Wednesday, 30 June 2021
24 हाई कोर्टों में 40 प्रतिशत कम जज काम कर रहे हैं
देश के 24 उच्च न्यायालयों में दो साल से लगातार जजों की लगभग 40 प्रतिशत रिक्तियां बनी चली आ रही हैं। एक जून 2021 तक यह रिक्तियां 430 थीं, जबकि उच्च न्यायालयों में पांच लाख से ज्यादा केस लंबित हैं। न्याय विभाग के अनुसार उच्च न्यायालयों में जजों की अधिकृत संख्या 1081 है लेकिन यह संख्या 430 रिक्तियों के कारण 650 ही है, जितने जजों की नियुक्तियां की जाती हैं उसी अनुपात में जज रिटायर भी हो जाते हैं। इससे खाली पदों की संख्या ज्यों की त्यों बनी रहती है। गत वर्ष एक जून 2020 को उच्च न्यायालयों में जजों की रिक्तियां 388 थीं वहीं 2019 में रिक्तियों की संख्या 399 थीं। एक जनवरी 2019 को उच्च न्यायालयों में जजों के 392 पद खाली थे। उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति का मामला पूरी तरह से उच्चतम न्यायालय के हाथ में है, लेकिन इससे पहले यह काम उच्च न्यायालयों के पास रहता है। न्यायालयों में नियुक्तियों का कोटा 70 प्रतिशत वकीलों से तथा 30 प्रतिशत निचली अदालतों के जिला जजों को प्रमोशन देकर भरा जाता है। लेकिन यह दोनों कोटे भी पूरी तरह से प्रयुक्त नहीं हो पाते जिसके कारण रिक्तियां बनी रहती हैं। इसके पीछे अनेक कारण हैं। एक प्रमुख कारण यह है कि सफल वकील जज बनने से मना कर देते हैं। पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया था कि रिक्त पद होने से छह माह पूर्व ही नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करें जिससे जज के रिटायर होने तक उनकी जगह दूसरा जज आ जाए। लेकिन इस निर्देश का भी उच्च न्यायालयों की ओर से पालन नहीं किया जाता। इलाहाबाद उच्च न्यायालय देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है और यहां जजों की संख्या 160 है। लेकिन इसमें 31 रिक्तियां अब भी बनी हुई हैं। पिछले दिनों हुए एक अध्ययन में यह सिफारिश की गई थी कि उच्च न्यायालय में 80 प्रतिशत पद निचली अदालतों से जिला जजों को प्रमोट करके भरें और 20 प्रतिशत वकीलों से भरें। इन रिक्तियों को अविलंब भरना होगा अगर न्याय सही ढंग से देना है। जब जज ही नहीं होंगे तो केसों की संख्या तो बढ़ती ही जाएगी। माननीय उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों को इस पर तुरन्त ध्यान देना होगा ताकि न्याय मिल सके।
-अनिल नरेन्द्र
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