Thursday, 3 June 2021

चरम पर टकराव ः मुख्य सचिव को दिल्ली नहीं भेजेंगी

केन्द्र सरकार से टकराव के बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को बड़ा दांव चला। उन्होंने कहा, मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय सेवानिवृत्त हो गए हैं। अब वे उनके मुख्य सलाहाकार के तौर पर काम करेंगे। वहीं बंदोपाध्याय से मंगलवार को गृह मंत्रालय की ओर से कारण बताओ नोटिस देने के साथ स्पष्टीकरण मांगा गया है। केन्द्र कार्रवाई के अन्य विकल्प भी खंगाल रही है। ममता बनर्जी ने केन्द्र द्वारा तल्ख किए गए राज्य के मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय को वहां भेजने से तो इंकार किया ही, उनकी सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद उन्हें अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त कर केन्द्र को और नाराज कर दिया है। ममता ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, वह मुख्य सचिव को अवकाश ग्रहण करने की अनुमति के बाद उन्हें तीन साल के लिए अपना सलाहकार नियुक्त कर रही हैं, गृह सचिव एम के द्विवेदी अब नए मुख्य सचिव होंगे। इससे पहले बंदोपाध्याय को दिल्ली बुलाने के केन्द्र के आदेश के मद्देनजर ममता ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर आदेश वापस लेने का अनुरोध किया। केन्द्र ने 28 मई की रात को बंदोपाध्याय की सेवाएं मांगी थी और उन्हें सोमवार सुबह दिल्ली में कार्यभार संभालने को कहा था। केन्द्र सरकार ने पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। फिलहाल मामला थमता नजर नहीं आ रहा है। केन्द्र ने कारण बताओ नोटिस भेजते हुए बंदोपाध्याय से न आने की वजह पूछी है। केन्द्र अपने आदेश का अनुपालन न होने की वजह से बंदोपाध्याय पर कार्रवाई के अन्य विकल्प खंगाल रहा है। यास तूफान पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बैठक में शामिल होने वाले पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय को दिल्ली तलब किया गया था। लेकिन वे नहीं आए क्योंकि ममता सरकार ने उन्हें रिलीव नहीं किया। वे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ बैठकों में शामिल हुए। ताजा घटनाक्रम के बाद नियमावली के तहत अन्य संभावनाओं को भी खंगाला जा रहा है। लेकिन आखिरी फैसला राजनीतिक स्तर पर ही होना है। बंगाल के मुख्य सचिव के राज्य सरकार के रहने पर केन्द्र सरकार को सहमति के आधार पर उन्हें तीन महीने का सेवा विस्तार (एक्सटेंशन) दिया गया था। तर्क दिया जा रहा है कि उन्होंने एक्सटेंशन नहीं मांगा था, बल्कि राज्य सरकार का प्रस्ताव था। उन्होंने रिटायरमेंट का फैसला लिया। अब जब उनका इस्तीफा हो गया है तो यह समझा जा सकता है कि यह कदम उन्हें संभावित कार्रवाईयों से बचाने के लिए उठाया गया। यह पहला मौका नहीं है, जब ममता सरकार का केन्द्र के साथ अधिकारियों के तबादले या पद स्थापना को लेकर टकराव हुआ है। इससे पहले पिछले साल दिसंबर में भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के काफिले पर हुए हमले के बाद केन्द्राrय गृह मंत्रालय ने पं. बंगाल के तीन आईपीएस अधिकारियों को तलब किया था। लेकिन ममता सरकार ने उन्हें मुक्त नहीं किया। केन्द्र और राज्य के बीच मत विरोध हो सकता है पर इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रशासनिक अधिकारियों को राजनीतिक मोहरों की तरह इस्तेमाल किया जाए। क्या कहता है नियम ः जानकारों के मुताबिक यदि कोई अफसर राज्य में तैनात है। उस पर केन्द्राrय प्रतिनियुक्ति पर कार्रवाई करने के लिए राज्य की अनुमति लेनी होती है। राज्य आदेश को मानने से इंकार कर सकता है। किसी अफसर को दिल्ली तलब करने पर भी राज्य की मंजूरी जरूरी है।

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