए सभी स्वरूपों में सबसे अधिक संक्रामक है और यह उन लोगों में तेजी से फैल रहा है, जिन्होंने टीका नहीं लगवाया है। कोरोना वायरस का डेल्टा स्वरूप सबसे पहले भारत में पाया गया। एक ओर जहां सरकारें अपनी जनता को सुरक्षित रखने के लिए टीकाकरण की रफ्तार तेज करती जा रही हैं, वहीं वायरस का बदलता स्वरूप भी इस चिन्ता को बढ़ा रहा है कि टीका कब तक हासिल होगा? कोरोना प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन ही बचाने में फायदेमंद रहेगा।
इमरान खान को करारा झटका
आतंकवाद के मुद्दे पर पूरी दुनिया में सफाई दे रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को अंतर्राष्ट्रीय संगठन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने झटका दिया है। दुनियाभर में धनशोधन और आतंकी वित्त-पोषण पर नजर रखने वाले एफएटीएफ ने पाकिस्तान को इस बार भी कोई राहत नहीं दी है। एफएटीएफ की शुक्रवार को बैठक में फैसला किया गया है कि पाकिस्तान अभी संदिग्ध सूची (ग्रे लिस्ट) में बना रहेगा। इसके साथ ही खस्ता आर्थिक हालात का सामना कर रहे पाकिस्तान के लिए मुश्किलें जस की तस रहेंगी। उधर पाकिस्तान ने कहा कि एफएटीएफ द्वारा दी गई नई कार्ययोजना को वह 12 महीने में लागू करेगा। एफएटीएफ के अध्यक्ष मारकस लेयर ने फ्रांस में बैठक के बाद कहा कि पाकिस्तान पर लगातार नजर रखी जाएगी। हालांकि पाकिस्तान ने कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन कई मानकों पर उसे असरदार व प्रभावी कदम उठाने हैं। खासकर धनशोधन का जोखिम अधिक है। इसके कारण संगठित अपराध और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। उनका कहना है कि अभी एक बड़ा कदम संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी करार दिए गए संगठनों और उनके आकाओं के खिलाफ जांच और सजा देने का है, जिसे पाकिस्तान को पूरा करना है। पाकिस्तान एफएटीएफ की सिफारिशों पर अमल करने में विफल रहा है। पाकिस्तान में विदेश से घरेलू स्तर पर लगातार आतंकी संगठनों को जून 2018 में ग्रे सूची में डाला गया था। इसके बाद अक्तूबर 2018 और फरवरी 2019 में हुए एफएटीएफ की समीक्षा के दौरान भी उसे कोई राहत नहीं दी गई।
-अनिल नरेन्द्र
Sunday, 27 June 2021
एमआरआई महज 50 रुपए में
दिल्ली के ऐतिहासिक गुरुद्वारे बंगला साहिब में बने वर्ल्ड क्लास एमआरआई सेंटर को 100 दिन पूरे होने जा रहे हैं। 16 मार्च 2021 से शुरू हुए सेंटर में देश के कोने-कोने से आए मरीज दुनिया की सबसे सस्ती दरों पर एमआरआई, सीटी स्कैन और एक्स-रे की सुविधा उठा रहे हैं। यहां जरूरतमंद मरीजों को सिर्प 50 रुपए की एक पर्ची काटकर आठ से 10 हजार रुपए में होने वाला एमआरआई किया जा रहा है। 100 दिन पूरे होने के मौके पर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रेजिडेंट मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि इतने कम समय में सेंटर ने 2200 मरीजों का एमआरआई किया है और इसमें 1400 लोगों से गुरुद्वारा कमेटी ने सिर्प 50 रुपए एक फीस के तौर पर लिए हैं। अभी तक 3500 से ज्यादा मरीज यहां दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठा चुके हैं। सिरसा का दावा है कि देश और दुनिया में ऐसी सुविधा और कहीं नहीं है। गुरुद्वारा कमेटी से मिली जानकारी के मुताबिक न सिर्प रिकॉर्ड एमआरआई की गई, बल्कि 1300 लोगों का सीटी स्कैन भी किया गया। इसमें से 650 लोगों से सिर्प 50 रुपए लिए गए। कमेटी मानवता की सेवा और जरूरतमंदों को अच्छा इलाज मिल सके, मरीज अस्पतालों में धक्के न खाएं, उन्हें महीनों इंतजार न करना पड़े, इस मकसद से कार्य कर रही है। श्री सिरसा ने बताया कि रोजाना लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है। सुबह से सेंटर के बाहर रजिस्ट्रेशन कराने वालों की लाइन लग जाती है। इस दौरान सभी का पूरा ख्याल रखा जाता है। बाहर से आए मरीजों को भी सड़कों पर नहीं रहना पड़ता। यहां रजिस्ट्रेशन कराने के बाद तय तारीख पर एमआरआई, सीटी स्कैन और एक्स-रे किया जाता है। सिरसा ने बताया कि बाहर बड़े अस्पतालों में मरीज से कहीं आठ हजार, कहीं 10 हजार से ज्यादा वसूले जाते हैं... लेकिन गुरु साहिब के स्थान पर बने इस सेंटर में जरूरतमंदों से सिर्प 50 रुपए और बाकियों से सिर्प 1400 रुपए ही लिए जाते हैं। सिरसा ने कहा कि बीमारियां घर बिकवा देती हैं, लोग सड़कों पर आ जाते हैं... लॉकडाउन ने अलग लोगों की कमर तोड़ दी है, ऐसे में यह सेंटर हजारों लोगों के लिए भगवान की तरह है। यहां मरीजों को दवा के साथ दुआ भी मिलती है। बंगला साहिब के अलावा गुरुद्वारा बाला साहिब में किडनी डायलासिस अस्पताल भी चलाया जा रहा है, जहां सभी मरीजों का इलाज फ्री किया जाता है। वहीं जल्द ही इस स्थान पर 125 बैड का कोविड स्पेशल अस्पताल भी बनकर तैयार हो जाएगा। इसके अलावा चार बड़ी जगहों पर बाला प्रीतम दवाखाने भी चला रहे हैं, जहां मार्केट से 80-90 प्रतिशत सस्ती दवाएं मिल रही हैं।
स्कूल में दफन मिले 751 बच्चों के शव
कनाडा के एक आवासीय स्कूल से 751 बच्चों के शव मिले हैं। एक अधिकारी ने गुरुवार को बताया कि जांचकर्ताओं को इस आवासीय स्कूल के परिसर से 751 अभिचिन्हित कब्रें मिली हैं। आशंका जताई जा रही है कि इसमें भी बच्चों के शव दफनाए गए हैं। बता दें कि पिछले महीने भी स्कूल परिसर में 215 बच्चों के शव दफनाए पाए गए थे। काउसेस फर्स्ट नेशन के प्रमुख कैडमुसन डेलमोर ने एक संवाददाता सम्मेलन में यह घोषणा की। फेडरेशन ऑफ सॉवरेन इंडिजिनस फर्स्ट नेशंस के चीफ बॉबी कैमरन ने कहा कि उन्हें स्कूल के मैदानों में और कब्रें मिलेंगी। ट्रूथ एंड रिकांसिलिएशन कमीशन ने पांच वर्ष पहले संस्थान में बच्चों के साथ दुर्व्यवहार पर विस्तृत रिपोर्ट दी थी। इसमें बताया गया कि दुर्व्यवहार एवं लापरवाही के कारण कम से कम 3200 बच्चों की मौत हो गई। कैमलूप्स स्कूल में 1915 से 1963 के बीच कम से कम 51 मौतें हुई थीं। ब्रिटिश कोलंबिया के प्रमुख जॉन होरगान ने कहा कि इस घटना का पता चलने से वह भयभीत एवं दुखी हैं। कैमलूप्स स्कूल 1890 से 1969 तक संचालित हुआ था। इसके बाद संघीय सरकार ने कैथोलिक चर्च से इसका संचालन अपने हाथों में ले लिया। यह स्कूल 1978 में बंद हो गया था। कनाडा सरकार ने इस अमानवीय व्यवहार के लिए 2008 में औपचारिक रूप से माफी मांगी थी। रोमन कैथोलिक चर्चा (जो अधिकांश स्कूलों को चलाता है) ने अब तक माफी नहीं मांगी है। इस महीने की शुरुआत में पोप फ्रांसिस ने एक बयान में कहा था कि कब्रों की खोज से उन्हें दर्द हुआ, पीड़ितों के बचे हुए लोगों ने पोप के बयान को खारिज कर दिया था।
जंक फूड के विज्ञापनों पर रोक
ब्रिटेन ने टीवी व ऑनलाइन प्लेटफार्म पर सेहत के लिए हानिकारक खाद्य पदार्थों के विज्ञापन दिन के समय दिखाने पर रोक लगा दी है। उसकी कोशिश है कि देशवासियों के बढ़ते मोटापे को रोकें और पौष्टिक भोजन को बढ़ावा दें। नया नियम अगले वर्ष से लागू होगा, हालांकि इसे लेकर कुछ मीडिया समूह ने आपत्ति जताई है। आज ब्रिटेन के प्राथमिक स्कूलों में हर तीन में से एक बच्चा मोटापे का शिकार है। यहां के जन स्वास्थ्य मंत्री जो चर्चिल ने बृहस्पतिवार को कहा कि बच्चे जो कंटेट देखते हैं उसका उनके निर्णय और आदतों पर असर होता है। चूंकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे अपना समय ऑनलाइन रहते हुए बिता रहे हैं, यह जरूरी है कि यहां दिखाने वाले और स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं माने जाने वाले भोजन के विज्ञापनों से बचाया जा सके। ब्रिटेन की न्यूज एंड मीडिया एसोसिएशन ने इसे निराशाजनक बताया है। कहाöइन खाद्य पदार्थों के विज्ञापन और बच्चों के मोटापे के बीच संबंध कोई साबित नहीं कर सका है। इस आदेश से टीवी मीडिया की विज्ञापन कमाई में नुकसान होगा। आदेश के बाद ब्रिटेन के सबसे बड़े व्यावसायिक टीवी प्रसारक आईटीवी के शेयर एक प्रतिशत, समाचार समूह रीच के शेयर 1.5 प्रतिशत व डेली मेल एंड जनरल ट्रस्ट के शेयर 2 प्रतिशत गिरे। ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें फैट और शुगर अधिक मात्रा में है उनके विज्ञापन प्रतिबंध में शामिल हैं। इनके विज्ञापन रात नौ बजे से पहले टीवी पर या ऑनलाइन कार्यक्रमों में नहीं दिखाए जा सकेंगे। प्रतिबंध उस कारोबार पर लग रहा है, जहां 250 से ज्यादा कर्मचारी हैं। सरकार का मानना है कि इससे छोटी कंपनियों को फायदा होगा जो महंगे विज्ञापन नहीं दे पाती, लेकिन पौष्टिक खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवाती हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 26 June 2021
मोदी से निपटने के लिए विपक्ष की गोलबंदी
देश में तीसरे मोर्चे के गठन की अटकलों के बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार के घर पर आठ राजनीतिक दलों के नेता जमा हुए। सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ तीसरे मोर्चे की अटकलों के बीच यह बैठक हुई। करीब ढाई घंटे तक चली इस बैठक में कोरोना महामारी संस्थाओं पर हमले, महंगाई, किसानों और बेरोजगारी के मुद्दों पर मोदी सरकार की घेराबंदी हुई। इस बैठक में तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल और वामदल शामिल हुए। करीब ढाई घंटे तक चली इस बैठक के बाद एनसीपी ने यह सफाई जरूर दी कि यह बैठक शरद पवार ने नहीं बल्कि राष्ट्र मंच ने बुलाई थी। बैठक में कांग्रेस की तरफ से कोई नेता शामिल नहीं हुआ। एनसीपी नेता मजीद मेनन ने कहा कि यह बैठक न तो भाजपा के खिलाफ पार्टियों को एकजुट करने के लिए बुलाई गई थी और न ही कांग्रेस का बहिष्कार करने के लिए आयोजित की गई थी। उन्होंने कहा कि टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा के राष्ट्र मंच के तहत देश के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा की। सिन्हा ने भी बैठक में कई मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई। दरअसल पिछले सात साल से राष्ट्रीय राजनीति के मैदान में अबाध रूप से दौड़ रहे भाजपा के सबसे बड़े नेता एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को थामना विपक्ष के लिए एक चुनौती बन गया है। बंगाल में भाजपा को मिली हार के बाद से विपक्ष को यह लगने लगा है कि मोदी और उनकी भाजपा को थामना उनके लिए मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं। मोदी विरोधियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती मोदी के खिलाफ एवं समन्वय नेतृत्व की है। विपक्षी दलों और उसके रणनीतिकारों को भी अब इसका भलीभांति से अहसास हो रहा है। इसलिए वह इस बैठक को भाजपा विरोधी या मोदी विरोधी दलों की बैठक बताने से पूरी तरह गुरेज कर रहे हैं। गत चुनाव में जब भी विपक्ष ने मोदी पर जितने भी व्यक्तिगत प्रहार किए मोदी ने उसी को हथियार बनाकर अपने विरोधियों को चित्त कर दिया। ऐसे में विपक्ष ने पहली बार अपनी रणनीति में परिवर्तन करते हुए मोदी की छवि को उनके कामकाज से ही तोड़ने की रणनीति बनाई है। अगर हम इस बैठक के एजेंडा और नेताओं के बयानों पर गौर करें तो यह बात अपने आपमें स्पष्ट हो जाती है। मजीद मेनन ने कहाöमीडिया में कहा जा रहा है कि शरद पवार की अगुवाई में भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने के लिए शरद पवार की अगुवाई में बैठक हुई है। यह पूरी तरह झूठ है। मैं इसे साफ करना चाहता हूं कि यह बैठकें बेशक पवार के आवास पर हुईं, लेकिन उन्होंने यह बैठक नहीं बुलाई थी। समाजवादी पार्टी के नेता घनश्याम तिवारी ने कहाöहमने इस बात पर भी चर्चा की कि पेट्रोल और डीजल की कीमतें किस तरह आम जनता पर असर डाल रही हैं। खासकर किसानों और मिडिल क्लास पर, राष्ट्र मंच एक स्थान बनाएगा, जहां कोई भी आ सकता है और सरकार तक आवाज पहुंचा सकता है। अगली बैठक में और लोगों को शामिल करने पर फोकस करेंगे। हालांकि शिवसेना, बसपा और दक्षिण भारत के किसी भी राजनीतिक दल का इस बैठक में शामिल न होना इस मंच पर सबसे बड़ा सवालिया निशान खड़ा करता है। कोई भी मोदी विरोधी मोर्चा बनेगा तो उसमें कांग्रेस का भी शामिल होना आवश्यक होगा। हो सकता है, इस मंच की अगली बैठक में तमाम मोदी विरोधी इकट्ठा हों।
कमजोर देशों पर कब्जे की चीनी चाल
दुनियाभर में गोपनीय शर्तों के साथ कर्ज बांटकर चीन कमजोर देशों पर भू-राजनीतिक दबदबा बढ़ाने और उनके पोषण में जुटा है। एक रिपोर्ट से पता लगा है कि ड्रैगन इस वक्त सबसे बड़ा विदेशी ऋणदाता बन गया है। विश्व द्वारा और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने संयुक्त रूप से दिए ऋणों से अधिक दुनिया को चीन दे चुका है। जनवरी में प्रकाशित एक श्वेत पत्र के मुताबिक चीन विश्व समुदाय का हिस्सा होने के नाते अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग के तहत यह ऋण देने का दावा करता है। लेकिन पिछले कुछ समय में कई देशों के साथ उसका बर्ताव इस बात का सुबूत है कि वह इस सहयोग के नाम पर छलावा कर रहा है। इजरायली वेबसाइट पर अपने ब्लॉग पोस्ट में भू-राजनीति विशेषज्ञ फोबियन बुसार्ट ने लिखाöवैश्विक भलाई की आड़ में बांटा जा रहा चीनी कर्ज नियम-शर्तों के आधार पर शोषणकारी है। इनमें उधार लेने वाले देशों को दबाने के कई प्रावधान हैं। ऋण विकासशील देशों में चीन पर आर्थिक निर्भरता और वहां राजनीतिक लाभ बढ़ाने के दरवाजे खोलते हैं। इसके चलते कमजोर देशों की संप्रभुता पर भी गंभीर खतरा मंडराने लगा है। बुसार्ट के मुताबिक अधिकांश चीनी ऋण रियायती दरों की बजाय वाणिज्यिक दरों में बांटे गए हैं। ऐसा किसी विदेशी विकास सहायता में देखने को नहीं मिलता। डिफॉल्टर होने पर लेनदेन में उसकी सम्पत्तियों पर कब्जे की रणनीति। उदाहरण श्रीलंका का हंबनवेटा बंदरगाह, लाओस में इलेक्ट्रिक ग्रिड से लेकर तजाकिस्तान में विवादित क्षेत्र और मालदीव के रणनीतिक रूप से अहम द्वीपों पर चीनी कब्जा शामिल है।
बढ़ सकती हैं नुसरत जहां की मुश्किलें
पश्चिम बंगाल के बरीरहाट से तृणमूल कांग्रेस सांसद नुसरत जहां की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। उनकी शादी का मामला अब लोकसभा तक पहुंच गया है। भाजपा के सांसद संघमित्रा मौर्य ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर नुसरत की लोकसभा सदस्यता रद्द करने की मांग की है। संघमित्रा का कहना है कि नुसरत जहां का आचरण अमर्यादित है। शादी के मसले पर उन्होंने अपने वोटर्स को धोखे में रखा है, साथ ही संसद की गरिमा भी धूमिल हुई है। उन्होंने मांग की है कि इस मामले को संसद की एथिक्स कमेटी में भेजा जाना चाहिए, साथ ही जांच पर नुसरत पर एक्शन लिया जाना चाहिए। संघमित्रा ने लिखा है कि नुसरत जहां ने लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ के दौरान अपना नाम नुसरत जहां रूही जैन बताया था। लोकसभा की वेबसाइट पर भी उनके पति का नाम निखिल जैन लिखा है। उनकी शादी में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल हुई थीं। किसी को भी नुसरत के निजी जीवन में किसी प्रकार की दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए, लेकिन उनके हालिया बयान का मतलब है कि उन्होंने जानबूझ कर संसद को गलत जानकारी दी। उन्होंने मतदाताओं को धोखा दिया है।
