Tuesday, 15 June 2021

मुकुल रॉय की चार साल बाद घर वापसी

मुकुल रॉय की घर वापसी पश्चिम बंगाल में जहां तृणमूल कांग्रेस के लिए उत्साहवर्द्धक है वहीं यह भाजपा के लिए झटका है। करीब चार साल पहले भाजपा में गए मुकुल रॉय की पुत्र समेत तृणमूल कांग्रेस में वापसी प्रत्याशित तो थी ही, उनके लौटने के बाद अब तृणमूल में ऐसे अनेक अवसरवादी नेताओं की वापसी की संभावना बढ़ गई है, जो पांच साल तक विपक्ष में रहने का जोखिम नहीं उठाना चाहते। बंगाल भाजपा में ऐसे कई नेता हैं, जिन्होंने चुनाव से पहले तृणमूल का साथ छोड़ा था। मुकुल रॉय ने भाजपा क्यों छोड़ी? इसका विश्लेषण करना ज्यादा मुश्किल नहीं है। केंद्र में मंत्री बनाने में देरी व भाजपा में शुभेंदु अधिकारी के बढ़ते कद के कारण पश्चिम बंगाल के कद्दावर नेता फिर तृणमूल में चले गए। ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी से मुकुल रॉय की मुलाकात की खबर मिलने पर पीएम नरेंद्र मोदी ने मुकुल रॉय से उनकी अस्वस्थ पत्नी की तबीयत के बारे में बात की थी। लेकिन भाजपा उन्हें रोकने में नाकाम रही। दरअसल शुभेंदु अधिकारी के भाजपा में शामिल होने और ममता बनर्जी के खिलाफ उम्मीदवार बनने से ही मुकुल रॉय का पार्टी में महत्व कम होने लगा था। चुनाव में उनके कुछ समर्थकों को टिकट तो मिला पर ज्यादातर प्रतिनिधित्व शुभेंदु अधिकारी के उम्मीदवारों को मिला। उधर टीएमसी का दावा है कि मुकुल रॉय के साथ 30 भाजपा विधायक शामिल होंगे। रही-सही कसर शुभेंदु अधिकारी को नेता विपक्ष से निकल गई। देखा जाए तो यह अधिकार मुकुल रॉय का था, क्योंकि पिछले चार साल से वह भाजपा के लिए अच्छा काम कर रहे थे। तमाम तृणमूल कांग्रेस नेताओं का भाजपा में शामिल होने के पीछे मुकुल रॉय का ही हाथ था। लगता है कि शुभेंदु को इतना महत्व मिलने से मुकुल रॉय उखड़ गए और उन्होंने घर वापसी की। मुकुल रॉय की घर वापसी पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए एक और बड़ा झटका है। करीब चार साल पहले भाजपा में आए रॉय ने लोकसभा चुनावों में पार्टी की चुनावी रणनीति को बंगाल में जमीन पर उतारने में अहम भूमिका निभाई थी, जिसके बाद पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। पर विधानसभा चुनावों के बाद बदली राजनीतिक परिस्थितियों में रॉय खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। मौके का फायदा उठाकर ममता उन्हें वापस लाने में कामयाब रहीं। मुकुल रॉय ममता के करीबी रहे हैं। माना जाता है कि चुनावों से पूर्व तक तृणमूल में बड़े पैमाने पर हुई तोड़फोड़ में भी रॉय की भूमिका रही है। लेकिन चुनाव नतीजों के बाद खास तवज्जो नहीं मिलने से रॉय आहत थे। उधर भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से शुभेंदु को आगे बढ़ाने से रॉय ज्यादा खफा हो गए थे। माना जाता है कि रॉय की वापसी से तृणमूल के कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा। हालांकि वह चुनाव में शानदार जीत से पहले भी बढ़ा है। दूसरे तृणमूल छोड़कर कई नेताओं की घर वापसी के आसार बढ़ रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा को हालांकि रॉय के जाने से तुरन्त कोई ज्यादा नुकसान नहीं है। पर माना जा रहा है कि इससे लोकसभा चुनावों की तैयारियों पर असर पड़ सकता है। अब भाजपा को बाहर से आए लोगों को अहम पदों पर बिठाने के फैसले पर नए सिरे से विचार करना पड़ सकता है। क्योंकि ऐसे समय में जब दूसरे दलों से भविष्य की तलाश में नेता भाजपा में शामिल हो रहे हों। ऐसे में एक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पार्टी छोड़कर जाना जनता में गलत संदेश जाता है। नारद स्टिंग मामले में मुकुल रॉय अब सीबीआई जांच से बाहर हो चुके हैं, जबकि शुभेंदु अधिकारी कैमरे पर पैसे लेते हुए पकड़े गए थे और उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति का सीबीआई का आवेदन लोकसभा अध्यक्ष के पास लंबित है।

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