Thursday, 17 June 2021

पासवान की विरासत संभालने में नाकाम रहे चिराग

देश के प्रमुख दलित नेताओं में शुमार रहे रामविलास पासवान की देश की सियासत की नब्ज पर इतनी जबरदस्त पकड़ थी कि fिबहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उन्हें मजाकिया लहजे में एक बार मौसम वैज्ञानिक तक कह डाला था। लेकिन रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी पार्टी पर उनके भाई ने कब्जा जमा लिया और उनकी विरासत संभालने में बेटा चिराग पासवान को इस सियासी बदलाव की भनक तक नहीं लगी। बिहार में पासवान के वोट बैंक पर कब्जे की लड़ाई में चिराग चारों खाने चित हो गए। लोक जनशक्ति पार्टी में टूट की ताजा घटना ने फिर एक बार यह साबित कर दिया है कि राजनीति की दुनिया में बहुत कुछ महत्वाकांक्षाओं से संचालित होता है। लेकिन अकसर उस पर सिद्धांत और सरोकार का पर्दा टांग दिया जाता है। सूत्रों की मानें तो एक प्रमुख सियासी परिवार में पैदा होने के बावजूद चिराग को शुरुआती दिनों में दिल्ली की सत्ता के गलियारों से मुंबई की माया नगरी ज्यादा रास आई। उनकी एक फिल्म भी आई मिले ना मिले हम इस फिल्म में कंगना रनौत उनकी हीरोइन थी। बताते हैं कि वर्ष 2011 में रिलीज हुई इस फिल्म के प्रीमियर में कई जानी-मानी हस्तियां पहुंची थीं। रामविलास पासवान ने बेटे की फिल्म के प्रमोशन का भरसक प्रयास किया लेकिन फिल्म फ्लाप हो गई। लेकिन वर्ष 2014 में चिराग तब सुर्खियों में आ गए जब उन्होंने पासवान को यूपीए छोड़कर राजग में शामिल होने को राजी किया। वर्ष 2002 में हुए गुजरात दंगों के मुद्दे पर मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाले पासवान ने तब राजग के साथ आकर चुनाव लड़ा और बिहार की छह सीटों पर उनकी पार्टी विजयी रही। चिराग भी सांसद चुने गए। लेकिन रामविलास के मरते ही स्थितियां बदल गईं और चिराग ने बिहार विधानसभा के चुनाव में राजग से अलग रहकर चुनाव लड़ने का फैसला किया और नीतीश के खिलाफ ताल ठोंकर मैदान में उतरे। उनकी पार्टी ने 147 विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन जीत एक ही सीट पर मिल पाई। हालांकि ऐसा माना जाता है कि लोजपा की वजह से नीतीश कुमार की जदयू को कम से कम 45 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। चिराग पासवान सहित पार्टी के छह में से पांच सांसदों ने पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में पार्टी को बचाने का नारा लगाकर अलग होने की घोषणा की है। खबरों के मुताबिक लोजपा की इस टूट में जदयू की भी भूमिका रही और समय का चुनाव केन्द्र सरकार में मंत्रिमंडल में भावी विस्तार को ध्यान में रखते हुए किया गया है। अब देखना यह है कि पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में अलग हुआ धड़ा जदयू या भाजपा में विलय का रास्ता चुनता है या फिर स्वतंत्र रहकर राजग में अपने लिए जगह बनाता है, दूसरी ओर चाचा पशुपति पारस के मनाने में नाकाम रहने के बाद एक तरह से चिराग पासवान न केवल राजनीति के मैदान में अकेले रह गए हैं, बल्कि पfिरवार भी दूर चला गया। हालांकि उन्हें बिहार में राजद के एक नेता की ओर से अनौपचारिक प्रस्ताव मिला है कि वे केन्द्र की राजनीति करें और तेजस्वी यादव राज्य की। लेकिन चिराग का रुख अभी सामने नहीं आया है। देखना अब होगा कि टूट के बाद रामविलास पासवान की छवि से जुड़ी लोजपा समर्थक जनता चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस में से किसका पक्ष चुनती है।

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