Thursday, 24 June 2021
मुआवजा नहीं दे सकते
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र से सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने कोविड-19 से मरने वालों के परिवारों को चार-चार लाख रुपए की अनुग्रह राशि देने का फैसला किया था। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि लाभार्थियों के मन में किसी भी तरह के मलाल को दूर करने के लिए एक समान मुआवजा योजना तैयार करने पर विचार किया जा सकता है। कोरोना के संक्रमण से मरने वालों के आश्रितों को चार-चार लाख रुपए का मुआवजा मिल पाना अब संभव नहीं होगा। केंद्र का कहना है कि कोरोना के कारण की जा रही व्यवस्थाओं तथा कर राजस्व में कमी के कारण केंद्र और राज्य सरकारें गंभीर वित्तीय तनाव से गुजर रही हैं और कोरोना संक्रमण से मरने वाले सभी लोगों के आश्रितों को मुआवजा देना राजकोषीय सामर्थ्य से बाहर की बात है। हालांकि केंद्र ने न्यायालय से यह भी कहाöऐसा नहीं है कि सरकार के पास धन नहीं है। केंद्र ने कहाöहम स्वास्थ्य सेवा ढांचा बनाने, सभी को भोजन सुनिश्चित करने, पूरी आबादी का टीकाकरण करने और अर्थव्यवस्था को वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज उपलब्ध कराने के लिए रखे गए कोष की बजाय अन्य चीजों के कोष का उपयोग कर रहे हैं। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एमआर शाह की अवकाश पीठ ने सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता से कहाöआप (केंद्र) सही स्पष्टीकरण दे रहे हैं, क्योंकि केंद्र सरकार के पास पैसे नहीं हैं का तर्प देने से व्यापक दुष्परिणाम होंगे। केंद्र ने माना है कि कोरोना से अब तक 3.85 लाख लोगों की जान जा चुकी है, इसलिए इनके लिए 22,184 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया गया तो राज्य आपदा रिस्पांस फंड कम पड़ जाएगा और अन्य आपदाओं से निपटने के लिए धन ही नहीं बचेगा। मरने वालों की संख्या अभी और बढ़ने की आशंका है। यह तो मानना ही पड़ेगा कि सरकार के पास स्रोत सीमित हैं, इन पर अतिरिक्त बोझ अन्य वैलफेयर व हेल्थ स्कीमों के फंड को कम कर देगा। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे में कहा है कि यह उल्लेख करना कि अनुग्रह राशि से ही किसी पीड़ित की मदद की जा सकती है, पुराना और संकीर्ण दृष्टिकोण होगा। केंद्र ने कहा कि कोरोना महामारी, भूकंप या बाढ़ की तरह एक बार की आपदा नहीं है, जिसके लिए पीड़ितों को सिर्प पैसे से मुआवजा दिया जा सकता है। केंद्र ने कहा कि आपदा कानून के तहत अनिवार्य मुआवजा सिर्प प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, बाढ़ आदि पर ही लागू होता है। लंबी अवधि की किसी आपदा जो महीनों, वर्षों तक चले, में अनुग्रह राशि देने का कोई पूर्व उदाहरण नहीं है। वास्तव में भारत जैसे कल्याणकारी देश में सरकारों की असली परीक्षा आपदाओं और जरूरतों के समय ही होती है। इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यह महामारी बाढ़ या भूकंप जैसी आपदा नहीं है और डेढ़ साल बीतने के बावजूद अभी खत्म नहीं हुई है। बेशक पूरे देश में दूसरी लहर का प्रभाव अब कम हो गया है। नतीजतन संक्रमण के नए मामले 50 हजार से कम हो गए हैं मगर दूसरी ओर अब तक 3.85 लाख लोगों ने अपनी जान गंवा दी है। प्रभावित परिवारों में बहुत से ऐसे होंगे, जिनके लिए आजीविका का संकट पैदा हो गया होगा। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को कम से कम ऐसे परिवारों की पहचान करके उनके लिए कोई मानवीय पहल जरूर करनी चाहिए।
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