Tuesday 22 June 2021

बंटवारे से बुलंदियों तक...आसान नहीं था मिल्खा सिंह बनना

पाकिस्तान के गोविंदपुरा में जन्मे मिल्खा सिंह का जीवन संघर्षों से भरा रहा। बचपन में ही भारत-पाकिस्तान बंटवारे का दर्द और अपनों को खोने का गम उन्हें उम्रभर सताता रहा। बंटवारे के दौरान ट्रेन की महिला बोगी में सीट के नीचे छिपकर दिल्ली पहुंचे, शरणार्थी शिविर में रहे और ढाबों पर बर्तन साफ कर उन्होंने जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश की। फिर सेना में भर्ती होकर एक धावक के रूप में पहचान बनाई। अपनी 80 अंतर्राष्ट्रीय दौड़ों में उन्होंने 73 जीतीं, लेकिन रोम ओलंपिक का मेडल हाथ से जाने का गम उन्हें जीवनभर रहा। उनकी आखिरी इच्छा थी कि वह अपने जीते जी किसी भारतीय खिलाड़ी के हाथों में ओलंपिक मेडल देखें। लेकिन अफसोस उनकी अंतिम इच्छा उनके जीते जी पूरी न हो सकी। हालांकि मिल्खा सिंह की हर उपलब्धि इतिहास में दर्ज रहेगी। वैसे तो मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में सब कुछ हासिल किया, लेकिन उनका एक सपना अधूरा और वह इस अधूरे सपने के साथ जिंदगी को अलविदा कह गए। उड़न सिख पद्मश्री मिल्खा सिंह अकसर कहा करते थे कि रोम ओलंपिक में जाने से पहले उन्होंने दुनियाभर में कम से कम 80 दौड़ों में हिस्सा लिया था और उन्होंने इनमें से 77 दौड़ें जीती थीं, जो एक रिकॉर्ड बन गया था। वह बताते हैं कि सारी दुनिया यह उम्मीदें लगा रही थी कि रोम ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ मिल्खा ही जीतेंगे। मैं अपनी गलती की वजह से पदक नहीं जीत सका। मैं इतने वर्षों से इंतजार कर रहा हूं कि कोई दूसरा भारतीय वह कारनामा कर दिखाए, जिसे करते-करते मैं चूक गया था, लेकिन कोई भारतीय एथलीट ओलंपिक में पदक नहीं जीत पाया। इसलिए मैं आज भी उस दिन का इंतजार कर रहा था जब कोई भारतीय एथलीट ओलंपिक पदक जीते। 1960 में उस रेस को पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान भी देख रहे थे। उन्होंने मिल्खा सिंह के गले में मेडल डालते हुए पंजाबी में कहाöमिल्खा सिंह जी, तुस्सीं पाकिस्तान दे विच आके दौड़े नहीं, तुस्सीं पाकिस्तान दे विच उड़े हो, अज्ज पाकिस्तान तुहानूं फ्लाइंग सिख दा खिताब देंदा ए। इसके बाद से वह उड़न सिख के नाम से मशहूर हो गए। पाकिस्तान में उनका मुकाबला एशिया का तूफान नाम के मशहूर पाकिस्तानी धावक अब्दुल खालिक से था। बताया जाता है कि रेस शुरू होने से पहले कुछ मौलवी आए और खालिक से कहा कि खुदा आपको ताकत दे, जब वह जाने लगे तो मिल्खा सिंह ने कहाöरुकिए। हम भी खुदा के बंदे हैं। तब मौलवी ने उन्हें भी कहा कि खुदा आपको ताकत दे। रेस में जो हुआ वह इतिहास बन गया। मिल्खा सिंह ऐसे दौड़े कि उन्हें फ्लाइंग सिख का खिताब हमेशा के लिए मिल गया। मिल्खा सिंह की जीवनी पर राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने फिल्म बनाईöभाग मिल्खा भाग। फिल्म बनाने की अनुमति के बदले निर्माता राकेश ओम प्रकाश मेहरा से मिल्खा सिंह ने मात्र एक रुपया लिया। इस एक रुपए की खास बात यह थी कि एक रुपए का यह नोट साल 1958 का था, जब मिल्खा ने राष्ट्रमंडल खेलों में पहली बार स्वतंत्र भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता था। एक रुपए का यह नोट पाकर मिल्खा भावुक हो गए थे। यह नोट उनके लिए एक कीमती याद की तरह था। इस फिल्म में अभिनेता फरहान अख्तर ने मिल्खा की भूमिका निभाई थी। इसमें दिखाया गया था कि मिल्खा ने अपने जीवन में कितना संघर्ष किया। यह फिल्म देश के युवाओं को मेडल जीतने की प्रेरणा देती है।

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