-अनिल नरेन्द्र
Friday, 25 June 2021
धर्मांतरण कराने वालों के जुड़े आईएसआई से तार
उत्तर प्रदेश के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने लखनऊ में दो मौलानाओं को गिरफ्तार कर धर्मांतरण के घिनौने खेल का पर्दाफाश किया है। दिल्ली के जामिया नगर से संचालित यह गिरोह पैसा, शादी और नौकरी का लालच देकर बड़ी संख्या में हिन्दुओं का धर्मांतरण करा चुका है। एटीएस के पास धर्मांतरण करा चुके एक हजार से अधिक लोगों की सूची है। इनमें ज्यादातर मूक-बधिर व महिलाएं हैं। गिरोह की फंडिंग विदेशों से होती थी और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का लिंक सामने आ रहा है। इसकी पड़ताल की जा रही है। गिरफ्तार आरोपियों का नाम मुफ्ती जहांगीर आलम और उमर गौतम हैं। इनमें से उमर खुद धर्म बदलकर मुस्लिम बना था। एडीजे कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार ने बताया कि तीन जून को गाजियाबाद के डासना के मंदिर से दो संदिग्ध युवक विपुल विजयवर्गीय व काशिफ की गिरफ्तारी के बाद गिरोह का पता चला। उनकी निशानदेही पर जहांगीर और उमर गौतम को पूछताछ के लिए लखनऊ मुख्यालय बुलाया गया था। सोमवार को लंबी पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने बताया कि गिरोह में कई और लोग शामिल होने की जांच जारी है। धर्मांतरण के बाद कई लड़कियों की शादी भी कराई जा चुकी है। यूपी के अलावा दिल्ली, हरियाणा, केरल, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र में भी इनका जाल फैला है। शुरुआती जांच में पता चला है कि यह गिरोह एक साल में 250 से 300 लोगों को मुस्लिम बना चुका है। धर्मांतरण का अलग से सम्मेलन भी होता था, ताकि इनके जरिये अन्य लोगों को मुसलमान बनाया जा सके। इनके पास से एटीएस को एक हजार महिलाओं, बच्चों की सूची मिली है। इस्लाम कुबूल व निकाह आदि का प्रमाण पत्र दिल्ली के मुफ्ती काजी जहांगीर आलम कासमी द्वारा जारी किए जाते थे। एटीएस के मुताबिक धर्मांतरण के बाद महिलाओं की शादी करवाई जाती थी। दोनों मथुरा, वाराणसी और नोएडा में धर्म परिवर्तन करवा चुके हैं। धर्मांतरण कराने वाले संगठन इस्लामिक दावा सेंटर ने मूक-बधिर बच्चों और महिलाओं तथा गरीब तबके के लोगों को धन, नौकरी आदि का प्रलोभन देकर उनको अपना शिकार बनाया। देश के जनजातीय बहुल दूरदराज के इलाकों में ईसाई मिशनरियों पर भी इस तरह के आरोप लगते रहे हैं कि वह आदिवासियों के हाथ में मुट्ठीभर चावल देकर गले में क्रॉस का चिन्ह लटका देते हैं। यह स्पष्ट है कि भारत में जबरन या लालचन धर्मांतरण कराना अवैध है तो ऐसी सूरत में धर्मांतरण कराने से न केवल सीधे-सीधे भारत के कानून को चुनौती दी जाती है, बल्कि दूसरे धर्म की भावनाओं को भी इरादतन आहत किया जाता है। जबरन धर्मांतरण का राजनीतिक निहितार्थ भी है कि इस तरह की घटनाओं से जहां सांप्रदायिक विद्वेष को बढ़ावा मिलता है वहीं साथ ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी होता है। इसलिए देश के सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगाना बहुत आवश्यक है। इस दिशा में मुस्लिम बुद्धिजीवियों को भी आगे आना चाहिए और ऐसे कदमों व कार्यक्रमों से जिससे दूसरा वर्ग आहत होता है उसको रोकने का प्रयास करना चाहिए।
योग विश्व को दी गई भारत की अमूल्य धरोहर
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषित अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर योग के विज्ञान पर चर्चा करना आवश्यक हो जाता है। योग भारत द्वारा विश्व को दिए कई बहुमूल्य खजानों और धरोहरों में से एक है। कम से कम हजार वर्ष पूर्व उपनिषद काल में ऋषियों-महाऋषियों द्वारा योग का विज्ञान सिखाया जाता था, उसका अभ्यास किया जाता था। हजारों साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सतत् और अथक प्रयासों से योग पुन प्रतिष्ठित हुआ है। अब तेजी से विश्व स्तर पर लोगों का झुकाव इस ओर हो रहा है। संस्कृत शब्द युग से उत्पन्न योग, मनुष्य व परमात्मा को जोड़ने के विज्ञान के रूप में परिभाषित है। वास्तव में योग शरीर व मन को स्वस्थ एवं शांत रखने का अभ्यास व प्रशिक्षण है। वह लोग जो इस यात्रा को पूरी तरह तय करने को तैयार होते हैं, वह अंतत योग के माध्यम से अपनी चेतना के मूल में छिपे उस दिव्य तत्व को पहचानने में भी समर्थ होते हैं। यही दिव्य अवस्था समाधि कहलाती है। समाधि की स्थिति की चर्चा संपूर्ण रूप से आध्यात्मिक विकास के इच्छुक कुछ विरले लोगों के लिए छोड़ते हुए, मैं अपना ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूं कि जो लोग अध्यात्म व आत्मविश्वास संबंधी (मेरा फिजिकल) बातों में रुचि नहीं रखते, उनके लिए भी योग बेहतर शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की ओर जाने का सही रास्ता है। आधुनिक विज्ञान ने भी इसे स्वीकार किया है। कुछ वर्ष पूर्व ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को मनुष्य के स्वास्थ्य के एक अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार किया है, जबकि इस अवधारणा में योगियों का विश्वास हजारों वर्षों से रहा है। यह सभी उम्र के लोगों के लिए शांति प्रदान करने का कृत्य है।
पोस्ट कोविड मरीजों में कॉर्डियेक अरेस्ट से मौतें
भारत में भले ही कोरोना संक्रमितों की संख्या में कमी आ रही हो, पर पोस्ट कोविड कोरोना मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है। दिल्ली-झारखंड समेत अन्य राज्यों में पोस्ट कोविड समस्या के साथ मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं। वहीं विशेषज्ञों का दावा है कि पोस्ट कोविड मरीजों से अधिकतर की मौत कॉर्डियेक अरेस्ट से हुई है। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के कम्यूनिटी मेडिसन विभाग के प्रमुख डॉक्टर जुगल किशोर के मुताबिक पोस्ट कोविड मरीजों में जो मधुमेह जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं उनमें रक्त का थक्का जमने के बाद हृदयगति रुकने की संभावना ज्यादा रहती है। झारखंड के रिम्स सहित राज्य के सभी अस्पतालों में पोस्ट कोविड समस्या के साथ मरीज पहुंच रहे हैं। पोस्ट कोविड समस्या के कारण मरीजों की मौत भी हो रही है। रिम्स क्रिटिकल केयर के इंचार्ज डॉक्टर पीके भट्टाचार्य ने बताया कि पोस्ट कोविड मामलों में अधिकतर मरीजों की मौत रेस्पिरेटरी क्रिसल और कॉर्डियेक अरेस्ट के कारण हो रही है। उन्होंने बताया कि पोस्ट कोविड मरीजों में अधिकतर मरीजों के फेफड़े खराब हैं, जिससे सांस लेने में बहुत समस्या हो रही है। ऐसे में आवश्यक ऑक्सीजन मेंटेन कर पाते हैं। वहीं थ्रामबोसिस के कारण मरीजों में खून के थक्के कई जगह जम जाते हैं, जो हार्ट तक पहुंच जाते हैं जिससे हार्ट अटैक हो रहे हैं। रिम्स अस्पताल में वर्तमान में पोस्ट कोविड के 29 मरीज भर्ती हैं। पोस्ट कोविड समस्या के कारण रिम्स में प्रतिदिन तीन से चार मरीजों की औसतन मौत हो रही है। मरने वालों की औसत उम्र 35 से 70 साल के बीच है।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 24 June 2021
मुआवजा नहीं दे सकते
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र से सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने कोविड-19 से मरने वालों के परिवारों को चार-चार लाख रुपए की अनुग्रह राशि देने का फैसला किया था। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि लाभार्थियों के मन में किसी भी तरह के मलाल को दूर करने के लिए एक समान मुआवजा योजना तैयार करने पर विचार किया जा सकता है। कोरोना के संक्रमण से मरने वालों के आश्रितों को चार-चार लाख रुपए का मुआवजा मिल पाना अब संभव नहीं होगा। केंद्र का कहना है कि कोरोना के कारण की जा रही व्यवस्थाओं तथा कर राजस्व में कमी के कारण केंद्र और राज्य सरकारें गंभीर वित्तीय तनाव से गुजर रही हैं और कोरोना संक्रमण से मरने वाले सभी लोगों के आश्रितों को मुआवजा देना राजकोषीय सामर्थ्य से बाहर की बात है। हालांकि केंद्र ने न्यायालय से यह भी कहाöऐसा नहीं है कि सरकार के पास धन नहीं है। केंद्र ने कहाöहम स्वास्थ्य सेवा ढांचा बनाने, सभी को भोजन सुनिश्चित करने, पूरी आबादी का टीकाकरण करने और अर्थव्यवस्था को वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज उपलब्ध कराने के लिए रखे गए कोष की बजाय अन्य चीजों के कोष का उपयोग कर रहे हैं। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एमआर शाह की अवकाश पीठ ने सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता से कहाöआप (केंद्र) सही स्पष्टीकरण दे रहे हैं, क्योंकि केंद्र सरकार के पास पैसे नहीं हैं का तर्प देने से व्यापक दुष्परिणाम होंगे। केंद्र ने माना है कि कोरोना से अब तक 3.85 लाख लोगों की जान जा चुकी है, इसलिए इनके लिए 22,184 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया गया तो राज्य आपदा रिस्पांस फंड कम पड़ जाएगा और अन्य आपदाओं से निपटने के लिए धन ही नहीं बचेगा। मरने वालों की संख्या अभी और बढ़ने की आशंका है। यह तो मानना ही पड़ेगा कि सरकार के पास स्रोत सीमित हैं, इन पर अतिरिक्त बोझ अन्य वैलफेयर व हेल्थ स्कीमों के फंड को कम कर देगा। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे में कहा है कि यह उल्लेख करना कि अनुग्रह राशि से ही किसी पीड़ित की मदद की जा सकती है, पुराना और संकीर्ण दृष्टिकोण होगा। केंद्र ने कहा कि कोरोना महामारी, भूकंप या बाढ़ की तरह एक बार की आपदा नहीं है, जिसके लिए पीड़ितों को सिर्प पैसे से मुआवजा दिया जा सकता है। केंद्र ने कहा कि आपदा कानून के तहत अनिवार्य मुआवजा सिर्प प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, बाढ़ आदि पर ही लागू होता है। लंबी अवधि की किसी आपदा जो महीनों, वर्षों तक चले, में अनुग्रह राशि देने का कोई पूर्व उदाहरण नहीं है। वास्तव में भारत जैसे कल्याणकारी देश में सरकारों की असली परीक्षा आपदाओं और जरूरतों के समय ही होती है। इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यह महामारी बाढ़ या भूकंप जैसी आपदा नहीं है और डेढ़ साल बीतने के बावजूद अभी खत्म नहीं हुई है। बेशक पूरे देश में दूसरी लहर का प्रभाव अब कम हो गया है। नतीजतन संक्रमण के नए मामले 50 हजार से कम हो गए हैं मगर दूसरी ओर अब तक 3.85 लाख लोगों ने अपनी जान गंवा दी है। प्रभावित परिवारों में बहुत से ऐसे होंगे, जिनके लिए आजीविका का संकट पैदा हो गया होगा। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को कम से कम ऐसे परिवारों की पहचान करके उनके लिए कोई मानवीय पहल जरूर करनी चाहिए।
यूपी में न 2017 में कोई चेहरा था, न 2022 में होगा
अगले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव होने हैं। इसको लेकर भारतीय जनता पार्टी में बहुत हलचल होने लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसेमंद माने जाने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर भाजपा में शामिल हुए अरविन्द कुमार शर्मा (एके शर्मा) को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं। अब शर्मा का विवाद थम-सा गया है और उन्हें भाजपा संगठन में अहम जिम्मेदारी दी गई है। उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया है। माना जा रहा था कि उन्हें सरकार या संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है। हाल ही में उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया गया। अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव से पहले यूपी में सीएम फेस को लेकर फैला भ्रम खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। रविवार को भाजपा दफ्तर में संगठन की मीटिंग में भाग लेने आए सरकार के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने यह कहकर इसे और आगे बढ़ा दिया कि चुनाव जीतने के बाद केंद्रीय नेतृत्व ही यूपी में सीएम का चेहरा तय करेगा। उनका यह बयान यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बयान के बाद आया है। केशव प्रसाद मौर्य भी यह कह चुके हैं कि भाजपा की परंपरा रही है कि केंद्रीय नेतृत्व ही सीएम फेस तय करता है। हम पहले केवल चुनाव जीतने पर ही फोकस कर रहे हैं। हालांकि इससे इतर यूपी के प्रदेशाध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह साफ कह चुके हैं कि प्रदेश में चुनाव सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही होंगे। उनसे ज्यादा परिश्रमी और ईमानदार मुख्यमंत्री कौन है? स्वामी प्रसाद मौर्य ने पत्रकारों के इस सवाल पर कि भाजपा का सीएम फेस कौन होगा? कहा कि 2017 में भी भाजपा ने सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया था। 2022 में भी संगठन और केंद्र ही इस बारे में आखिरी फैसला लेंगे। उन्होंने कहा कि हमें पहले चुनाव की तैयारी करनी है। इसके लिए संगठन ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है। हम इस बार भी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर आएंगे। उन्होंने दूसरी पार्टियों के नेताओं को भाजपा में आने का खुला न्यौता देते हुए कहा कि ऐसे नेताओं का भाजपा में स्वागत है। बसपा में हुई बगावत को लेकर स्वामी ने तंज कसते हुए कहा कि अब बसपा में मायावती के अलावा कोई बचा नहीं है।
-अनिल नरेन्द्र
Wednesday, 23 June 2021
एक-दूसरे को खरी-खरी सुनाने से चूके नहीं बिडेन-पुतिन
अमेरिका और रूस के रिश्तों में तनाव की पृष्ठभूमि में जो बिडेन और ब्लादिमीर पुतिन के बीच जिनेवा में हुई शिखर वार्ता दोनों देशों में तनाव कम करने का महत्वपूर्ण कदम है। बेशक इसमें विवादास्पद मुद्दे उठे। याद रहे, विगत मार्च में बिडेन ने एक इंटरव्यू में पुतिन को जब हत्यारा कह दिया था, तब आपसी तनाव के बीच दोनों देशों ने अपने-अपने राजदूत वापस बुला लिए थे। वार्ता के दौरान भी औपचारिक शालीनता से इत्तर दोनों देशों के रुख में सहमति की गुंजाइश कम दिखी, चाहे वह अमेरिका में साइबर हमलों के पीछे अनजान रुसियों का हाथ होने की अमेरिका की शिकायत हो या रूस में विपक्ष के नेता नवलनी की गिरफ्तारी तथा यूकेन के पूर्वी तट पर रूसी सेना की मौजूदगी पर अमेरिका की चिंता हो। दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच हुई शिखर वार्ता में रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने स्वीकारा कि दुनिया में एटमी युद्ध कभी न हो। लेकिन दोनों ने तनाव कम करने के साथ-साथ एक-दूसरे को खरी-खरी सुनाईं। बिडेन ने रूस में विपक्षी नेता के जेल में बंद होने पर कहाöयदि एलेक्सी नवलनी की कैद में मौत हुई तो नतीजे भयावह होंगे। पुतिन ने अमेरिका में अश्वेतों से अन्याय व छह जनवरी को कैपिटल हिल घटना पर सवाल उठाए। दोनों देशों के बीच हाल के महीनों में लगातार तनाव के बीच दोनों पक्षों ने जिनेवा बैठक के पांच घंटे तक चलने की संभावना जताई थी, लेकिन यह पहले ही खत्म हो गई। दोनों पक्षों के साझा बयान के केंद्र में परमाणु अप्रसार का मुद्दा रहा जिसमें कहा गया कि परमाणु युद्ध कभी नहीं जीता जा सकता और कभी होना भी नहीं चाहिए। इस बीच बिडेन ने पुतिन के साथ हुई बैठक में मानवाधिकारों के मुद्दों पर जोर दिया और एलेक्सी नवलनी को जेल में रखने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि कैद में उनकी मौत के नतीजे भयावह होंगे। पुतिन ने इस दौरान छह जनवरी को अमेरिकी संसद भवन पर हुए हमले में दंगाइयों की गिरफ्तारी की वैधता पर सवाल उठाए। पुतिन ने कहाöहम मानवाधिकारों पर अमेरिकी दखल के भाषण नहीं सुनेंगे। वर्ष 2018 में पुतिन और डोनाल्ड ट्रंप के बीच हेलसिंकी में हुई शिखर वार्ता से जिनेवा वार्ता की तुलना करें तो साफ दिखता है कि 2016 के अमेरिकी चुनाव में रूसी दखल के आरोप से इंकार कर ट्रंप तब पुतिन के आगे बिक से गए थे। जबकि बिडेन ने पुतिन के साथ साझा पत्रकार वार्ता करने से मना कर सख्ती का परिचय दिया। इसके बावजूद ट्रंप की तुलना में बिडेन के समय अमेरिका-रूस के रिश्ते बेहतर होने की उम्मीद है, तो इसलिए कि बिडेन परिपक्व नेता हैं और अमेरिका की जिम्मेदारियों से अवगत हैं। दोनों देश न केवल राजदूतों की दोबारा बहाली पर सहमत हो गए हैं, बल्कि परमाणु युद्ध की आशंका खत्म करने के साथ विवादास्पद मुद्दों पर निरंतर बातचीत भी जारी रखना चाहते हैं। राष्ट्रपति जो बिडेन की यह पहली अंतर्राष्ट्रीय महत्व की वार्ता थी जिसमें उन्होंने एक परिपक्व राजनेता का सुबूत दिया।
कोरोना की वजह से दुनिया पहले जैसी नहीं रहेगी
जो अपने चले गए उनका स्थायी गम और खुद के मरने के खौफ के बीच लगता है कि कोरोना की दूसरी लहर भी निकल गई। केस कम हो रहे हैं। शेयर बाजार में निवेश बढ़ता जा रहा है। लॉकडाउन खुलने से लोग फिर जिंदगी की जद्दोजहद में शरीक होने लगे, मानों रातभर के बुरे सपने से जागे हों। यह भी सच है कि देश में महामारी से अब तक हुई मौतों का 60 प्रतिशत पिछले छह हफ्तों में दर्ज हुआ और वह भी जब भारत में मौतों का असली आंकड़ा सरकारी आंकड़ों से कई गुना ज्यादा माना जाता है। उधर मरीजों की संख्या में कमी से पैदा हुई तसल्ली छीनती हुई ताजा खबरें हैं कि ब्रिटेन, ब्राजील और जापान अगली लहर की चपेट में हैं। भारत में तीसरी लहर का अंदेशा हर वैज्ञानिक अनुमान में बता रहा है। कहा जा रहा है कि डेल्टा स्ट्रेन जो सबसे पहले भारत में पाया गया था, जिसके मामले भारत में बड़ी तादाद में पाए गए, ज्यादा संक्रामक हैं और वैक्सीन इसमें पूरी तरह कारगर नहीं है। दुनिया के इतिहास में शायद ही कभी ऐसी स्थिति आई हो जब आदमी जीने की आस और मौत के अंदेशे की खाई के बीच की महज एक छोटी पगडंडी पर चलने को मजबूर हो। सामाजिक मनोविज्ञान के लिए भी शायद ही ऐसा कोई काल रहा होगा। लिहाजा उसे भी यह देखना होगा कि इतने दीर्घकाल तक, इतने दबाव के बीच मानव स्वभाव में और तमाम मौलिक व मानव-निर्मित संस्थाओं में क्या बदलाव आता है, जिनके स्वजन अस्पताल में या अस्पताल के बाहर ऑक्सीजन या दवा के अभाव में दम तोड़ चुके हैं, उनका तो राज्य और उसकी संस्थाओं पर से भरोसा उठ चुका है, उन पारिवारिक रिश्तों का क्या स्वरूप होगा, जिनमें डर के मारे स्वजन मरने के बाद क्रियाकर्म में भी शामिल होने से गुरेज करने लगे। कोरोना खत्म हो या बना रहे, यह दुनिया पहले जैसी नहीं रहेगी। व्यक्तिगत, संस्थागत, पारिवारिक और सामूहिक रिश्ते जिजीविषा के आधार पर बनेंगे, न कि नैतिकता के मानदंडों पर।
कट्टरपंथी इब्राहिम रईसी ईरान के नए राष्ट्रपति होंगे
ईरान को नया राष्ट्रपति मिल गया है। चुनाव में कट्टरपंथी नेता इब्राहिम रईसी को भारी मतों से जीत मिली है। वह अगस्त में मौजूदा राष्ट्रपति हसन रूहानी की जगह लेंगे। रईसी देश के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खोमैनी के करीबी और मुख्य न्यायाधीश हैं। मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर अमेरिका ने उन पर प्रतिबंध लगा रखा है। परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिकी प्रतिबंधों से जूझ रहे ईरान में शुक्रवार को राष्ट्रपति पद के लिए मतदान कराया गया था। करीब छह करोड़ वोटरों में से 2.90 करोड़ मतदाताओं ने वोट डाले। चुनाव अधिकारियों के अनुसार अब तक की गिनती में 60 वर्षीय रईसी को एक करोड़ 78 लाख से ज्यादा वोट मिले हैं। देश के प्रमुख सैन्य बल रिवोल्यूशनरी गार्ड के पूर्व कमांडर मोहसिन रेजाई को 33 लाख और अब्दुलासर हिम्मती को करीब 24 लाख वोट मिले हैं। रईसी अमेरिका व यूरोपीय देशों के मुखर आलोचक हैं। उन्होंने चुनाव के दौरान राजनीतिक या आर्थिक मुद्दों की चर्चा नहीं की, लेकिन परमाणु समझौते की बहाली की पैरवी की। यह परमाणु समझौता 2015 में ईरान और अमेरिका समेत छह महाशक्तियों के बीच हुआ था। वर्ष 2016 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते से अपने देश को अलग कर लिया था और तेहरान पर कई सख्त प्रतिबंध लगा दिए थे। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति रईसी के खिलाफ जांच की मांग दोहराई है। उन पर आरोप लगता रहा है कि बीती सदी के आठवें दशक में राजनीतिक कैदियों को फांसी देने में उनकी भूमिका रही है।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 22 June 2021
स्विस बैंक में जमा धन पर श्वेत पत्र लाएं
कुछ देशों ने अपने यहां दुनियाभर के भ्रष्टाचारियों और कर-चोरों के लिए गुप्त खातों का प्रबंध कर रखा है। स्विट्जरलैंड इन गुप्त खातों के लिए मशहूर है। वहां के बैंकों में दुनिया का कोई भी आदमी अपना खाता खुलवा सकता है और उसमें जितना चाहे पैसा जमा करवा सकता है। वहां का कोई भी बैंक अपने ग्राहकों से न तो यह पूछता है कि उसने जो पैसा जमा किया है, वह कहां से आया है। कैसे आया है? अकाउंटधारकों को एक कोड नम्बर दे दिया जाता है, जिससे यह भी नहीं पता चलता कि खाताधारक का नाम क्या है। अमेरिका और दूसरे देशों के दबाव में अब यह बैंक इतना बताते हैं कि किस देश से कितनी रकम वहां के बैंकों में जमा कराई गई। इस साल के उसके आंकड़ों से पता चला है कि पिछले एक साल में, जब कोरोना महामारी के दौरान देश आर्थिक मंदी से गुजर रहा था, तब भारतीय कंपनियों और नागरिकों ने स्विस बैंकों में सबसे अधिक धन जमा कराया। 2020 में यह आंकड़ा 20,700 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। जो पिछले साल की तुलना में यह 212 प्रतिशत यानि 3.12 गुना ज्यादा है। यह जानकारी स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक द्वारा गुरुवार को जारी किए गए सालाना डाटा में दी गई है। कांग्रेस ने स्विस बैंकों में जमा भारतीय नागरिकों के व्यक्तिगत धन और वित्तीय कंपनियों के नाम जमा रकम 2120 से बढ़कर 20,700 करोड़ रुपए से अधिक हो जाने को लेकर शुक्रवार को केंद्र सरकार से मांग की कि वह श्वेत पत्र लाकर देशवासियों को बताए कि यह पैसा किसका है और विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं? पार्टी प्रवक्ता गौरव बल्लभ ने आरोप लगाया कि सत्ता में आने से पहले भाजपा ने काला धन वापस लाने और लोगों के खातों में 15-15 लाख रुपए जमा करने का वादा किया था, लेकिन केंद्र में उसकी हुकूमत के सात साल बीत जाने के बावजूद उसने इस अपने वादे को पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं किया। उन्होंने बताया कि साल 2020 में स्विस बैंकों में कुछ जमा राशि साल 2019 की तुलना में बढ़कर 286 प्रतिशत हो गई, कुछ जमा राशि 13 साल में सबसे ज्यादा है, जो साल 2007 के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर है, विचित्र है कि एक तरफ देश की अर्थव्यवस्था नकारात्मक स्थिति में पहुंच गई है और दूसरी तरफ कर-चोरी या भ्रष्टाचार के जरिये जुटाई गई इतनी बड़ी राशि स्विस बैंकों के काले तहखानों में कैसे पहुंच गई? भारत समेत पूरी दुनिया पिछले साल से कोरोना महामारी से तबाह हो रही है और स्विस बैंकों में रिकॉर्ड राशि जमा हो रही है?
बंटवारे से बुलंदियों तक...आसान नहीं था मिल्खा सिंह बनना
पाकिस्तान के गोविंदपुरा में जन्मे मिल्खा सिंह का जीवन संघर्षों से भरा रहा। बचपन में ही भारत-पाकिस्तान बंटवारे का दर्द और अपनों को खोने का गम उन्हें उम्रभर सताता रहा। बंटवारे के दौरान ट्रेन की महिला बोगी में सीट के नीचे छिपकर दिल्ली पहुंचे, शरणार्थी शिविर में रहे और ढाबों पर बर्तन साफ कर उन्होंने जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश की। फिर सेना में भर्ती होकर एक धावक के रूप में पहचान बनाई। अपनी 80 अंतर्राष्ट्रीय दौड़ों में उन्होंने 73 जीतीं, लेकिन रोम ओलंपिक का मेडल हाथ से जाने का गम उन्हें जीवनभर रहा। उनकी आखिरी इच्छा थी कि वह अपने जीते जी किसी भारतीय खिलाड़ी के हाथों में ओलंपिक मेडल देखें। लेकिन अफसोस उनकी अंतिम इच्छा उनके जीते जी पूरी न हो सकी। हालांकि मिल्खा सिंह की हर उपलब्धि इतिहास में दर्ज रहेगी। वैसे तो मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में सब कुछ हासिल किया, लेकिन उनका एक सपना अधूरा और वह इस अधूरे सपने के साथ जिंदगी को अलविदा कह गए। उड़न सिख पद्मश्री मिल्खा सिंह अकसर कहा करते थे कि रोम ओलंपिक में जाने से पहले उन्होंने दुनियाभर में कम से कम 80 दौड़ों में हिस्सा लिया था और उन्होंने इनमें से 77 दौड़ें जीती थीं, जो एक रिकॉर्ड बन गया था। वह बताते हैं कि सारी दुनिया यह उम्मीदें लगा रही थी कि रोम ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ मिल्खा ही जीतेंगे। मैं अपनी गलती की वजह से पदक नहीं जीत सका। मैं इतने वर्षों से इंतजार कर रहा हूं कि कोई दूसरा भारतीय वह कारनामा कर दिखाए, जिसे करते-करते मैं चूक गया था, लेकिन कोई भारतीय एथलीट ओलंपिक में पदक नहीं जीत पाया। इसलिए मैं आज भी उस दिन का इंतजार कर रहा था जब कोई भारतीय एथलीट ओलंपिक पदक जीते। 1960 में उस रेस को पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान भी देख रहे थे। उन्होंने मिल्खा सिंह के गले में मेडल डालते हुए पंजाबी में कहाöमिल्खा सिंह जी, तुस्सीं पाकिस्तान दे विच आके दौड़े नहीं, तुस्सीं पाकिस्तान दे विच उड़े हो, अज्ज पाकिस्तान तुहानूं फ्लाइंग सिख दा खिताब देंदा ए। इसके बाद से वह उड़न सिख के नाम से मशहूर हो गए। पाकिस्तान में उनका मुकाबला एशिया का तूफान नाम के मशहूर पाकिस्तानी धावक अब्दुल खालिक से था। बताया जाता है कि रेस शुरू होने से पहले कुछ मौलवी आए और खालिक से कहा कि खुदा आपको ताकत दे, जब वह जाने लगे तो मिल्खा सिंह ने कहाöरुकिए। हम भी खुदा के बंदे हैं। तब मौलवी ने उन्हें भी कहा कि खुदा आपको ताकत दे। रेस में जो हुआ वह इतिहास बन गया। मिल्खा सिंह ऐसे दौड़े कि उन्हें फ्लाइंग सिख का खिताब हमेशा के लिए मिल गया। मिल्खा सिंह की जीवनी पर राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने फिल्म बनाईöभाग मिल्खा भाग। फिल्म बनाने की अनुमति के बदले निर्माता राकेश ओम प्रकाश मेहरा से मिल्खा सिंह ने मात्र एक रुपया लिया। इस एक रुपए की खास बात यह थी कि एक रुपए का यह नोट साल 1958 का था, जब मिल्खा ने राष्ट्रमंडल खेलों में पहली बार स्वतंत्र भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता था। एक रुपए का यह नोट पाकर मिल्खा भावुक हो गए थे। यह नोट उनके लिए एक कीमती याद की तरह था। इस फिल्म में अभिनेता फरहान अख्तर ने मिल्खा की भूमिका निभाई थी। इसमें दिखाया गया था कि मिल्खा ने अपने जीवन में कितना संघर्ष किया। यह फिल्म देश के युवाओं को मेडल जीतने की प्रेरणा देती है।
क्यों भाई चाचा हां भतीजा
लोकजन शक्ति पार्टी में बगावत के बाद पार्टी संस्थापक रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान तथा चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस की ओर से पार्टी पर वर्चस्व को लेकर शुरू हुई लड़ाई अब कानूनी दांव-पेंच में उलझ गई है। दोनों ही पक्ष अब अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए चुनाव आयोग की शरण में पहुंचे हैं। पशुपति पक्ष की ओर से बुलाई गई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद अब चिराग पक्ष ने भी 20 जून को कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है। लोजपा में जिस तरह का आपसी संघर्ष शुरू हुआ है, वह जल्द थमता नजर नहीं आ रहा है। लोकजन शक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के छोटे भाई व सांसद पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में पारस सहित पार्टी के पांच सांसदों की बगावत के बाद लोजपा में शुरू हुई वर्चस्व की लड़ाई दिन-प्रतिदिन तेज हो रही है। पशुपति पारस गुट गत दिवस राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर पशुपति पारस को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर चुका है। इससे पहले लोकसभा सचिवालय उन्हें संसदीय दल का नेता भी घोषित कर चुका है। चाचा पशुपति पारस की ओर से एक के बाद एक लगातार फेल रहे उनके भतीजे चिराग पासवान को लेकर भी अब आक्रामक दिखाई दे रहे हैं और उन्होंने भी पार्टी में अपना वजूद बचाने तथा अपना दबदबा कायम रखने के लिए निर्णायक लड़ाई शुरू कर दी है। चिराग पासवान शुक्रवार को अपनी पार्टी के कुछ नेताओं के साथ चुनाव आयोग से भी मिले और पार्टी के झंडे व चुनाव चिन्ह पर अपना दावा किया। चिराग ने पार्टी संविधान का हवाला देते हुए आयोग से मांग की कि पशुपति पारस गुट को पार्टी के चिन्ह व झंडे का इस्तेमाल करने से रोका जाए। चिराग ने कहा कि जो पांच सांसद उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ हैं उन्हें पार्टी से निष्कासित किया जा चुका है, इसलिए अब वह निर्दलीय सांसद हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Sunday, 20 June 2021
बॉलीवुड का बायकाट कल्चर
