Saturday, 4 December 2021
जब मौत का कोई रिकॉर्ड नहीं तो मुआवजे का सवाल नहीं
केंद्र सरकार ने संसद में कहा है कि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के दौरान किसानों की मौत के बारे में उसके पास कोई आंकड़े नहीं हैं, कोई डाटा नहीं है। ऐसे में मुआवजे का कोई सवाल नहीं उठता। लोकसभा में बुधवार को एक लिखित जवाब में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यह जानकारी दी। इस पर किसान नेताओं ने कहा है कि वह सरकार को मौतों का पूरा आंकड़ा देने को तैयार हैं। दिल्ली पुलिस, सरकार की खुफिया एजेंसियों के पास पूरा डाटा होता है। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी, बसपा सांसद दानिश अली व एआईएमआईएम के इम्तियाज जलील ने किसानों को मुआवजा देने की मांग उठाई। हालांकि सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। तिवारी ने शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि आंदोलन के दौरान 700 किसानों की मौत हुई है। ऐसे में सरकार किसानों के परिवार को पांच करोड़ का मुआवजा दे। इसके साथ एमएसपी कानून बनाकर किसानों की मांग पूरी करे। पिछले एक साल से अधिक समय से चल रहे आंदोलन पर हुए कथित हमलों से केंद्र सरकार ने अपना पल्ला झाड़ते हुए स्पष्ट किया कि आंदोलनरत किसानों की सुरक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी किसानों की है। राज्यसभा में कांग्रेस के सदस्य केसी वेणुगोपाल की ओर से बुधवार को पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने यह जानकारी दी। वेणुगोपाल ने जानना चाहा था कि देश में हाल के समय प्रशासन के साथ-साथ लोगों द्वारा किसानों के आंदोलन पर हमलों में यदि वृद्धि हुई है तो उसका राज्यवार ब्यौरा क्या है और विगत एक वर्ष के दौरान विरोध प्रदर्शनों में घायल हुए और मारे गए किसानों की राज्यवार संख्या कितनी है? उनके सवालों का जवाब देते हुए राय ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने अपनी रिपोर्ट में अपराध ः 2020 में चोट के 5,78,641 मामले रिपोर्ट किए हैं लेकिन इसमें किसानों के आंदोलन पर हमले के कारण उन पर चोट के मामले में अलग कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की है। दरअसल आज के समय में प्रशासन ऐसा हो गया है, जो सिर्प सकारात्मक आंकड़ों में ही दिलचस्पी रखता है। कोई आश्चर्य नहीं, अगर सरकार किसानों की मौत के बारे में नहीं जानती, यह आलोचना का विषय नहीं है। विवेचना का विषय है कि हमारे प्रशासन को देश में चल रही मुख्य घटनाओं की कितनी सूचना है? मुमकिन है कि किसानों के नेताओं के दावों में अतिरेक हो। उनका दावा है कि सिंघु, टिकरी व गाजीपुर सीमा पर कृषि कानूनों का विरोध प्रदर्शन करने वाले 700 किसानों की जान चली गई। मौसम की मार, बीमारियों, गंदगी व आत्महत्या के कारण हुई मौतों की जांच करके आंकड़ा सामने आना चाहिए। क्या स्थानीय थानों के पास आंकड़े नहीं हैं? क्या किसानों की निगरानी की जिम्मेदारी किसी अधिकारी को नहीं दी गई थी? आज हम जिस दौर में हैं, वहां अधिकारियों को सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी फर्जी आंकड़ा लोगों में प्रचारित नहीं हो। किसान काफी दिनों से यह आंकड़े चला रहे हैं और मुआवजे की मांग कर रहे हैं। जब किसानों से बातचीत होगी तब अधिकारियों को पूरे आंकड़ों के साथ बैठना होगा। देश के विकास और आगे की नीति-निर्माण के लिए भी आंकड़ों को दुरुस्त रखने की जरूरत है। वैसे हमारी राय में सरकार को ऐसा टका-सा जवाब नहीं देना चाहिए था। इसमें आग में घी डालने के समान है। अगर किसान संगठन इस पर बिगड़ गए तो सरकार दुविधा में फंस जाएगी।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment