Saturday 25 December 2021

परिसीमन आयोग की सिफारिशों पर मचा बवाल

जम्मू-कश्मीर में जल्द राजनीतिक प्रक्रिया शुरू होने की संभावना पर परिसीमन आयोग के प्रस्ताव ने गर्मी पैदा कर दी है। इसने प्रदेश की राजनीति को दो हिस्सों में बांट दिया है। इसमें एक हिस्सा जम्मू है जिसके नेता अभी भी कम हिस्सा मिलने की शिकायत कर रहे हैं तो दूसरी तरफ कश्मीरी नेता व कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दल हैं जिनका कहना है कि यह प्रस्ताव कश्मीर के चुनावी नक्शे को बदल कर रख देगा जो कश्मीरियों को कभी मंजूर नहीं होगा। दरअसल परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा क्षेत्रों की सीमा को नए सिरे से निर्धारित करने के मकसद से गठित जम्मू क्षेत्र में छह अतिरिक्त सीट और कश्मीर घाटी में एक अतिरिक्त सीट का प्रस्ताव रखा है। नेकां, पीडीपी समेत कश्मीर में लगभग प्रत्येक राजनीतिक दल ने इन प्रस्तावों का विरोध करना शुरू कर दिया है। आयोग ने सोमवार को दिल्ली में हुई बैठक में सभी सदस्यों के साथ विधानसभा में सीटों के आवंटन के नए प्रस्ताव को साझा किया। सभी से 31 दिसम्बर तक विचार मांगे गए हैं। जम्मू की 37 सीटों से बढ़कर 43 हो जाएंगी और कश्मीर की सीटें 46 से बढ़कर 47 हो जाएंगी। अधिकृत कश्मीर के लिए अलग से 24 सीटें आरक्षित हैं। नेशनल कांफ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि सीटों का यह आवंटन 2011 की जनगणना के आधार पर नहीं किया गया है। उनका आरोप है कि आयोग भाजपा के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है। वादा किया गया था कि परिसीमन वैधानिक दृष्टिकोण से किया जाएगा, लेकिन यह इसके बिल्कुल विपरीत है। आयोग के एसोसिएट सदस्य और नेशनल कांफ्रेंस के नेता हसनैन मसूदी का कहना है कि उन्होंने आयोग से कहा कि जिस जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन अधिनियम के तहत परिसीमन किया जा रहा है, उसे अदालत में चुनौती दी गई है। ऐसे में उसके तहत फैसले कैसे लिए जा सकते हैं। पीडीपी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का कहना है कि आयोग को लेकर उनकी आशंका सही निकली और यह लोगों को धार्मिक और प्रांतीय आधार पर बांटकर भाजपा के राजनीतिक हितों के लिए काम कर रहा है। परिसीमन के नियमों के अनुसार विधानसभा सीटों का पुनर्गठन जनसंख्या के आधार पर होना चाहिए। 2011 की जनगणना के अनुसार कश्मीर की आबादी 68.8 लाख और जम्मू की आबादी 53.5 लाख से 15 लाख ज्यादा है। इसी वजह से जम्मू और कश्मीर की विधानसभा में कश्मीर की 46 सीटें थीं और जम्मू की 37। इनके अलावा लद्दाख की चार सीटें भी थीं। 2019 में राज्य का दर्जा खत्म कर दिया गया और जम्मू-कश्मीर व लद्दाख नाम के दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिए गए। लेकिन नए प्रस्ताव के अनुसार आबादी के आंकड़ों में इतना फर्क होने के बावजूद जम्मू में कश्मीर से बस चार ही सीटें कम रह जाएंगी यानि विधानसभा में जम्मू का प्रतिनिधित्व बढ़ जाएगा। परिसीमन पर सहमति बनानी जरूरी है ताकि राजनीतिक प्रक्रिया शीघ्र शुरू हो सके। कश्मीर के हालात पहले से ही नाजुक हैं। ऐसे में कोई भी फैसला, जिसे यहां का एक वर्ग ठीक न माने, स्थितियों को बेहतर बनाने में मददगार साबित नहीं हो सकता इसलिए परिसीमन के मामले में कश्मीर और जम्मू दोनों ही क्षेत्रों के प्रतिनिधियों और जनता का भरोसा हासिल करना बेहतर होगा।

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