कार्तिक आर्यन और फिल्म मेकर करण जौहर का दोस्ताना-2 टूटने के साथ ही कार्तिक के हाथ से एक के बाद कई फिल्मों से निकलने की खबरों ने हमें सुशांत सिंह राजपूत का किस्सा याद दिला दिया है। फैंस सवाल उठा रहे हैं कि कहीं करण से विवाद के बाद कार्तिक बॉलीवुड कल्चर का शिकार तो नहीं हो रहे। बॉलीवुड के उभरते सितारे कार्तिक आर्यन पिछले कुछ समय से एक के बाद एक फिल्में गंवाने को लेकर सुर्खियों में हैं। कार्तिक को निर्माता करण जौहर ने अपनी फिल्म दोस्ताना-2 से करीब 20 दिनों की शूटिंग के बाद अलग कर दिया। वहीं कुछ दिन बाद ही करण के करीबी दोस्त शाहरुख खान के बैनर की फिल्म फ्रेडी से भी कार्तिक आउट हो गए। यही नहीं, हाल ही में कार्तिक के आनंद राय की गैंगस्टर ड्रामा फिल्म का हिस्सा न रहने की भी खबरें आईं। ऐसे में लोगों के जहन में यही सवाल आया कि आखिर कार्तिक के साथ ऐसा क्यों हो रहा है? एक ओर कार्तिक पर क्रिप्ट में नुक्ताचीनी करने के आरोप लग रहे हैं, तो फैंस के मुताबिक करण के साथ विवाद के बाद इंडस्ट्री की एक लॉबी कार्तिक को साइडलाइन कर रही है। इसी बीच फिल्म मेकर अनुभव सिन्हा कार्तिक की सपोर्ट में आगे आए हैं। उन्होंने ट्वीट कियाöकार्तिक आर्यन के खिलाफ जो कैंपेन चलाया जा रहा है उसे लेकर मैं चिंतित हूं। यह बहुत ही अनुचित है। मैं कार्तिक की चुप्पी का सम्मान करता हूं। जबकि फिल्म बिजनेस के जानकार ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है कि फिल्मों में एर्क्ट्स का रिप्लेसमेंट कोई नई बात नहीं है। हालांकि बॉलीवुड में यह बायकाट कल्चर भी कोई नई बात नहीं है। एक्टर विवेक ओबराय से लेकर राइटर-गीतकार जावेद अख्तर तक इसका शिकार हो चुके हैं। पिछले साल दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद उनके फैंस ने करण जौहर और आदित्य चोपड़ा जैसे बड़े निर्माताओं पर सुशांत को साइडलाइन करने, काम छीनने जैसे गंभीर आरोप लगाए। आदित्य चोपड़ा ने सुशांत संग तीन फिल्मों का कांट्रेक्ट साइन किया था। इनमें दो फिल्में शुद्ध रोमांस और व्योमकेश बख्शी तो बनीं, लेकिन सुशांत स्टार महत्वाकांक्षी फिल्म पानी से आदित्य चोपड़ा ने एक साल के इंतजार के बाद हाथ खींच लिया। सुशांत ने इस फिल्म के चक्कर में कई फिल्मों के लिए मना किया था। ऐसे में आदित्य चोपड़ा से मनमुटाव के बाद सुशांत ने कांट्रेक्ट तोड़ दिया। फिर धोनी के सुपर हिट होने के बावजूद सुशांत को इंडस्ट्री वालों की वैसी वाहवाही नहीं मिली। वहीं कई फिल्मों की पहली च्वाइस होने के बावजूद सुशांत रिप्लेस हो गए। यही नहीं, करण जौहर के शो पर कई बार उनका मजाक भी बना। फैंस ने इन सबको उनके खिलाफ लॉबिंग करार देकर विरोध जताया। अंतत सुशांत ने आत्महत्या कर ली। निर्माता करण जौहर पर नेपोटिजम को बढ़ावा देने और आउटसाइर्ड्स को बुली करने का आरोप लगाने वाली एक्ट्रेस कंगना रनौत बॉलीवुड में गुटबाजी, बाहरी कलाकारों को बुली करना और भाई-भतीजावाद के चलन के खिलाफ कई बार आवाज उठा चुकी हैं। कंगना खुलेआम इंडस्ट्री के इस पॉवर गेम के खिलाफ बिगुल फूंकती रही हैं। इस कल्चर के शिकार कई कलाकार हो चुके हैं। प्रमुख हैं विवेक ओबराय, जावेद अख्तर और प्रियंका चोपड़ा।
तेजी से बढ़ा रहे हैं एटमी हथियार
परमाणु हथियारों की रिसर्च करने वाली संस्था सिपरी ने दावा किया है कि चीन के पास 350, पाकिस्तान के पास 165 और भारत के पास 156 परमाणु हथियार क्रमश हैं। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट यानि सिपरी का यह भी कहना है कि यह तीनों देश तेजी से अपने एटमी हथियार बढ़ा रहे हैं। संस्था ने बताया कि यह इस बात से साबित होता है कि पिछले साल चीन के पास 320, पाक के पास 160 और भारत के पास 150 परमाणु हथियार थे। पिछले एक वर्ष में चीन ने 30 और पाकिस्तान ने पांच परमाणु शस्त्र बनाए हैं। संस्था का यह भी आंकलन है कि पूरी दुनिया का 90 प्रतिशत परमाणु हथियार अमेरिका और रूस के पास है। फिलहाल पूरी दुनिया में 13080 एटमी हथियार हैं। इनमें से 2000 हथियार तत्काल इस्तेमाल के लिए तैयार रखे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सऊदी अरब, भारत, मिस्र, ऑस्ट्रेलिया और चीन पांच बड़े हथियार आयातक देश बन गए हैं। हथियार आयात करने में सऊदी अरब का हिस्सा 11 प्रतिशत, जबकि भारत 9.5 प्रतिशत है। चीन और पाक के पास भारत से ज्यादा एटमी हथियार हैं, क्या हम खतरे में हैं? भारत के दो पड़ोसी मुल्क, जिनसे रिश्ते तनावपूर्ण रहते हैं, उनके पास परमाणु हथियार ज्यादा होना चिंताजनक जरूर है पर भगवान ना करे इतने एटमी हथियारों की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। एक-दो परमाणु बम ही काफी होंगे।
38 पत्नियां, 89 बच्चे दुनिया का सबसे बड़ा परिवार
दुनिया के सबसे बड़े परिवार का मुखिया नहीं रहा। एक हफ्ते से बीमार चल रहे जियोना चाना ने गत रविवार को आइजोल के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 76 साल के थे। उन्होंने 38 शादियां रचाई थीं, जिनसे 89 बच्चे पैदा हुए थे। मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरम थांगा ने ट्विटर पर उनके निधन की जानकारी दी। जोरम थांगा ने लिखाöमिजोरम का बकराबंग तलंगुनम गांव पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गया था। इसका श्रेय जियोना और उनके परिवार को जाता है, जियोना के परिवार में 180 से ज्यादा सदस्य मौजूद हैं। इनमें उनकी 38 बीवियों और 89 बच्चों के अलावा 14 बहुएं, 33 पोते-पोतियां व एक पड़पोता शामिल हैं। यह परिवार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दुनिया के सबसे बड़े जीवित परिवारों के रूप में दर्ज है। 17 साल की उम्र में जियोना ने पहली शादी रचाई थी। इस समुदाय में एक से ज्यादा ब्याह रचाने की परंपरा है। जियोना ने ज्यादातर गरीब और अनाथ महिलाओं से शादी की। जियोना का पूरा परिवार एक 100 कमरों के मकान में रहता है। जियोना के घर में रोज 45 किलो चावल, 25 किलो दाल, 31 से 40 मुर्गे, 30 दर्जन अंडे, 60 किलो सब्जी और 20 किलो फल की खपत होती है। यह सब परिवार अपने खेतों में उगाते हैं। इनका अपना पोल्ट्री फार्म भी है।
-अनिल नरेन्द्र
Friday, 18 June 2021
विरोध करना आतंकी साजिश नहीं है
दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली दंगा मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि असहमति को दबाने की चिंता में सरकार की नजर में विरोध करने के संवैधानिक अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच का फर्प धुंधला होता जा रहा है। अगर यह मानसिकता ऐसे ही बढ़ती रही, तो यह लोकतंत्र के लिए काला दिन होगा और खतरनाक होगा। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल व जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार जेएनयू की छात्राएं नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हां को जमानत दे दी। खंडपीठ ने 113 पन्नों, 83 व 72 पन्नों के अपने तीन फैसलों में कहाöदिल्ली दंगों की साजिश के मामले में आरोपियों पर यूएपीए के तहत अपराधों में कोई प्रथम दृष्ट्या मामला नहीं पाया गया है। जमानत के खिलाफ यूएपीए की सख्त धारा 43डी(5) इन आरोपियों पर लागू नहीं होती है और इसलिए वह जमानत पाने के हकदार हैं। पीठ ने कहाöपुलिस के आरोप पत्र में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे लगाए गए आरोपों के मद्देनजर यूएपीए की धारा 15 की रोशनी में संभावित आतंकी, धारा 17 के तहत आतंकी कृत्य के लिए फंड जुटाने एवं धारा 18 के तहत आतंकी कृत्य या आतंकी कृत्य करने की तैयारी के रूप में देखा जा सके। पीठ ने आरोपी विद्यार्थियों की अपील पर निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें उन्हें जमानत देने से इंकार कर दिया गया था। पीठ ने जमानत पर 18 मार्च को आदेश सुरक्षित रखा था। कोर्ट ने कहा कि इस पर कोई विवाद नहीं कि इन्होंने सीएए के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन में भाग लिया। हालांकि हमारा मानना है कि विरोध का अधिकार मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि छात्राओं के खिलाफ आरोप उभर कर सामने नहीं आ रहे हैं। ऐसे में इन्हें न्यायिक हिरासत में रखने का आधार नहीं है। दिल्ली पुलिस ने कहा कि हम फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की राजद्रोह को लेकर की गई टिप्पणी का भी जिक्र किया। अदालत ने कहा कि सरकार और संसदीय गतिविधियों के खिलाफ विरोध वैध है। ऐसे विरोधों के शांतिपूर्ण होने की उम्मीद की जाती है, पर इनका कानून के तय दायरे से बाहर जाना असाधारण नहीं है। एक बार को हम मान भी लें कि छात्राओं ने संविधान के तहत मिले अधिकारों की सीमा लांघी है, तब भी वह आतंकी गतिविधियों की साजिश रचने के बराबर नहीं है। देवांगना और नताशा पर आरोप है कि उन्होंने दूसरे साजिशकर्ताओं के साथ मिलकर लोगों को भड़काया, जिसके चलते हिंसा भड़की। दिल्ली दंगों में कलिता पर चार, नरवाल पर तीन और तन्हां पर दो मामले हैं। अब इनके जेल से छूटने का रास्ता साफ हो गया है, क्योंकि इन्हें अन्य मामलों में पहले से ही जमानत मिल चुकी है।
लोगों की जान बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की सराहना
केरल की कक्षा पांचवीं की छात्रा लिडविना जोसेफ ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमना के दिल से छू लेने वाली चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में छात्रा ने कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान सुप्रीम कोर्ट के स्वत संज्ञान लेने और आम लोगों के इलाज और ऑक्सीजन की कमी को लेकर दिए गए निर्देशों को लेकर शीर्ष अदालत की तारीफ की है। त्रिशूर के केंद्रीय विद्यालय की छात्रा लिडविना ने चिट्ठी के साथ हाथ से बनाई एक ड्राइंग भी भेजी है। ड्राइंग में चीफ जस्टिस को अदालत में अपनी बैंच पर बैठे दिखाया गया है। इस चिट्ठी का चीफ जस्टिस रमना ने जवाब भी दिया है। चीफ जस्टिस ने अपने दस्तखत के साथ संविधान की एक प्रति छात्रा को उपहार में भेजी है। उन्होंने लिखा है कि वह इस बात से प्रभावित हैं कि लिडविना समाचारों और घटनाओं पर नजर रख रही हैं। चीफ जस्टिस ने लिखाöमुझे विश्वास है कि आप बड़ी होकर एक सतर्प, जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बनेंगी और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देंगी। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद ही ऑक्सीजन आपूर्ति को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों ने तत्परता दिखाई और समय से अस्पतालों में ऑक्सीजन तथा कोरोना की दवाओं की आपूर्ति की। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना से निपटने के लिए कई निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए हाल के सवालों के बाद ही केंद्र सरकार ने राज्यों को मुफ्त टीका उपलब्ध कराने की घोषणा की है और राष्ट्रीय टीकाकरण की नीति में बदलाव किया है। इससे अब 18 से 44 साल वालों को भी मुफ्त टीका लगेगा।
गूगल को मात देते हरिद्वार के पंडों के बही-खाते
उत्तराखंड की पुंभ नगरी हरिद्वार के विश्वविख्यात हर की पौड़ी के पास कुशाघाट के आसपास पुराने घरों में पंडों की अलमारियों में करीने से रखे गए सैकड़ों साल पुराने बही-खातों में दर्ज वंशावंली सूचना क्रांति के आधुनिक टूल गूगल को भी मात देते हैं। हरिद्वार में रहने वाले लगभग दो हजार पंडों के पास कई पीढ़ियों से अपने यजमानों के वंशवृक्ष मौजूद हैं। अपने मृतक परिजनों के क्रियाकर्म किए जाने वाले लोग यहां आते हैं और अपने पुरोहितों की बही में अपने पूर्वजों के साथ अपना नाम भी दर्ज करवा लेते हैं। यह परंपरा तब से चली आ रही है जब से कागज अस्तित्व में आया। उससे पहले भोज पत्र पर भी वंशवृक्ष के लिपिबद्ध होने का जिक्र है। वह अब लुप्तप्राय से हो गए हैं। यहां के प्रतिष्ठित पुरोहित पंडित कौशल सिखौला के अनुसार यहां के पंडे हरिद्वार के ही मूल निवासी हैं। यह बताते हैं कि कागज से पहले उनके पूर्वज पंडे अपने लाखों यजमानों के नाम वंश व क्षेत्र तक जुबानी याद रखते थे। जिन्हें वह अपने बाद अपनी आगामी पीढ़ी को बता देते थे। यहां के पंडों में यजमान, गांव, जिला तथा राज्यों के आधार पर बनते हैं। किसी भी पंडे के पास जाने पर वह यथासंभव जानकारी दे देते हैं कि उनके वंशज के कौन-कौन हैं। कई बार किसी व्यक्ति की मौत पर उसकी सम्पत्ति संबंधी परिवारों के आपसी विवादों में वंशावलियों का निर्णय उन्हीं बहियों की मदद से होता है। इन बहियों को देखने बाकायदा अदालत के लोग यहां आते हैं, जिसके अनुसार अदालतें अपना निर्णय करती हैं। इन बही-खातों में पुराने राजा-महाराजा से लेकर आम आदमी की वंशावली भी दर्ज है। पंडित कौशल सिखौला कहते हैं कि कम्प्यूटर युग में भी इन प्राचीन बही-खातों की उपयोगिता कम नहीं हुई है। क्योंकि इन बही-खातों में उनके पूर्वजों की हस्तलिखित बातें और हस्ताक्षर दर्ज होते हैं, जिनकी महत्ता किसी भी व्यक्ति के लिए कम्प्यूटर के निर्जीव प्रिंटआउट से निश्चिंत ही अधिक होती है। उनका कहना है कि जहां उनकी आने वाली पीढ़ियां पढ़-लिखकर अन्य व्यवसाय में जा रही हैं वहीं कुछ पढ़े-लिखे युवा व सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी कर्मचारी अपनी परंपरागत गद्दी संभाल रहे हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 17 June 2021
पासवान की विरासत संभालने में नाकाम रहे चिराग
देश के प्रमुख दलित नेताओं में शुमार रहे रामविलास पासवान की देश की सियासत की नब्ज पर इतनी जबरदस्त पकड़ थी कि fिबहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उन्हें मजाकिया लहजे में एक बार मौसम वैज्ञानिक तक कह डाला था। लेकिन रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी पार्टी पर उनके भाई ने कब्जा जमा लिया और उनकी विरासत संभालने में बेटा चिराग पासवान को इस सियासी बदलाव की भनक तक नहीं लगी। बिहार में पासवान के वोट बैंक पर कब्जे की लड़ाई में चिराग चारों खाने चित हो गए। लोक जनशक्ति पार्टी में टूट की ताजा घटना ने फिर एक बार यह साबित कर दिया है कि राजनीति की दुनिया में बहुत कुछ महत्वाकांक्षाओं से संचालित होता है। लेकिन अकसर उस पर सिद्धांत और सरोकार का पर्दा टांग दिया जाता है। सूत्रों की मानें तो एक प्रमुख सियासी परिवार में पैदा होने के बावजूद चिराग को शुरुआती दिनों में दिल्ली की सत्ता के गलियारों से मुंबई की माया नगरी ज्यादा रास आई। उनकी एक फिल्म भी आई मिले ना मिले हम इस फिल्म में कंगना रनौत उनकी हीरोइन थी। बताते हैं कि वर्ष 2011 में रिलीज हुई इस फिल्म के प्रीमियर में कई जानी-मानी हस्तियां पहुंची थीं। रामविलास पासवान ने बेटे की फिल्म के प्रमोशन का भरसक प्रयास किया लेकिन फिल्म फ्लाप हो गई। लेकिन वर्ष 2014 में चिराग तब सुर्खियों में आ गए जब उन्होंने पासवान को यूपीए छोड़कर राजग में शामिल होने को राजी किया। वर्ष 2002 में हुए गुजरात दंगों के मुद्दे पर मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाले पासवान ने तब राजग के साथ आकर चुनाव लड़ा और बिहार की छह सीटों पर उनकी पार्टी विजयी रही। चिराग भी सांसद चुने गए। लेकिन रामविलास के मरते ही स्थितियां बदल गईं और चिराग ने बिहार विधानसभा के चुनाव में राजग से अलग रहकर चुनाव लड़ने का फैसला किया और नीतीश के खिलाफ ताल ठोंकर मैदान में उतरे। उनकी पार्टी ने 147 विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन जीत एक ही सीट पर मिल पाई। हालांकि ऐसा माना जाता है कि लोजपा की वजह से नीतीश कुमार की जदयू को कम से कम 45 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। चिराग पासवान सहित पार्टी के छह में से पांच सांसदों ने पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में पार्टी को बचाने का नारा लगाकर अलग होने की घोषणा की है। खबरों के मुताबिक लोजपा की इस टूट में जदयू की भी भूमिका रही और समय का चुनाव केन्द्र सरकार में मंत्रिमंडल में भावी विस्तार को ध्यान में रखते हुए किया गया है। अब देखना यह है कि पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में अलग हुआ धड़ा जदयू या भाजपा में विलय का रास्ता चुनता है या फिर स्वतंत्र रहकर राजग में अपने लिए जगह बनाता है, दूसरी ओर चाचा पशुपति पारस के मनाने में नाकाम रहने के बाद एक तरह से चिराग पासवान न केवल राजनीति के मैदान में अकेले रह गए हैं, बल्कि पfिरवार भी दूर चला गया। हालांकि उन्हें बिहार में राजद के एक नेता की ओर से अनौपचारिक प्रस्ताव मिला है कि वे केन्द्र की राजनीति करें और तेजस्वी यादव राज्य की। लेकिन चिराग का रुख अभी सामने नहीं आया है। देखना अब होगा कि टूट के बाद रामविलास पासवान की छवि से जुड़ी लोजपा समर्थक जनता चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस में से किसका पक्ष चुनती है।
