Friday, 18 June 2021

विरोध करना आतंकी साजिश नहीं है

दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली दंगा मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि असहमति को दबाने की चिंता में सरकार की नजर में विरोध करने के संवैधानिक अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच का फर्प धुंधला होता जा रहा है। अगर यह मानसिकता ऐसे ही बढ़ती रही, तो यह लोकतंत्र के लिए काला दिन होगा और खतरनाक होगा। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल व जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार जेएनयू की छात्राएं नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हां को जमानत दे दी। खंडपीठ ने 113 पन्नों, 83 व 72 पन्नों के अपने तीन फैसलों में कहाöदिल्ली दंगों की साजिश के मामले में आरोपियों पर यूएपीए के तहत अपराधों में कोई प्रथम दृष्ट्या मामला नहीं पाया गया है। जमानत के खिलाफ यूएपीए की सख्त धारा 43डी(5) इन आरोपियों पर लागू नहीं होती है और इसलिए वह जमानत पाने के हकदार हैं। पीठ ने कहाöपुलिस के आरोप पत्र में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे लगाए गए आरोपों के मद्देनजर यूएपीए की धारा 15 की रोशनी में संभावित आतंकी, धारा 17 के तहत आतंकी कृत्य के लिए फंड जुटाने एवं धारा 18 के तहत आतंकी कृत्य या आतंकी कृत्य करने की तैयारी के रूप में देखा जा सके। पीठ ने आरोपी विद्यार्थियों की अपील पर निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें उन्हें जमानत देने से इंकार कर दिया गया था। पीठ ने जमानत पर 18 मार्च को आदेश सुरक्षित रखा था। कोर्ट ने कहा कि इस पर कोई विवाद नहीं कि इन्होंने सीएए के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन में भाग लिया। हालांकि हमारा मानना है कि विरोध का अधिकार मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि छात्राओं के खिलाफ आरोप उभर कर सामने नहीं आ रहे हैं। ऐसे में इन्हें न्यायिक हिरासत में रखने का आधार नहीं है। दिल्ली पुलिस ने कहा कि हम फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की राजद्रोह को लेकर की गई टिप्पणी का भी जिक्र किया। अदालत ने कहा कि सरकार और संसदीय गतिविधियों के खिलाफ विरोध वैध है। ऐसे विरोधों के शांतिपूर्ण होने की उम्मीद की जाती है, पर इनका कानून के तय दायरे से बाहर जाना असाधारण नहीं है। एक बार को हम मान भी लें कि छात्राओं ने संविधान के तहत मिले अधिकारों की सीमा लांघी है, तब भी वह आतंकी गतिविधियों की साजिश रचने के बराबर नहीं है। देवांगना और नताशा पर आरोप है कि उन्होंने दूसरे साजिशकर्ताओं के साथ मिलकर लोगों को भड़काया, जिसके चलते हिंसा भड़की। दिल्ली दंगों में कलिता पर चार, नरवाल पर तीन और तन्हां पर दो मामले हैं। अब इनके जेल से छूटने का रास्ता साफ हो गया है, क्योंकि इन्हें अन्य मामलों में पहले से ही जमानत मिल चुकी है।

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