Tuesday, 14 December 2021
दहेज प्रथा कैसे दूर हो?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि दहेज एक सामाजिक बुराई है। लेकिन इस बात को लेकर समाज के भीतर बदलाव होना चाहिए कि जो महिला परिवार में आई है, उसके साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है और किस तरह लोग उसका सम्मान करते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाओं की स्थिति पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। कानून होने के बावजूद दहेज जैसी सामाजिक बुराई के कायम रहने पर सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर फिर विचार करने की जरूरत बताई। कहा कि विधि आयोग को पूरे परिप्रेक्ष्य के साथ इस पर विचार करना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने दहेज कानून को और सख्त तथा प्रभावी बनाने के लिए आदेश देने से इंकार करते हुए कहा कि यह विधायिका के क्षेत्राधिकार में आता है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह अपने सुझाव विधि आयोग को दें। विधि आयोग उन पर विचार करेगा। याचिका में की गई थीं यह मांगेंöप्रत्येक राज्य और सरकारी दफ्तर में सूचना अधिकारी की तर्ज पर दहेज निरोधक अधिकारी होना चाहिए, जो दहेज निरोधक कानून को कड़ाई से लागू करे। दहेज निरोधक अधिकारी दहेज न लेने का प्रमाण-पत्र जारी करे और शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए वह प्रमाण-पत्र जरूरी किया जाए। सरकारी नौकरी और सरकारी योजनाओं के लिए यह प्रमाण-पत्र जरूरी हो। दहेज निरोधक कानून का दुरुपयोग करने वालों और उसका समर्थन करने वाले पुलिस अधिकारी दोनों पर पेनाल्टी के प्रावधान किए जाएं, ताकि कानून का दुरुपयोग न हो। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की पीठ याचिका की सुनवाई कर रही थी। समाजसेवी साबू स्टीफन और दो अन्य की ओर से दाखिल जनहित याचिका निपटाते हुए यह निर्देश दिए। तीसरी याचिकाकर्ता ने स्वयं को भी दहेज संबंधी मामले में पीड़ित बताया था। याचिका में दहेज पर पूरी तरह रोक लगाने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील बीके बिजू ने कोर्ट से कहा कि कानून होने के बावजूद दहेज प्रथा कायम है, इसलिए कानून को और ज्यादा कड़ा व प्रभावी बनाने की जरूरत है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की चिंता से सहमति जताते हुए कहा कि मौजूदा कानून में किस तरह के बदलाव और उपायों की जरूरत है, इस पर चर्चा और विचार होना चाहिए। याचिका में कई मांगें की गई थींöएक मांग यह भी थी कि शादी के रजिस्ट्रेशन प्रमाण-पत्र से पहले स्पेशल प्री-मैरिज काउंसलिंग प्रमाण-पत्र होना जरूरी किया जाए। पीठ ने इस संबंध में आदेश देने से मना करते हुए कहा कि इसके गंभीर परिणाम होंगे। भारत सिर्फ केरल, मुंबई या दिल्ली में नहीं बसता। भारत गांवों में भी बसता है। गांवों में क्रिमिनल एक्सपर्ट नहीं मिलेंगे। अगर कोर्ट कह देगा कि जब तक कोर्ट नहीं अटैंड किया तब तक शादी पंजीकृत नहीं होगी तो सोचिए ग्रामीण महिलाओं का क्या होगा, जो यह कोर्ट अटैंड नहीं कर सकतीं। इस प्रथा को समाप्त करने के लिए समाज को इसमें अपनी भूमिका निभानी अति आवश्यक है।
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