कोरोना मौतों का ऑडिट होना चाहिए
कोरोना संक्रमण और उससे होनी वाली मौतों को लेकर राज्यों की तरफ से रोजाना जारी किए जाने वाले आंकड़े पिछले कुछ दिनों से विवाद का मुद्दा बने हुए हैं। कुछ देश और विदेशी मीडिया ने अपने स्तर पर कराए अध्ययन के आधार पर बताया था कि राज्य सरकारों की तरफ से जारी किए गए मौतों के आंकड़ों और वास्तविक संख्या में काफी अंतर है। बिहार सरकार ने कोरोना से हुईं मौतों का आंकड़ा जिस तरह प्रस्तुत किया उससे यह संदेह होता है कि कहीं इसी तरह की गफलत अन्य राज्यों में तो नहीं हुई? बिहार के आंकड़ों को लेकर शुरू से ही संदेह जताया जा रहा था, मगर वहां का स्वास्थ्य विभाग अपने पक्ष पर कायम था। इसे लेकर पटना उच्च न्यायालय ने सरकार को फटकार लगाते हुए जिलावार वास्तविक आंकड़े जुटाने का निर्देश दिया। तब जाकर सरकार ने इसके लिए जिलों में समितियों का गठन किया। इन समितियों ने अस्पतालों और श्मशानों आदि से इकट्ठे करके जो आंकड़े उपलब्ध कराए हैं, उससे जाहिर है कि सरकारी स्तर पर कोरोना से हुई मौतों की संख्या सही नहीं बताई गई। भारत ने शनिवार को उस खबर का खंडन किया जिसमें दावा किया गया था कि देश में कोविड-19 से मरने वालों की संख्या अधिकारिक आंकड़ों से पांच से सात गुना तक अधिक है। केन्द्राrय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बयान जारी कर बिना नाम लिए लेख प्रकाशित करने के लिए प्रकाशक की निंदा की जिसमें दावा किया गया है कि भारत में कोविड-19 से होने वाली मौतें आधिकारिक आंकड़ों से पांच से सात गुना अधिक हैं। मंत्रालय ने दि इक्नोमिस्ट द्वारा प्रकाशित लेख को कयास लगाने वाला और बिना आधार वाला एवं भ्रामक करार दिया है। बयान में कहा गया, यह अनुचित विश्लेषण महामारी विज्ञान के सुबूतों के बिना केवल आंकड़ों के आंकलन पर आधारित है। उधर कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर कोरोना मृतकों के आंकड़े छिपाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि देश में जिन राज्यों में उसकी सरकारें हैं वहां आंकड़ों में हेरा-फेरी हुई है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी को मामले की न्याययिक जांच करानी चाहिए और वहां के मुख्यमंत्रियों को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना चाहिए। वाराणसी में आंकड़े छिपाने का हवाला देते हुए प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, अप्रैल में वहां 127 मौतें दिखाई गईं जबकि अकेले मणिकर्णिका घाट पर ही इस महीने के एक सप्ताह में 1500 दाह संस्कार हुए। हालात देख के लगता है कि गुजरात, मध्यप्रदेश उत्तर प्रदेश, कर्नाटक जैसे भाजपा शासित राज्यों के बीच कोरोना आंकड़े छिपाने की प्रतिस्पर्धा हो रही है, लाखों ऐसे मृतक हैं जिनके बारे में यह पता नहीं चला कि उनकी मृत्यु कोरोना से हुई है या किसी अन्य बीमारी से। एम्स के निर्देशक डा. रणदीप गुलेरिया ने सलाह दी है कि सभी अस्पतालों में कोरोना काल में हुई संक्रमितों की मौत का ऑडिट कराएं। डा. गुलेरिया ने कहा है कि अस्पतालों और राज्यों के कोरोना वायरस से हुईं मौतों का ऑडिट कराना चाहिए जिससे पारदर्शिता आए। जिस तरह से कोरोना से हुईं मौतों को भी सामान्य मौत बताया गया, घरों में होने वाली मौतों के आंकड़े जुटाने का प्रयास नहीं किया गया। वह सरकारों की जानबूझकर की गई घपलेबाजी ही कही जाएगी। अभी कोरोना का खतरा टला नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक रोज एक लाख लोग संक्रमित हो रहे हैं। पांच हजार से ऊपर मौतें हो रही हैं। अगर अपनी नाकामी छिपाने की गरज से सरकारों का यही रवैया रहा, तो मुश्किल बढ़ेगी ही।
कश्मीर में बढ़ेंगी आतंकी गतिविधियां
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ कश्मीर में आतंकी गतिविधियां बढ़ने की आशंका है। सीएनएन न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार लोकतंत्र की रक्षा के लिए बने फाउंडेशन एफडीडी के वरिष्ठ फेलो और लांग वॉर जर्नल के संपादक बिलरोगियो ने कहा है कि अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद बढ़ने की संभावना है। फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीन (एफडीडी) के मुताबिक पाकिस्तान का आतंकवाद को प्रायोजित करना उसकी विदेश नीति का एक हिस्सा है और यह नीति तालिबान के जेहादी गुटों को प्रोत्साहित करती है। इस मामले पर नजर रखने वाले पर्यवेक्षकों को आशंका है कि अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में 20 साल के युद्ध से खुद को अलग कर लेने के बाद कश्मीर में संघर्ष के हालात और खराब हो सकते हैं। हालांकि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी बिलंकेन ने कहा है कि अमेरिका सिर्फ अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा है, वह देश में अपनी मौजूदगी खत्म नहीं करेगा। लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तानी विदेश नीति की शह पाकर यह आतंकी गुट अफगानिस्तान का साथ देने वाले देशों के खिलाफ अपनी गतिविधियां बढ़ा सकते हैं। आतंकवाद को पनाह देने के साथ पाकिस्तान में आतंकियों के लिए धन एकत्रित होता है। यह दावा है पाक की विपक्षी नेशनल पार्टी (एएनपी) का जिसने कहा है कि सरकार अफगान तालिबान को मस्जिद के जरिए चंदा जुटाने की प्रथा रोकने के लिए तेजी से कार्रवाई करे, पार्टी के पूर्व प्रांतीय प्रवक्ता और एएनपी के अध्यक्ष अजमल वली खान ने एक मरकज में आयोजित शोक सभा में बोलते हुए मस्जिदें में जारी दान के संग्रह का खुलासा किया। उन्होंने कहा, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ और जमात-ए-इस्लामी सरकार में सहयोगी नहीं हैं। मगर इन दोनों को एक ही स्रोत से आदेश मिल रहे हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है।
-अनिल नरेन्द्र
Wednesday, 16 June 2021
शीशे के घर में रहने वाले दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते
मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह की याचिका शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दी कि जिनके अपने घर शीशे के होते हैं, वह दूसरों के घरों में पत्थर नहीं फेंकते। याचिका में परमबीर सिंह ने अपने खिलाफ चल रहे मामलों की जांच सीबीआई को सौंपने की फरियाद की थी। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी. सुब्रह्मण्यम की अवकाशकालीन पीठ ने कहाö30 वर्ष से भी ज्यादा समय तक सेवा के बाद भी क्या आपको महाराष्ट्र पुलिस पर भरोसा नहीं है। क्या यह बेहद चौंकाने वाली बात नहीं है। अदालत के रुख को देख परमबीर सिंह ने बाद में अपनी याचिका वापस ले ली। परमबीर सिंह को मार्च में मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से हटा दिया गया था। रिलायंस समूह के अध्यक्ष मुकेश अंबानी की सुरक्षा से संबंधित कई जांचों के दौरान परमबीर सिंह विवादों में घिरे रहे थे। उन्होंने महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर धमाका कर दिया था, जिससे उद्धव ठाकरे सरकार का संकट गहरा गया था। परमबीर सिंह ने आरोप लगाया था कि अनिल देशमुख ने मुंबई के बार व रेस्तरां से हर महीने सौ करोड़ रुपए की वसूली का कुछ पुलिस वालों को लक्ष्य दिया था। बकौल परमबीर सिंह गृहमंत्री के भ्रष्टाचार का खुलासा करने के कारण उन्हें निशाना बनाया जा रहा था और परेशान किया गया। इसी आधार पर उन्होंने अपने खिलाफ जारी सभी जांच मुंबई पुलिस से सीबीआई को स्थानांतरित करने की मांग की थी। अनिल देशमुख के खिलाफ लगे आरोपों की जांच सीबीआई ही कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर सुनवाई के दौरान परमबीर सिंह के वकील महेश जेठमलानी ने अदालत को बताया कि परमबीर सिंह पर एक जांच अधिकारी ने देशमुख के खिलाफ लिखा पत्र वापस लेने का दबाव बनाया था और धमकी दी थी कि ऐसा नहीं करने पर उन्हें और मामलों में फंसाया जाएगा। जेठमलानी ने कहा कि उन्हें एक के बाद एक नए मामलों में फंसाया जा रहा है। इस पर जजों ने टिप्पणी कीöयह तो पुरानी कहावत है कि खुद शीशे के घर में रहने वाले दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते। जब अदालत को बताया गया कि मुख्यमंत्री को परमबीर सिंह के पत्र के बाद भी उगाही का सिलसिला जारी रहा तो न्यायाधीशों ने उन्हीं पर यह कहते हुए पलटवार कियाöआप पुलिस आयुक्त थे। अवैध उगाही रोकने के लिए आपने क्या कदम उठाए थे? अगर पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी पर दबाव डाला जा सकता है तो फिर कोई नहीं होगा जिस पर दबाव नहीं डल सकता। उन्होंने कहाöकहानियां मत बनाइए। जांच सीबीआई को सौंपने के मुद्दे पर पीठ ने कहाöदोनों बातें अलग-अलग हैं। पूर्व मंत्री के खिलाफ जांच अलग है और आपके खिलाफ जांच अलग है। आपने पुलिस में अपनी 30 साल से ज्यादा सेवा दी है। आपको पुलिस पर संदेह नहीं होना चाहिए। जब आप यह नहीं कर सके तो आप राज्य से बाहर जांच चाहते हैं।
भारत सरकार के कुछ कदम लोकतांत्रिक मूल्य विरोधी
अमेरिका के एक शीर्ष अधिकारी ने सांसदों से कहा है कि भारत मजबूत कानून-व्यवस्था के साथ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बना हुआ है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदियों समेत भारत सरकार के कुछ कदमों से चिंताएं पैदा हो गई हैं जो उसके लोकतांत्रिक मूल्यों के परस्पर विरोधी हैं। दक्षिण और मध्य एशिया के कार्यवाहक सहायक विदेश मंत्री डीन थॉम्पसन ने एशिया, मध्य एशिया पर सदन की विदेश मामलों की उपसमिति को हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में लोकतंत्र पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणियां कीं। थॉम्पसन ने कहाöभारत मजबूत कानून-व्यवस्था और स्वतंत्र न्यायपालिका के साथ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है तथा उसकी अमेरिका के साथ मजबूत और बढ़ती रणनीतिक साझेदारी है। हालांकि भारत सरकार के कुछ कदमों ने चिंताएं पैदा कर दी हैं जो उसके लोकतांत्रिक मूल्यों की परस्पर विरोधी हैं। उन्होंने कहाöइसमें अभिव्यक्ति की आजादी पर बढ़ती पाबंदियां और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व पत्रकारों को हिरासत में लेना शामिल है। उन्होंने कहा कि अमेरिका नियमित तौर पर इन मुद्दों पर बातचीत करता रहता है। बहरहाल भारत ने विदेशी सरकारों और मानवाधिकार समूहों की उन आलोचनाओं को खारिज कर दिया था कि देश में नागरिक स्वतंत्रता का क्षरण हुआ है। भारत ने कहा कि उसकी भलीभांति स्थापित लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं हैं और सभी के अधिकारों की सुरक्षा के लिए मजबूत संस्थान हैं। भारत सरकार ने इस बात पर जोर दिया है कि हमारा संविधान मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए अनेक विधानों के तहत पर्याप्त संरक्षण प्रदान करता है। सांसदों के एक सवाल के जवाब में थॉम्पसन ने कहा कि पाकिस्तान और बंगलादेश में पत्रकारों पर कुछ पाबंदियों को लेकर अमेरिका चिंतित है।
मास्क जरूरी है पर साफ होना चाहिए
मास्क ही कोरोना से बचाव में इस समय सबसे बड़ा हथियार है, लेकिन सही तरीके से मास्क का इस्तेमाल न करने की वजह से कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। एक्सपर्ट्स के अनुसार मास्क की सफाई और उसे बदलने को लेकर लोगों में जागरुकता का अभाव है। कई लोग लंबे समय तक एक ही मास्क का उपयोग करते रहते हैं, तो कुछ मास्क साफ तक नहीं करते। द्वारका के डॉ. मुकेश शर्मा के अनुसार मास्क पहनने से ज्यादा जरूरी है साफ मास्क पहनना। गंदा मास्क आपको कोरोना से बचाने की बजाय आपको कई अन्य बीमारियों की जद में ले जाएगा। इन दिनों काफी लोग ऐसे हैं, जो डिस्पोजेबल मास्क को भी दो से पांच दिन तक इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं कपड़े के मास्क को नहीं बदलने, 10-15 दिनों के अंतराल पर धोने से भी समस्याएं बढ़ रही हैं। साथ ही एक ही मास्क बहुत अधिक समय तक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। गंदे मास्क से गले में दर्द, पेट संबंधी बीमारियां, गले में खिचखिच, अपच और सांस संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं। साफ मास्क सांसों को बाहर निकालता है और उससे हवा भी अंदर जाती है, लेकिन मास्क को लंबे समय तक इस्तेमाल करने और न धोने की वजह से मास्क के छिद्र गंदगी से भर जाते हैं और इस तरह स्तर में कमी ला सकते हैं। आपको घुटन की समस्या अधिक हो सकती है। उन्होंने बताया कि मास्क पहनने से खांसी की समस्या नहीं होती है, लेकिन गंदा मास्क पहनने से समस्या पैदा हो सकती है। मास्क धोने के लिए गरम पानी करें, 5-10 मिनट के लिए उसे पानी में डुबोकर रखें। इसके बाद साबुन से धोएं, 4-5 घंटे तक तेज धूप में सूखने दें। गीले मास्क का उपयोग न करें, इससे कीटाणु पनपते हैं इसलिए मास्क को प्रेस कर लें।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 15 June 2021
मुकुल रॉय की चार साल बाद घर वापसी
