Friday 25 June 2021

धर्मांतरण कराने वालों के जुड़े आईएसआई से तार

उत्तर प्रदेश के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने लखनऊ में दो मौलानाओं को गिरफ्तार कर धर्मांतरण के घिनौने खेल का पर्दाफाश किया है। दिल्ली के जामिया नगर से संचालित यह गिरोह पैसा, शादी और नौकरी का लालच देकर बड़ी संख्या में हिन्दुओं का धर्मांतरण करा चुका है। एटीएस के पास धर्मांतरण करा चुके एक हजार से अधिक लोगों की सूची है। इनमें ज्यादातर मूक-बधिर व महिलाएं हैं। गिरोह की फंडिंग विदेशों से होती थी और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का लिंक सामने आ रहा है। इसकी पड़ताल की जा रही है। गिरफ्तार आरोपियों का नाम मुफ्ती जहांगीर आलम और उमर गौतम हैं। इनमें से उमर खुद धर्म बदलकर मुस्लिम बना था। एडीजे कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार ने बताया कि तीन जून को गाजियाबाद के डासना के मंदिर से दो संदिग्ध युवक विपुल विजयवर्गीय व काशिफ की गिरफ्तारी के बाद गिरोह का पता चला। उनकी निशानदेही पर जहांगीर और उमर गौतम को पूछताछ के लिए लखनऊ मुख्यालय बुलाया गया था। सोमवार को लंबी पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने बताया कि गिरोह में कई और लोग शामिल होने की जांच जारी है। धर्मांतरण के बाद कई लड़कियों की शादी भी कराई जा चुकी है। यूपी के अलावा दिल्ली, हरियाणा, केरल, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र में भी इनका जाल फैला है। शुरुआती जांच में पता चला है कि यह गिरोह एक साल में 250 से 300 लोगों को मुस्लिम बना चुका है। धर्मांतरण का अलग से सम्मेलन भी होता था, ताकि इनके जरिये अन्य लोगों को मुसलमान बनाया जा सके। इनके पास से एटीएस को एक हजार महिलाओं, बच्चों की सूची मिली है। इस्लाम कुबूल व निकाह आदि का प्रमाण पत्र दिल्ली के मुफ्ती काजी जहांगीर आलम कासमी द्वारा जारी किए जाते थे। एटीएस के मुताबिक धर्मांतरण के बाद महिलाओं की शादी करवाई जाती थी। दोनों मथुरा, वाराणसी और नोएडा में धर्म परिवर्तन करवा चुके हैं। धर्मांतरण कराने वाले संगठन इस्लामिक दावा सेंटर ने मूक-बधिर बच्चों और महिलाओं तथा गरीब तबके के लोगों को धन, नौकरी आदि का प्रलोभन देकर उनको अपना शिकार बनाया। देश के जनजातीय बहुल दूरदराज के इलाकों में ईसाई मिशनरियों पर भी इस तरह के आरोप लगते रहे हैं कि वह आदिवासियों के हाथ में मुट्ठीभर चावल देकर गले में क्रॉस का चिन्ह लटका देते हैं। यह स्पष्ट है कि भारत में जबरन या लालचन धर्मांतरण कराना अवैध है तो ऐसी सूरत में धर्मांतरण कराने से न केवल सीधे-सीधे भारत के कानून को चुनौती दी जाती है, बल्कि दूसरे धर्म की भावनाओं को भी इरादतन आहत किया जाता है। जबरन धर्मांतरण का राजनीतिक निहितार्थ भी है कि इस तरह की घटनाओं से जहां सांप्रदायिक विद्वेष को बढ़ावा मिलता है वहीं साथ ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी होता है। इसलिए देश के सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगाना बहुत आवश्यक है। इस दिशा में मुस्लिम बुद्धिजीवियों को भी आगे आना चाहिए और ऐसे कदमों व कार्यक्रमों से जिससे दूसरा वर्ग आहत होता है उसको रोकने का प्रयास करना चाहिए।

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