Tuesday, 7 December 2021

सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा 30 साल जेल में बदली

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में हत्या के जुर्म में दो दोषियों की फांसी की सजा को 30 साल के कारावास में बदलते हुए कहा कि अदालत दोषियों में सुधार की संभावना पर विचार करने को बाध्य है। भले ही दोषी खामोश रहे। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सम्पत्ति विवाद में भाई के परिवार के अन्य लोगों की हत्या करने के दो दोषियोंöमेहफिल खान और मुबारक खान की फांसी की सजा खत्म कर दी। यह फैसला न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर, बीआर गवई और बीवी नागरत्ना की पीठ ने अभियुक्तों की ओर से फांसी की सजा के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिका पर सुनाया। निचली अदालत, हाई कोर्ट और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने दोनों दोषियों के अपराध को जघन्य मानते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। लेकिन दोषियों ने सजा के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी, जो 2015 से सुप्रीम कोर्ट में निलंबित थी। सुप्रीम कोर्ट के नियम के मुताबिक फांसी की सजा के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिका पर तीन न्यायाधीशों की पीठ खुली अदालत में सुनवाई करती है। कोर्ट ने कहा कि यह कानून का तय सिद्धांत है कि किसी भी अभियुक्त को मृत्युदंड देते समय उसमें सुधार की संभावनाओं को देखा जाएगा और सुधार की संभावनाओं को सजा कम करने के लिए महत्वपूर्ण तथ्य की तरह लिया जाएगा। अदालत का कर्तव्य है कि वह सभी तथ्यों पर जरूरी जानकारी निकालें और अभियुक्तों में सुधार की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए उनकी फांसी की सजा पर विचार करे। पीठ ने कहा कि इस मामले में निचली अदालत, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि दोषियों को सजा अपराध की जघन्यता को देखते हुए दी गई है। अभियुक्तों में सुधार की संभावनाओं पर विचार नहीं हुआ है। न ही राज्य सरकार ने ऐसा कोई सुबूत पेश किया है, जिससे साबित होता हो कि अभियुक्तों में सुधार की कोई संभावना नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उसने अभियुक्तों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि पर विचार किया है। उनके खिलाफ कोई पूर्व अपराध के आरोप नहीं हैं। यह मामला छह जून 2007 का झारखंड के लोहरदगा जिले का है। इसमें दोनों अभियुक्तों ने सम्पत्ति विवाद के चलते अपने भाइयों के बच्चों सहित पूरे परिवार के आठ सदस्यों की हत्या कर दी थी। निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी। इस मामले में कुल 11 अभियुक्त थे, जिनमें निचली अदालत ने सात को बरी कर दिया था और चार को सजा दी थी। हाई कोर्ट ने चार में से दो अभियुक्तोंöसद्दाम खान और वकील खान की फांसी उम्रकैद में तब्दील कर दी थी, लेकिन मेहफिल खान और मुबारक खान की फांसी बरकरार रखी थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी दोनों की फांसी पर मुहर लगाई थी। लेकिन पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दोनों की फांसी 30 साल की कैद में तब्दील कर दी।

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