मुकुल रॉय की घर वापसी पश्चिम बंगाल में जहां तृणमूल कांग्रेस के लिए उत्साहवर्द्धक है वहीं यह भाजपा के लिए झटका है। करीब चार साल पहले भाजपा में गए मुकुल रॉय की पुत्र समेत तृणमूल कांग्रेस में वापसी प्रत्याशित तो थी ही, उनके लौटने के बाद अब तृणमूल में ऐसे अनेक अवसरवादी नेताओं की वापसी की संभावना बढ़ गई है, जो पांच साल तक विपक्ष में रहने का जोखिम नहीं उठाना चाहते। बंगाल भाजपा में ऐसे कई नेता हैं, जिन्होंने चुनाव से पहले तृणमूल का साथ छोड़ा था। मुकुल रॉय ने भाजपा क्यों छोड़ी? इसका विश्लेषण करना ज्यादा मुश्किल नहीं है। केंद्र में मंत्री बनाने में देरी व भाजपा में शुभेंदु अधिकारी के बढ़ते कद के कारण पश्चिम बंगाल के कद्दावर नेता फिर तृणमूल में चले गए। ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी से मुकुल रॉय की मुलाकात की खबर मिलने पर पीएम नरेंद्र मोदी ने मुकुल रॉय से उनकी अस्वस्थ पत्नी की तबीयत के बारे में बात की थी। लेकिन भाजपा उन्हें रोकने में नाकाम रही। दरअसल शुभेंदु अधिकारी के भाजपा में शामिल होने और ममता बनर्जी के खिलाफ उम्मीदवार बनने से ही मुकुल रॉय का पार्टी में महत्व कम होने लगा था। चुनाव में उनके कुछ समर्थकों को टिकट तो मिला पर ज्यादातर प्रतिनिधित्व शुभेंदु अधिकारी के उम्मीदवारों को मिला। उधर टीएमसी का दावा है कि मुकुल रॉय के साथ 30 भाजपा विधायक शामिल होंगे। रही-सही कसर शुभेंदु अधिकारी को नेता विपक्ष से निकल गई। देखा जाए तो यह अधिकार मुकुल रॉय का था, क्योंकि पिछले चार साल से वह भाजपा के लिए अच्छा काम कर रहे थे। तमाम तृणमूल कांग्रेस नेताओं का भाजपा में शामिल होने के पीछे मुकुल रॉय का ही हाथ था। लगता है कि शुभेंदु को इतना महत्व मिलने से मुकुल रॉय उखड़ गए और उन्होंने घर वापसी की। मुकुल रॉय की घर वापसी पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए एक और बड़ा झटका है। करीब चार साल पहले भाजपा में आए रॉय ने लोकसभा चुनावों में पार्टी की चुनावी रणनीति को बंगाल में जमीन पर उतारने में अहम भूमिका निभाई थी, जिसके बाद पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। पर विधानसभा चुनावों के बाद बदली राजनीतिक परिस्थितियों में रॉय खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। मौके का फायदा उठाकर ममता उन्हें वापस लाने में कामयाब रहीं। मुकुल रॉय ममता के करीबी रहे हैं। माना जाता है कि चुनावों से पूर्व तक तृणमूल में बड़े पैमाने पर हुई तोड़फोड़ में भी रॉय की भूमिका रही है। लेकिन चुनाव नतीजों के बाद खास तवज्जो नहीं मिलने से रॉय आहत थे। उधर भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से शुभेंदु को आगे बढ़ाने से रॉय ज्यादा खफा हो गए थे। माना जाता है कि रॉय की वापसी से तृणमूल के कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा। हालांकि वह चुनाव में शानदार जीत से पहले भी बढ़ा है। दूसरे तृणमूल छोड़कर कई नेताओं की घर वापसी के आसार बढ़ रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा को हालांकि रॉय के जाने से तुरन्त कोई ज्यादा नुकसान नहीं है। पर माना जा रहा है कि इससे लोकसभा चुनावों की तैयारियों पर असर पड़ सकता है। अब भाजपा को बाहर से आए लोगों को अहम पदों पर बिठाने के फैसले पर नए सिरे से विचार करना पड़ सकता है। क्योंकि ऐसे समय में जब दूसरे दलों से भविष्य की तलाश में नेता भाजपा में शामिल हो रहे हों। ऐसे में एक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पार्टी छोड़कर जाना जनता में गलत संदेश जाता है। नारद स्टिंग मामले में मुकुल रॉय अब सीबीआई जांच से बाहर हो चुके हैं, जबकि शुभेंदु अधिकारी कैमरे पर पैसे लेते हुए पकड़े गए थे और उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति का सीबीआई का आवेदन लोकसभा अध्यक्ष के पास लंबित है।
कोहेन ने दी मौसाद की खुफिया जानकारियां
दुनिया की खुफिया एजेंसियों में सबसे उपर नाम आता है इजरायल की खुफिया एजेंसी मौसाद का। मौसाद की गतिविधियां इतनी गुप्त होती हैं कि शेष दुनिया को पता ही नहीं चलता। पर कभी-कभी इनके बारे में पता चलता है। हाल ही में इजरायल की खुफिया एजेंसी मौसाद के पूर्व प्रमुख मौसी कोहेन ने एक इजरायली टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में ईरान के भीतर मौसाद की गतिविधियों के बारे में कुछ जानकारियां दी हैं, जिनकी काफी चर्चा हो रही है। उन्होंने इस इंटरव्यू में ऐसा संकेत दिया कि ईरान के नतांज स्थित भूमिगत परमाणु संयंत्रों पर हुए हमले के पीछे मौसाद का ही हाथ था। अपने इस इंटरव्यू में कोहेन ने ईरान के वैज्ञानिकों को भी चेतावनी दी कि अगर वो परमाणु कार्यक्रम का हिस्सा रहे, तो उन्हें भी निशाना बनाया जा सकता है। इस साल 11 अप्रैल को ईरान के नतांज परमाणु संयंत्र पर हमले के बाद ईरानी अधिकारियों ने कहा था कि हमले में ईरान के सबसे बड़े परमाणु केंद्र की हजारों मशीनें या तो खराब हो गई हैं या बर्बाद हो गई हैं। लेकिन तब इजरायल के सरकारी रेडियो पर खुफिया सूत्रों के हवाले से बताया गया था कि यह इजरायल की खुफिया एजेंसी मौसाद का एक ऑपरेशन था। नतांज परमाणु केंद्र में 2020 में भी जुलाई में आग लग गई थी। तब ईरानी अधिकारियों ने इसे साइबर हमले का नतीजा बताया था। इस घटना को लेकर ईरान के विदेश मंत्री जव्वाद जरीफ ने कहा था कि ईरान नतांज हमले का बदला जरूर लेगा। उसके बाद इसी साल अप्रैल में एक और धमाका हुआ जिसने नतांज संयंत्र के भूमिगत हॉल को तोड़ दिया था। इन हमलों के लिए ईरान ने इजरायल को ही जिम्मेदार ठहराया था। अब जब कोहेन से नतांज के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अपने इंटरव्यू में सीधे तौर पर तो यह स्वीकार नहीं किया कि उन हमलों के पीछे मौसाद का हाथ ही था, लेकिन उन्होंने हमलों से जुड़ी कुछ हैरान करने वाली जानकारियां जरूर दीं। जब उनसे पूछा गया कि अगर ईरानी संयंत्र में जाने का मौका मिले तो वो कहां जाना चाहेंगे, तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि सेलार में जहां सैंट्रफ्यूज घूमा करता था। कोहेन ने अपने इंटरव्यू में कहाöहम ईरान को परमाणु हथियार नहीं बनाने देंगे। यह उन्हें समझ क्यों नहीं आता। ईरान ने कोहेन के इस इंटरव्यू पर फिलहाल कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। मोहसिन फखरीजादेह की हत्याöअपने इंटरव्यू में मौसी कोहेन ने पुष्टि की कि ईरान के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह सालों से मौसाद की नजरों में थे। उन्होंने कहाöनवम्बर 2020 से पहले भी हमारे लोग फखरीजादेह के बहुत करीब रहे थे। नवम्बर 2020 में ईरान की राजधानी तेहरान के करीब एक हमले में फखरीजादेह की हत्या कर दी गई थी। ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर नजर रखने वाले फखरीजादेह को बाखूबी जानते थे। साथ ही पश्चिमी देशों के अधिकांश सुरक्षा जानकार भी फखरीजादेह का परिचय ईरान के परमाणु कार्यक्रम के मुख्य कर्ताधर्ता के तौर पर करते थे। द टाइम्स ऑफ इजरायल अखबार के अनुसार बेंजामिन नेतन्याहू ने ही दिसम्बर 2015 में मौसी कोहेन को मौसाद चीफ बनाया था। अखबार ने लिखा है कि कोहेन ने अपने इंटरव्यू में जिस तरह की जानकारियां दी हैं, वो सामान्य नहीं हैं। उन्होंने बहुत सारी चीजों पर रोशनी डाली है। उनके इंटरव्यू को देखकर लगता है कि जरूर इजरायली सेना से इसकी समीक्षा करवाई गई होगी और उनसे मंजूरी ली गई होगी। मगर एक खुफिया सेवा (वह भी मौसाद जैसी एजेंसी) के प्रमुख रहे इंसान के लिए इतने खुलकर बात करना कोई सामान्य बात नहीं है।
क्या 5जी से फैल रहा है कोरोना?
5जी को लेकर इन दिनों बहुत-सी बातें कही जा रही हैं। बता दें कि 5जी क्या है? यह नए जमाने की मोबाइल फोन प्रौद्योगिकी है, जिसके जरिये संचार और डेटा ट्रांसफर तीव्र गति से संभव हो सकेगा। अनुमान है कि यह मौजूदा 4जी से करीब 20 गुना अधिक तेज होगा। तकनीकी दुनिया में सूचनाओं का तीव्र आदान-प्रदान समय की जरूरत बन चुका है। 5जी के साथ डाटा नेटवर्क स्पीड 2.20 जीबी प्रति सैकेंड तक होने की उम्मीद है। 5जी का प्रभाव चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों में भी देखने को मिलेगा। इन दिनों सोशल मीडिया में कोरोना से बिगड़ते हालात के लिए 5जी तकनीक को दोषी ठहराया जा रहा है। लेकिन अन्य देशों में, जहां 5जी की शुरुआत हो चुकी है, वहां इस तरह के किसी भी मामले की पुष्टि नहीं हुई है। ऐसे में भारत में यह कोरोना संक्रमण के फैलाव के लिए कैसे जिम्मेदार हो सकता है? सेल्यूलर ऑपरेर्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने कहा है कि 5जी प्रौद्योगिकी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव को लेकर जो चिंता जताई जा रही है, वह पूरी तरह से गलत है। अभी तक जो भी प्रमाण उपलब्ध हैं उनसे पता चलता है कि अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकी पूरी तरह सुरक्षित है। सीओएआई ने इस बात पर जोर दिया कि 5जी प्रौद्योगिकी पासा पलटने वाली होगी और इससे अर्थव्यवस्था और समाज को जबरदस्त फायदा होगा। सीओएआई, रिलायंस जियो, भारतीय एयरटेल और वोडाफोन आइडिया जैसी बड़ी कंपनियों का प्रतिनिधित्व करती है। वैश्विक रूप से मान्य मानकों की तुलना में भारत के नियम अधिक सख्त हैं। वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य मानक की तुलना में भारत सिर्फ 10 प्रतिशत विकिरण की अनुमति है। वैज्ञानिकों ने भी इस बात का खंडन किया है कि 5जी परीक्षण और उसकी तकनीक से किसी प्रकार का संक्रमण फैल सकता है। 5जी मोबाइल टॉवर नॉन आयोइजिंग रेडियो फ्रीक्वैंसी छोड़ते हैं, जो मानव की सेहत के लिए हानिकारक नहीं हैं। जब भी कोई नई प्रौद्योगिकी आती है तो ऐसी ही अफवाहें उड़ाई जाती हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 12 June 2021
यूएई में गर्मी का सात साल का रिकॉर्ड टूटा
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में इन दिनों गर्मी कहर बरपा रही है। रविवार को अत ऐन के सदीहान में पारा 51.8 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। यह सीजन का सबसे गरम दिन था। बीते शुक्रवार को भी यहां पारा 51 डिग्री था। इस पर राष्ट्रीय मौसम विज्ञान केंद्र (एनसीएम) के प्रवक्ता ने कहा कि मई की तुलना में जून में तापमान 2-3 डिग्री बढ़ गया है। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि यूएई अब तक का सबसे गरम साल देखेगा। इससे पहले 2002 में 52.1 डिग्री पारा पहुंच गया था। पर तीन दिन में दो बार 51 डिग्री पहुंचना नई बात है। यूएई के खगोल विज्ञानी हसन-अल-हरिटी ने कहा कि इतनी ज्यादा गर्मी एक अजीब मौसम की घटना है, पर इसको हर 11 साल पर होने वाली सूर्य गतिविधि से जोड़कर कभी नहीं देख सकते। 2020 में सूर्य अपने अधिकतम गतिविधि वाले चक्र में प्रवेश कर चुका है। यही इस गर्मी का कारण है, बिना आंकड़े और विश्लेषण के यह कहना मुश्किल है। 55 वर्षीय हरिरी ने बताया कि बचपन यानि 70 के दशक में यहां गर्मी के मौसम में भी ठंडक रहती थी, 90 के दशक के साथ गर्मी में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। इसे देखते हुए यूएई पुलिस और प्रशासन ने भी तैयारी कर ली है। अबूधाबी पुलिस ने चेतावनी दी है कि यदि माता-पिता या अभिभावक ने किसी भी कारण से बच्चों को कार के अंदर छोड़ा तो यह दंडनीय अपराध होगा। ऐसे लोगों को 10 साल की जेल और 10 लाख दिरहम (2 करोड़ रुपए) तक के जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है। गर्मी में टायर फटने से होने वाली दुर्घटनाओं को ध्यान में रखते हुए समर सेफ ट्रैफिक अभियान के तहत अबूधाबी पुलिस ने ड्राइवरों से गाड़ियों के टायरों की जांच के ]िलए कहा है। साथ ही यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं कि टायर पुराने या क्षतिग्रस्त तो नहीं हैं, ताकि दुर्घटना से बचा जा सके। ड्राइवरों को उपयुक्तता, आकार, तापमान, अधिकतम पारा निर्माण वर्ष और लंबे सफर के लिए उनके स्थायित्व के निर्देशों के अनुसार टायरों का इस्तेमाल करने को कहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी गर्मी में बच्चों को गाड़ी में छोड़ना जानलेवा हो सकता है, क्योंकि बाहर तापमान 40 डिग्री है तो 10 मिनट में ही गाड़ी के अंदर तापमान 60 डिग्री तक पहुंच सकता है। हीट स्ट्रोक और सफोकेशन से बच्चों की जान जा सकती है। सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि हर साल औसतन 40 बच्चों की मौत इस वजह से होती है। सबसे बड़ी बात है कि 55 प्रतिशत माता-पिता ऐसे खतरे से वाकिफ नहीं होते हैं।
-अनिल नरेन्द्र
तापमान बढ़ने से नीचे दबे वायरस के सक्रिय होने का खतरा
इतिहास में हमेशा मनुष्य और बैक्टीरिया व वायरस साथ-साथ रहे हैं। बेबोनिक प्लेग, चेचक तक हम इनका सामना करते रहे हैं। लेकिन क्या होगा यदि अचानक हमारा सामना ऐसे घातक बैक्टीरिया और वायरस से हो जाता है जो हजारों वर्षों से धरती के नीचे दबे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण हजारों वर्षों से जमी पर्माफ्रास्ट (मिट्टी, चट्टान और बर्फ से बनी धरती की परत) पिघल रही है और प्राचीन वायरस और बैक्टीरिया बाहर आ रहे हैं। इनमें से अधिकतर के एक्टिव होने की आशंका नहीं है लेकिन कुछ एक्टिव होकर खतरनाक रूप ले सकते हैं। अगस्त 2016 में साइबेरिया टुडा के चचल प्रायद्वीप में एक 12 साल के लड़के की मौत एंथ्रेक्स से हो गई थी। 20 अन्य लोग संक्रमित हो गए थे। इसकी शुरुआत 75 साल पहले हुई थी। तब एंथ्रेक्स से एक हिरन की मौत के बाद उसका शव मिट्टी और बर्फ के नीचे दब गया था। 2016 की भीषण गर्मी से यह परत पिघल गई थी और शव बाहर आ गया था। इसका बैक्टीरिया एंथ्रेक्स पानी, मिट्टी और फिर खाद्य पदार्थ के जरिये बच्चे के शरीर में पहुंच गया। हालांकि एंथ्रेक्स की सबसे पहले पहचान 12-13वीं सदी में की गई थी। यह अकेला मामला नहीं है। जैसे-जैसे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी पर्माफ्रास्ट की परत अधिक पिघलेगी। सामान्य परिस्थितियों में पर्माफ्रास्ट की परत हर गर्मियों में 50 सेमी पिघलती है लेकिन अब ग्लोबल वार्मिंग पुरानी पर्माफ्रास्ट परतों के पिघलने का कारण बन रही है। आर्टिक सर्कल में तापमान दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में लगभग तीन गुना तेजी से बढ़ रहा है। पर्माफ्रास्ट तेजी से पिघलने से इसमें जमा कार्बन डाइऑक्साइड और मिथेन भी वाताववण में घुल रही है। 2020 की गर्मियों में साइबेरिया में अब तक का सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया है। इधर कुछ वर्ष पहले फ्रांस और रूस के वैज्ञानिकों ने 30 हजार साल पुरानी साइबेरिया पर्माफ्रास्ट से निकाले एक वायरस को पुनर्जीवित किया है। यह वायरस अभी वन को संक्रमित कर सकता था, इंसान को नहीं, लेकिन रूसी विज्ञान अकादमी के शोधकर्ताओं डॉ. एबर्जेल और डॉ. क्लेवेरी कहते हैं कि यह भी संभव है कि ऐसे ही कुछ वायरस इंसानों को संक्रमित कर सकते हैं। 2005 के एक अध्ययन में नासा के वैज्ञानिकों ने अलास्का के जमे तालाब में 32 हजार वर्ष पुराने एक बैक्टीरिया को सफलतापूर्वक पुनर्जीवित किया था। ग्लोबल वार्मिंग से बर्फ पिघल रही है और यह खतरे का संकेत है।
मेहुल चोकसी की फिल्मी कहानी...(2)
फिर उन्होंने मुझे बातचीत के बिना किसी सोर्स और बिना पैसों के छोड़ दिया। उन्होंने मेरे परिवार और वकीलों को भी नहीं बताया कि मैं कहा हूं। उन्होंने मुझसे कहा कि वो मुझे डॉमिनिका पुलिस कमिश्नर को सौंप देंगे। चोकसी के एक महिला के साथ होने के बारे में पहला बड़ा बयान एंटीगुआ के प्रधानमंत्री गैस्टन ब्राउन की तरफ से आया था। उन्होंने कहा था कि चोकसी अपनी गर्लफ्रेंड के साथ अच्छा समय बिताने डॉमिनिका गए थे। जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। ब्राउन ने कहा था कि एंटीगुआ से निकलना चोकसी की सबसे बड़ी गलती थी। इसके बाद जोर-शोर से यह जानने की कोशिश की गई कि आखिर 23 मई की शाम चोकसी किस लड़की के साथ थे? कुछ दिनों बाद बारबरा का नाम सामने आया और चोकसी की पत्नी ने बताया कि वो कुछ महीनों से चोकसी से मिल रही थीं। चोकसी ने अपनी शिकायत में बारबरा के बारे में लिखा है। मैं बारबरा को एक दोस्त के तौर पर जानता था। वो पहले जॉली हार्बर्ट में मेरे घर के सामने रहती थीं। लेकिन बाद में कोकाबे होटल में शिफ्ट हो गई थी। मेरे स्टाफ के साथ उसके दोस्ताना रिश्ते थे। हम नियमित अंतराल पर मिलते थे और अकसर शाम को वॉक पर जाते थे। जब उसके घर में मुझे पीटा जा रहा था, तो उसने कुछ नहीं किया। वो चुपचाप सब कुछ देखती रही और उसने बाहर से किसी को बुलाने की भी कोशिश नहीं की। वो जो कुछ भी कर रही थी, उससे साफ पता चलता है कि वो इस प्लान का अहम हिस्सा थी। चोकसी ने शिकायत में यह दावा भी किया कि उनको फोन पर एक शख्स से बात कराई गई थी, जिसने अपना नाम नरिंदर सिंह उर्फ अमरिंदर सिंह बताया था। शिकायत के मुताबिक इस शख्स ने कहा कि मैं तुम्हारे केस का इंचार्ज हूं। वो मुझ पर दबाव डालने लगा कि मैं कहूं कि मैंने अपने अपहरणकर्ताओं की मदद की और मैं खुद उनके साथ गया था। मेरे मना करने पर उसने मुझे धमकाया कि मदद न करने पर मेरा परिवार खतरे में पड़ जाएगा। चोकसी के एंटीगुआ पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने के बाद एंटीगुआ के पीएम गैस्टन बाउन ने सोमवार को कहाöचोकसी ने शिकायत दर्ज कराई है कि उनका अपहरण किया गया है। उन्होंने अपने वकील के जरिये दावा किया है कि उन्हें एंटीगुआ से अपहरण करके डॉमिनिका ले जाया गया। पुलिस इस मामले को गंभीरता से ले रही है और अपहरण की जांच की जा रही है। डॉमिनिका के प्रधानमंत्री का क्या कहना है? समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक डॉमिनिका के प्रधानमंत्री रूजवेल्ट ने इस बारे में पहली बार कोई बयान देते हुए कहा हैöभारतीय नागरिक चोकसी के खिलाफ कोर्ट में मामला चल रहा है। कोर्ट तय करेगा कि इनके साथ क्या किया जाएगा और हम कोर्ट के आदेश के मुताबिक काम करेंगे। मैं इस तरह के मामलों के सार्वजनिक बयान देना पसंद नहीं करता हूं। डॉमिनिका की अदालत में चोकसी पर अवैध रूप से डॉमिनिका में घुसने के आरोप में केस चल रहा है। इसके जवाब में चोकसी के वकीलों ने पक्ष रखा है कि उन्हें जबरन डॉमिनिका लाया गया है और इसके लिए चोकसी जिम्मेदार नहीं हैं। चोकसी के वकीलों की मांग है कि चोकसी को एंटीगुआ भेजा जाए, जहां के वो नागरिक हैं और वहां की अदालत में उनके खिलाफ दो मामले चल रहे हैं। (समाप्त)
Thursday, 10 June 2021
मेहुल चोकसी की फिल्मी कहानी...(1)
पंजाब नेशनल बैंक से 13,578 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के अभियुक्त मेहुल चोकसी ने कहा है कि उन्हें एंटीगुआ से अगवा करके डॉमिनिका ले जाया गया। उन्होंने दावा कि उनके अपहरणकर्ताओं ने उनसे कहा था कि डॉमिनिका में उनकी बातचीत एक शीर्ष भारतीय मंत्री से कराई जाएगी। मेहुल चोकसी ने दो जून को अपने वकीलों के जरिये एंटीगुआ पुलिस के पास अपने अपहरण की शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत में उन्होंने बड़े दावे किए हैं। शिकायत में अपने अपहरण की कहानी बताते हुए चोकसी कहते हैंö23 मई को बारबरा जाबरिका ने मुझे अपने घर से पिक करने के लिए कहा था। मैं उसे कुछ महीनों से एक दोस्त के तौर पर जानता था और वो कुछ दिनों तक हमारे घर के सामने रहती थी। 23 मई की शाम करीब 5 बजे मैं बारबरा जाबरिका के घर में दाखिल हुआ, तो कुछ देर बाद वहां 8-10 हट्टे-कट्टे लोग आए, जो खुद को एंटीगुआ पुलिस का बता रहे थे। उन्होंने मुझे बुरी तरह पीटा, मेरी खाल पर करंट लगाया, जिससे मैं जल गया। उन्होंने मेरा फोन, रोलेक्स घड़ी और पर्स ले लिया। फिर वो मेरी आंखों पर पट्टी बांधकर मुझे ले जाने लगे। चोकसी की शिकायत के मुताबिक उन्हें जाबरिका के घर के पीछे एक छोटी नाव में ले जाया गया। फिर वहां से कहीं और ले जाने के बाद उन्हें एक बड़ी नाव में रखा गया और फिर आंखों से पट्टी हटाई गई। चोकसी के मुताबिक दूसरी नाव में शिफ्ट किए जाने पर उन्हें अहसास हुआ कि उन्हें पुलिस के पास नहीं ले जाया जा रहा है। बड़ी नाव में दो भारतीय मूल के और तीन कैरिबियाई मूल के लोग थे। उन्होंने अब तक जो भी किया था, उससे लगा कि दोनों भारतीय अनुभवी मर्सिनरीज (किराये के बदमाश) हैं, जिन्हें मुझे हिंसक और अवैध तरीके से किडनैप करने के लिए ही हायर किया गया था। मर्सिनरी भाड़े के उन लोगों को कहा जाता है जो पैसों के बदले सैनिकों जैसे काम करते हैं। माना जाता है कि आमतौर पर यह लोग अकेले ही काम करते हैं। साल 2020 में नेट फिल्क्स पर आई फिल्म एक्सड्रैक्शन ऐसे ही कुछ मर्सिनरीज पर आधारित थी। चोकसी की पांच पन्नों की शिकायत में लिखा हैöनाव पर मौजूद एक भारतीय ने मुझे बताया कि वो पिछले एक साल से मुझ पर निगाह रख रहे थे, वो जानते थे कि मैं कहां वॉक करने जाता हूं और मेरा फेबरेट रेस्तरां कौन-सा है। दूसरे भारतीय ने मुझसे पैसों और बैंक खातों के बारे में पूछा। मेरे कुछ पूछने पर मुझे गोलमोल जवाब दिए गए। उनमें से एक भारतीय ने मुझसे कहा कि मुझे एक बड़े भारतीय नेता को इंटरव्यू देने के लिए इस खास लोकेशन पर लाया गया है। डॉमिनिका में मेरी नागरिकता फिक्स करके मुझे जल्द ही भारत प्रत्यर्पित कर दिया जाएगा। भारत सरकार की ओर से इस मामले में अभी तक कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया गया है। चोकसी के प्रत्यर्पण के लिए अलग-अलग भारतीय एजेंसियों के अधिकारियों की जो टीम डॉमिनिका गई थी, वह करीब सात दिन कैरिबियाई देश में रहने के बाद जून के पहले हफ्ते में भारत लौट आई है। चोकसी 24 मई से डॉमिनिका में ज्यूडिशल कस्टडी में हैं और उन पर अवैध रूप से डॉमिनिका में घुसने का ट्रायल चल रहा है। डॉमिनिका पुलिस ने कोर्ट में दावा किया कि उन्होंने चोकसी को 23 मई की रात साढ़े 11 बजे तट के पास संदेहास्पद अवस्था में गिरफ्तार किया था। हालांकि पुलिस ने उन पर अवैध रूप से डॉमिनिका में घुसने का आरोप 26 मई को तय किया था। किडनैपिंग के बाद खुद को छोड़े जाने को लेकर चोकसी ने शिकायत में लिखा हैöजब उन लोगों को अहसास हुआ कि उनका प्लान खराब हो गया है, तो इनमें बेचैनी फैल गई। उनके पास बार-बार रेडियो कॉल आ रहे थे कि मेरा ऑपरेशन अभी तक पूरा क्यों नहीं हुआ? उन्होंने पहले तो 1500 डॉलर मुझे वापस कर दिए थे, लेकिन बाद में उन्होंने यह पैसा फिर से लेकर नाव वाले को दे दिए। (क्रमश)
कोवैक्सीन बनाम कोविशील्ड ः किसमें अधिक प्रतिरक्षा?
कोवैक्सीन की तुलना में कोविशील्ड टीके से ज्यादा प्रतिरक्षा बनती है। हालांकि दोनों टीके मानव प्रतिरक्षा को मजबूत करने में बेहतर हैं। दोनों टीकों की खुराक ले चुके स्वास्थ्यकर्मियों पर किए गए अध्ययन से यह बात सामने आई है पर अध्ययन अभी प्रकाशित नहीं हुआ है और इसे छपने से पहले जारी किया गया है। इस अध्ययन में 13 राज्यों के 22 शहरों में 515 स्वास्थ्यकर्मियों को शामिल किया गया। इनमें से 305 पुरुष और 210 महिलाएं थीं। अध्ययन में शामिल होने वालों के खून के नमूनों में प्रतिरक्षा और इसके स्तर की जांच की गई। अध्ययन के अग्रणी लेखक और डीजी अस्पताल एवं मधुमेह संस्थान, कोलकाता में कंसलटेंट इंड्रोक्राइलॉजिस्ट (मधुमेह रोग विशेषज्ञ) अवधेश कुमार सिंह ने ट्वीट किया कि दोनों खुराक लिए जाने के बाद दोनों टीकों ने प्रतिरक्षा को मजबूत करने का काम किया। हालांकि कोवैक्सीन की तुलना में सीरो संक्रमण दर और प्रतिरक्षा स्तर कोविशील्ड में ज्यादा रहा। कोवैक्सीन की खुराक लेने वालों की तुलना में कोविशील्ड लेने वाले ज्यादातर लोगों में सीरो सकारात्मकता दर अधिक थी। अध्ययन के लेखक ने कहा कि 515 स्वास्थ्यकर्मियों में दोनों टीकों की खुराक लेने के बाद 95 प्रतिशत में सीरो सकारात्मक दिखी। इनमें से 425 लोगों ने कोविशील्ड और 90 लोगों ने कोवैक्सीन की खुराक ली थी और सीरो सकारात्मकता दर क्रमश 98.1 प्रतिशत और 80 प्रतिशत रही। सीरो सकारात्मकता का सन्दर्भ किसी व्यक्ति के शरीर में बनने वाली प्रतिरक्षा से है। अहमदाबाद के बिजमंडल मधुमेह केंद्र, कोलकाता के जीडी अस्पताल व मधुमेह संस्थान, धनबाद के मधुमेह एवं हृदय शोध केंद्र और जयपुर में राजस्थान अस्पताल और महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान महाविद्यालय और अस्पताल के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के कोविशील्ड टीके का निर्माण कर रही है। वहीं हैदराबाद स्थित कंपनी भारत बॉयोटेक, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) के साथ तालमेल से कोवैक्सीन का निर्माण कर रहे हैं। अध्ययनकर्ताओं ने कोरोना विषाणु से संक्रमित हो चुके और जो लोग संक्रमित नहीं भी हुए उनमें दोनों खुराक लेने के बाद के नतीजों की तुलना की। ऐसा पाया गया कि जो प्रतिभागी दोनों टीकों की पहली खुराक के कम से कम छह सप्ताह पहले कोविड-19 से उबर गए थे और बाद में दोनों खुराक ले ली थीं, उनमें सीरो सकारात्मकता दर 100 प्रतिशत रही और दूसरों की तुलना में उनमें एंटीबॉडी का ज्यादा स्तर था।
चीनी टीका लगवाने वाले पाक नागरिकों पर बैन
अपने सबसे गहरे दोस्त चीन की वैक्सीन पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बन गई है। सऊदी अरब समेत कई खाड़ी देशों ने चीनी टीके को मान्यता नहीं दी है। दूसरी तरफ इसे लगवाने वाले पाकिस्तानियों के आने पर रोक लगा दी गई है। ऐसे में अनेक खाड़ी देशों में पढ़ने, काम या हज के लिए जाने की उम्मीदों को झटका लगा है। इससे लोगों में जमकर गुस्सा बढ़ रहा है और वह प्रधानमंत्री इमरान खान सरकार से सवाल पूछने लगे हैं। ऐसे में खुद प्रधानमंत्री इमरान खान को मार्केटिंग के लिए उतरना पड़ा है। इसमें उनका साथ दे रहे हैं गृहमंत्री शेख रशीद अहमद। इमरान खाड़ी देशों में इस मुद्दे पर बातचीत कर रहे हैं और उन्हें चीनी टीके के फायदे गिनाने में जुट गए हैं। दरअसल चीन की दो वैक्सीन को डब्ल्यूएचओ से तो मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन सऊदी अरब, यूएई समेत कई देश इन्हें स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इस वजह से पाकिस्तानी नागरिकों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। ऐसे में पीएम इमरान खान को उन्हें मनाने के लिए आना पड़ा है। चीनी वैक्सीन को लेकर नाराज पाकिस्तानी जनता अब इमरान खान सरकार से सवाल पूछ रही है। उनका कहना है कि जब चीनी वैक्सीन को दुनिया के दूसरे देश मंजूरी नहीं दे रहे तो इमरान सरकार ने यह वैक्सीन क्यों खरीदी? पाकिस्तान ने कुछ डोज रूस के स्पूतनिक के खरीदे हैं। अमेरिका या ब्रिटेन की वैक्सीन उनके पास नहीं है। ऐसे में नाराजगी बढ़ रही है। सऊदी अरब ने चीन की वैक्सीन लगवाने वाले पाकिस्तानियों की एंट्री पर सख्त रोक लगा रखी है। वह चीनी वैक्सीन वाला सर्टिफिकेट स्वीकार नहीं कर रहे। बहरीन में 60 प्रतिशत लोगों को चीनी वैक्सीन सिनोफार्म लगाई जा चुकी है। लेकिन जब संक्रमण नहीं रुका तो फाइजर की वैक्सीन लगाई जा रही है। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में उन लोगों को फिर से फाइजर की वैक्सीन लग रही है, जिन्होंने चीनी टीका लगवाया था।
-अनिल नरेन्द्र
26 हजार बच्चों ने माता-पिता में से एक को खोया
कोरोना महामारी के कहर से पूरा देश परेशान है, लेकिन इसका सबसे बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है। एक अप्रैल 2020 से लेकर 5 जून, 2021 के बीच 3621 बच्चे कोरोना के चलते अनाथ हो गए। इतना ही नहीं देशभर में 26,176 बच्चों ने माता-पिता में से किसी एक को खोया है। इससे बच्चों पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा है। यह जानकारी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को दी। वहीं, केन्द्र सरकर ने कहा कि वह पीएम केयर्स फंड के तहत अनाथ हुए बच्चों के लिए राहत योजना की रूप रेखा तैयार कर रही है। आयोग ने कोर्ट को बताया, राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से जानकारी एकत्र करने के बाद बाल स्वराज पोर्टल पर संकट में आए 30,071 बच्चों को पंजीकृत किया गया है। ये वे बच्चे हैं जिन्होंने या तो अपने माता-पिता दोनों या माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है। इस संदर्भ में महाराष्ट्र में सबसे अधिक 7,084 मामले सामने आए हैं जबकि 3172 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर है। राजस्थान में 2082 मामले सामने आए है। आयोग की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि कोरोना से अनाथ हुए बच्चों को लेकर पश्चिम बंगाल और दिल्ली की सरकारों का रवैया असंवेदनशील है क्योंकि इन दोनों राज्यों ने अनाथ बच्चों के संदर्भ में अभी पूरी जानकारी मुहैया नहीं कराई हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर सभी राज्यों को बच्चों के उपचार की पूरी व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। उम्मीद की जाती है कि बहुत जल्द इन अनाथ बच्चों की परवरिश का पुख्ता प्रबंध किया जाएगा। इनको सबसे ज्यादा मदद की आवश्यकता है।
पेट्रोल 100 के पार
राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद लेह, आंध्र प्रदेश के लगभग सभी जिलों तथा तेलंगाना के कुछ हिस्सों में पेट्रोल के दाम 100 रुपए प्रति लीटर के पार पहुंच गए हैं। वाहन ईंधन कीमतों में शुक्रवार को फिर बढ़ोत्तरी हुई। सार्वजनिक क्षेत्र के पेट्रोलियम कपंनियों की मुख्य अधिसूचना के अनुसार पेट्रोल के दाम 27 पैसे प्रति लीटर और डीजल के 28 पैसे प्रति लीटर बढ़ाए गए हैं। पिछले एक महीने में वाहन ईंधन कीमतों में 18 बार बढ़ोतरी हुई है। दिल्ली में पेट्रोल 94.76 रुपए प्रति लीटर के अपने सर्वाधिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है। वहीं डीजल 85.66 रुपए प्रति लीटर हो गया है। स्थानीय करों मसलन मूल्य वर्धित कर (वैट) तथा ढुलाई भाड़े की वजह से विभिन्न राज्यों में फिर दाम भिन्न-भिन्न होते हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के सभी जिलों में अब पेट्रोल 100 रुपए प्रति लीटर से अधिक है। इन राज्यों द्वारा ईंधन पर देश में सबसे ऊंचा वैट लगाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ने से पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ने लगे हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पिछले दो साल में पहली बार ब्रेट कच्चे तेल का दाम 71 डालर प्रति बैरल से ऊपर पहुंचा है। मुंबई देश का पहला महानगर है जहां 29 मई को पेट्रोल 100 रुपए प्रति लीटर के ऊपर पहुंचा था। मुंबई में इस समय पेट्रोल 100.98 रुपए और डीजल 92.99 रुपए प्रति लीटर है। कर्नाटक के बेल्लारी में पेट्रोल 99.83 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है। इस साल चार मई के बाद पेट्रोल-डीजल के दाम में 19 बार वृद्धि हुई है। इस दौरान पेट्रोल के दाम 4.36 रुपए और डीजल का दाम 4.93 रुपए प्रति लीटर बढ़ा है।
पाकिस्तान साजिश रचने से बाज नहीं आ रहा
कश्मीर घाटी में भाजपा नेता राकेश पंडित पर हुए आतंकी हमले से हुई मौत ने इसी माह शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा को लेकर चुनौतियां जो पैदा की हैं। उससे लगता है कि पाकिस्तान अपने पालतू आतंकियों के जरिए किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने में लगा है, जिससे कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी को धक्का पहुंचे और घाटी में बाहर से हिंदुओं को यहां आने से रोकना भी शामिल है। पुलिस सूत्रों की मानें तो मौजूदा वक्त में अकेले दक्षिण कश्मीर क्षेत्र में ही करीब 100 आतंकी सक्रिय हैं। जिनमें कुछ विदेशी मूल के हैं। बीते साल 31 दिसंबर को श्रीनगर के भीड़-भाड़ वाले इलाके हरि सिंह स्ट्रीट में आतंकियों द्वारा पंजाब मूल के एक ज्वैलर्स पर हमला कर हत्या कर दी थी। दरअसल इस निश्चल ज्वैलर्स के बुजुर्ग मालिक सतपाल निश्चल शर्मा, जो कई दशकों से यहां ज्वैलरी का काम करते थे ने जम्मू-कश्मीर की नई डोमिसाइल नीति के तहत डोमिसाइल सर्टिफिकेट बनवा लिया था जो आतंकियों के सरगनाओं के बर्दाश्त नहीं हुआ। वहीं इसी साल 17 फरवरी को श्रीनगर के अति सुरक्षित क्षेत्र में बने दशकों पुराने कृष्णा ढाबा के मालिक के बेटे आकाश मेहरा की हत्या कर दी थी। पाकिस्तान की साजिश लगातार कश्मीर में अस्थिरता पैदा करने की है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने कश्मीर में बैठे अपने गुर्गों के जरिए आतंकी हमले की रणनीति में बदलाव की कोशिश की है, जिसके तहत स्थानीय कश्मीरी कम उम्र युवकों को आतंकी बनाकर उनसे गोरिल्ला अटैक की तरह सुरक्षा बलों पर हमला करके उनका असलाह छीन लेने के अलावा आईईडी के जरिए हमले की कोशिशें की जा रही हैं। इन परिस्थितियों में अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा करना बड़ी चुनौती बन गई है।
-अनिल नरेन्द्र
Wednesday, 9 June 2021
अंतर्कलह, गठबंधन, नेतृत्वहीन कांग्रेस की हार के कारण
हाल ही में पांच राज्यों में हुए चुनावों में दिल्ली हार का विश्लेषण करने के लिए गठित कांग्रेस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंप दी है। समिति के अध्यक्ष अशोक चव्हाण थे और इस कमेटी में सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी, विन्सेंट काला और जोशी मीणा जैसे सदस्य शामिल थे। सूत्रों का कहना है कि अपनी रिपोर्ट में कांग्रेस की हार का मुख्य कारण उम्मीदवार चयन में अंदरूनी कलह, गठबंधन और खामियों को बताया है। समिति ने कहा कि असम सहित कोई भी राज्य अंदरूनी लड़ाई से अछूता नहीं है, जबकि केरल अंदरूनी लड़ाई की सूची में शीर्ष पर है, जहां ओमान चांडी और रमेश चेन्नीथला के नेतृत्व में दो गुट आमने-सामने थे। असम में कई लोगों ने एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन के लिए रिवर्स ध्रुवीकरण का मुख्य कारण बताया, जबकि कुछ ने कहा कि एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन फायदेमंद था लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं ने राज्य के प्रभारी जितेंद्र सिंह को राज्य के नेताओं को विश्वास में नहीं लेने के लिए दोषी ठहराया है। चुनाव प्रचार और गठबंधन पर फैसला करते हुए कहा कि ऊपरी असम के मुद्दों की उपेक्षा की गई। कांग्रेस पैनल को केरल में कई नए चेहरों के बारे में बताया गया, जिसके कारण राज्य में पार्टी का खराब प्रदर्शन हुआ, जबकि पश्चिम बंगाल में गठबंधन में बहुत देर हो गई और भाजपा और टीएमसी के बीच ध्रुवीकरण के कारण राज्य में पार्टी की हार हुई। जिस तरह से प्रदेशाध्यक्ष ने बिना परामर्श के काम किया उससे कांग्रेस नेता नाराज थे। सूत्रों ने कहाöकांग्रेस का मीडिया प्रबंधन भी ठीक नहीं था। कांग्रेस पैनल ने पांच राज्यों में आगामी राज्य चुनावों के लिए कुछ सिफारिशें भी की हैं। अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 11 मई को हाल में ही सम्पन्न विधानसभा चुनावों में पार्टी की हार के कारणों का विश्लेषण करने के लिए इस समिति का गठन किया था। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सीडब्ल्यूसी की बैठक में कहा थाöहमें स्पष्ट रूप से यह समझने की जरूरत है कि हम केरल और असम में मौजूदा सरकारों को हटाने में विफल क्यों रहे और हमें पश्चिम बंगाल में एक भी सीट क्यों नहीं मिली? देखना है कि इस समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाता है या नहीं, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं कि 2014 के लोकसभा चुनावों में पराजय के कारण जानने के लिए गठित एके एंटोनी समिति की रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई और यह किसी को पता नहीं कि 2019 के लोकसभा चुनावों में हार की वजह जानने की कोई कोशिश की गई या नहीं? यह अत्यंत दुखद है कि आखिर दो साल बाद भी कांग्रेस नेतृत्व का मसला क्यों नहीं सुलझा पाई है? क्या कारण है कि सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बने हुए अरसा हो गया है और फिर भी पार्टी नए अध्यक्ष का चुनाव कराने की जरूरत नहीं समझ पा रही है? क्या नए अध्यक्ष के चुनाव में भी पार्टी की गुटबाजी आड़े आ रही है। यह एक तथ्य है कि किसी भी पार्टी में गुटबाजी पनपती है तो नेतृत्व की नाकामी के कारण ही। पहले तो यह गुटबाजी राज्य स्तर पर ही थी लेकिन अब तो यह केंद्रीय स्तर पर भी उभर आई है। 23 असंतुष्ट गुट अगर अस्तित्व में हैं तो वह नेतृत्व की कमियों के कारण ही हैं। यह दुखद है कि जब देश को मजबूत विपक्ष की सख्त आवश्यकता है तब कांग्रेस दिन-प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है और विपक्ष की भूमिका निभाने में बुरी तरह फेल हो रही है। अगर नेतृत्व का मुद्दा जल्द नहीं सुलझा तो कांग्रेस और बिखर जाएगी और अगर ऐसा होता है तो स्वयं कांग्रेस नेतृत्व इसके लिए जिम्मेदार होगा।
निजी इस्तेमाल के लिए ऑक्सीजन कंसंट्रेटर पर जीएसटी असंवैधानिक
सुप्रीम कोर्ट ने निजी इस्तेमाल के लिए आयातित ऑक्सीजन कंसंट्रेटर पर आई जीएसटी (एकीकृत वस्तु सेवा कर) से जुड़ा आदेश रद्द किया है। यह आदेश दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया था। हाई कोर्ट ने इस तरह के आयातित ऑक्सीजन कंसंट्रेटर पर जीएसटी लगाने को असंवैधानिक कहा था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने नोटिस जारी किया। इसके तहत हाई कोर्ट में जनहित याचिका लगाने वाले याचिकाकर्ता से जवाब तलब किया। बेंच ने कहाöहम दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा रहे हैं। इससे पहले अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत को बताया कि जीएसटी परिषद की बैठक जल्द होगी। इसमें ऑक्सीजन कंसंट्रेटर सहित कोरोना से संबंधित आवश्यक वस्तुओं पर छूट देने पर विचार होगा। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने इस बाबत एक मई को अधिसूचना जारी की थी कि निजी उपयोग के लिए आयातित ऑक्सीजन कंसंट्रेटर पर 12 प्रतिशत आईजीएसटी लगेगा। फिर चाहे उपहार के रूप में या अन्य किसी तरीके से आए हों। दिल्ली हाई कोर्ट ने इस अधिसूचना को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि निजी उपयोग के लिए उपहार के रूप में आयातित ऑक्सीजन कंसंट्रेटर पर जीएसटी लगाना असंवैधानिक है। यह भारतीय संविधान की अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। केंद्र ने इस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दायर की थी।
इजरायल की नई सरकार में दो-दो अलग पीएम होंगे
बेंजामिन नेतन्याहू की इजरायली राजनीति से विदाई हो गई है। नेफ्टाली बेनेट देश के नए प्रधानमंत्री होंगे। इजरायल में विपक्ष के आठ दल मिलकर सरकार बनाएंगे। इसके साथ ही बेंजामिन नेतन्याहू का 12 साल से प्रधानमंत्रीकाल समाप्त हो गया है। विपक्षी गठबंधन के दलों में सत्ता को लेकर एक समझौता हुआ है। इसके मुताबिक बारी-बारी से दो अलग दलों के नेता पीएम होंगे। पहले दक्षिणपंथी यासिना पार्टी के नेता नेफ्टाली बेनेट (49) पीएम होंगे। उनका कार्यकाल 2023 तक रहेगा। उसके बाद मध्यमार्गी येश एटिड पार्टी के नेता मेट लेपिड (57) पीएम बनेंगे। उनका कार्यकाल 2025 तक रहेगा। लेपिड ने कहाöनई सरकार इजरायली समाज को एकजुट रखने की कोशिश करेगी। इस गठबंधन में अरब इस्लामी पार्टी राय भी शामिल है। इसके नेता मंसूर अब्बास ने कहा कि हमारे बीच कई मतभेद थे लेकिन सहमति पर पहुंचना अहम था। इस बीच पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि वह संघर्ष के बिना सत्ता नहीं छोड़ेंगे। सांसद खतरनाक वामपंथी गठबंधन का विरोध करें। उधर विपक्षी दलों के समर्थकों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया है। राष्ट्रपति सवेन रिवलिन ने संसद का सत्र बुलाने के आदेश दिए हैं। इसमें नई सरकार को बहुमत साबित करना होगा। इजरायली संसद में 120 वोट हैं। बहुमत के लिए 61 वोट चाहिए। अगर गठबंधन बहुमत साबित नहीं कर पाया तो दोबारा चुनाव होंगे। नए गठबंधन में दक्षिणपंथी, वामपंथी और मध्यमार्गी दल शामिल हैं। लेकिन नेतन्याहू की सत्ता का अंत करने के लिए यह एकजुट हुए हैं। इजरायल में दो साल में चार बार चुनाव हो चुके हैं। वहां स्थिर सरकार नहीं बन पाई है। देखें कि नई सरकार अपना बहुमत साबित करके इजरायल को थोड़ी स्थिरता प्रदान कर सकती है या नहीं?
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 8 June 2021
भाजपाइयों को न बेचें सामान
बंगाल में पश्चिम मिदनापुर जिले के केशपुर थाना क्षेत्र में भजापा कार्यकर्ताओं को सामाजिक बहिष्कार के लिए कथित रूप से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की ओर से शुक्रवार को एक फरमान जारी किया गया है। इसमें कहा जा रहा है कि दुकानदारों से कहा गया है कि वह भाजपा कार्यकर्ताओं को कोई सामान नहीं बेचें वरना उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। इस फरमान के बाद कोलकाता से लेकर दिल्ली तक की सियासत गरम है। केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा, राज्यसभा सदस्य स्वप्न दासगुप्ता ने ट्वीट कर इसकी निंदा की है। वहीं तृणमूल के स्थानीय (फाटाल) सांसद दीपक अधिकारी ने कहा है कि उन्होंने इस बारे में क्षेत्र के पार्टी नेताओं तथा कार्यकर्ताओं से बात की है। इस तरह का कोई निर्देश नहीं दिया गया है। दूसरी ओर केशपुर थाने की पुलिस ने मामले में स्वत संज्ञान लेते हुए अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है। जानकारी के मुताबिक पश्चिम मिदनापुर जिले के महिषदा गंव में ही एमसी की स्थानीय इकाई की ओर से इलाके में बाकायदा पंफ्लेट बांटे गए हैं। इसमें भाजपा के 18 कार्यकर्ताओं के नाम लिखे हुए हैं। वहीं बंगाल में चुनाव नतीजों के बाद हुई हिंसा व पार्टी कार्यकर्ताओं पर हो रहे अत्याचार का दर्द साझा करने को अब भजापा के प्रदेश नेतृत्व ने नई रणनीति अपनाई है। इसके तहत प्रदेश के प्रमुख नेता कुछ दिनों से विभिन्न राज्यों के अपने पार्टी नेताओं संग वर्चुअल माध्यम से बैठक कर हिंसा का दर्द साझा कर रहे हैं। वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने इस तानाशाह फरमान की निंदा की है।
-अनिल नरेन्द्र
घर-घर राशन योजना पर टकराव
दिल्ली में घर-घर योजना पर विवाद गहरा गया है। दिल्ली सरकार ने शनिवार को दावा किया कि केंद्र ने राजधानी में 72 लाख राशन कार्डधारकों को लाभान्वित करने वाली महत्वाकांक्षी राशन योजना को रोक दिया और उसने इस कदम को राजनीति से प्रेति बताया। हालांकि केंद्र सरकार ने आरोपों को आधारहीन करार दिया है। केंद्र सरकार ने एक बयान में कहा कि दिल्ली सरकार जिस तरह चाहे राशन वितरण कर सकती है और उसने दिल्ली सरकार को ऐसा करने से नहीं रोका है। बयान के मुताबिक वह किसी अन्य योजना के अंतर्गत भी ऐसा कर सकते हैं। भारत सरकार अधिसूचित दरों के अनुसार इसके लिए राशन उपलब्ध कराएगी। ऐसा कहना बिल्कुल गलत होगा कि केंद्र सरकार किसी को कुछ करने से रोक रही है। हालांकि घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने दावा किया कि उपराज्यपाल ने प्रस्ताव खारिज नहीं किया है जैसा दिल्ली सरकार द्वारा चित्रित किया जा रहा है। उन्होंने कहाöनिजी बिक्रेताओं के माध्यम से लागू की जाने वाली योजना की अधिसूचना से संबंधित फाइल को उपराज्यपाल ने पुनर्विचार के लिए मुख्यमंत्री को लौटा दिया है। मुख्यमंत्री कार्यालय के मुताबिक बीते 24 मई को फाइल मंजूरी के लिए एलजी ने यह कहकर लौटा दी है कि यह योजना शुरू नहीं की जा सकती है। वर्ष 2018 में जब यह योजना शुरू करने का ऐलान किया गया था तब से छह बार केंद्र को पत्र लिखकर जानकारी दी गई थी, तब उन्होंने कोई आपत्ति नहीं जताई। इस योजना के तहत हर लाभार्थीको चार किलो आटा, एक किलो चावल व चीनी घर पर प्राप्त होगी जबकि अभी चार किलो गेहूं, एक किलो चावल और चीनी उचित मूल्य की दुकान से मिलती है। आम आदमी पार्टी (आप) सरकार का दावा है कि एलजी ने फाइल लौटाने के पीछे दो प्रमुख कारण बताए हैं। पहला, इसे केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है और दूसरा, इसी से जुड़ा एक मामला अदालत में चल रहा है। राजभवन ने इसका खंडन]िकया है। राजभवन के सूत्रों ने आप सरकार के आरोपों का खंडन कते हुए कहा कि इस योजना पर नियम सम्मत तरीके से केंद्र की सहमति जरूरी है क्योंकि इससे खाद्य सुरक्षा एक्ट के प्रावधानों में बदलाव किया जा रहा है. यह विवाद बढ़ने वाला है। दोनों केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार अपने-अपने स्टैंड पर डटे हुए हैं। देखें, क्या हल निकलता है?
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