Sunday, 12 December 2021

आ अब लौट चलें...!

राजधानी की सीमाओं पर 378 दिनों से डटे किसानों की मांगों पर केंद्र के आश्वासन के बाद आखिरकार बृहस्पतिवार को गतिरोध खत्म हो गया। संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन स्थगित करने का ऐलान कर दिया है। सिंघु, टीकरी व कोंडली, गाजीपुर सीमा पर किसानों ने एक-दूसरे को बधाई दी, गले मिले और मिठाइयां बांटीं। इसके बाद आंदोलन स्थल से तंबू भी हटने लगे। किसानों ने शनिवार को घर वापसी शुरू कर दी है। पंजाब में यह बुवाई का मौसम है। लेकिन इस राज्य के लोग अभी तक उस दर्द की फसल को नहीं भुला पाए हैं जो उन्होंने पिछले एक साल से काटी है। भारत के खाद्यान्न भंडार में बड़ा योगदान देने वाले पंजाब के किसान पिछले एक साल से राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर उन तीन नए कृषि कानूनों का विरोध करते दिखे जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संसद में पारित करवाया था। केंद्र सरकार ने भले ही तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस ले लिया हो और इसके बाद ही दोनों पक्षों के बीच खींचतान कम होती दिखी, लेकिन पंजाब के दर्जनों परिवारों के लिए इस बात के अब कोई मायने नहीं रह गए। यह वो परिवार हैं, जिन्होंने अपनों को किसान आंदोलन के दौरान खोया है। यह वो परिवार हैं, जिनके सदस्य किसानों के विरोध प्रदर्शन में भाग लेने गए लेकिन अपने घर वापस जिंदा नहीं लौटे। इनमें से कई लोगों की अत्याधिक ठंड से, कइयों की सड़क हादसों में और कुछ की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। जहां पंजाब का गांव-गांव किसान आंदोलन के दौरान हुई इन मौतों के शोक में डूबा हुआ है, वहीं हाल ही में केंद्र सरकार ने देश की संसद को बताया कि उसके पास दिल्ली और उसके आसपास हुए किसान आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों की संख्या का कोई रिकॉर्ड नहीं है और इसलिए मारे गए लोगों के परिजनों को आर्थिक सहायता देने का सवाल ही नहीं उठता। बलबीर सिंह राजेवाल ने कहाöसरकार ने कहा कि उसके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। हमने उसे उन सभी लोगों की सूची भेजी है जिन्होंने किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान अपनी जान गंवाई। इस सूची में 700 से ज्यादा नाम हैं जिनमें से 600 से ज्यादा सिर्फ पंजाब से हैं। सिंघु बॉर्डर से करीब 300 किलोमीटर दूर पंजाब के भटिंडा जिले के मडी कलां गांव में एक किसान दम्पत्ति आज भी अपने इकलौते बेटे की मौत से जूझ रहा है। बलजिंदर कौर अपने 24 साल के इकलौते बेटे मनप्रीत सिंह के बारे में बात करती हैं तो अपने आंसू रोक नहीं पातीं। मनप्रीत भी अपने गांव के कई लोगों की तरह विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने सिंघु बॉर्डर गया था। इसी साल छह जनवरी को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई थी। बलजिंदर कौर कहती हैं कि वह कहता था कि सभी किसान अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं तो मैं इस लड़ाई का हिस्सा कैसे नहीं बन सकता। हम कड़ी मेहनत करते थे और एक सुखी जीवन बिता रहे थे। मैंने कभी नहीं सोचा था कि हमारे साथ ऐसा कुछ हो सकता है। हमने मनप्रीत को (बेटे से) प्रदर्शन में जाने के लिए मना किया था क्योंकि वह हमारा इकलौता बेटा था। उसने कहा था कि अगर हम जैसे किसान इस विरोध में हिस्सा नहीं लेंगे तो हमारे पास जो कुछ भी है वह सब कुछ खो जाएगा। गांव दर गांव वही कहानी बस चेहरे बदलते रहे, नाम बदलते रहे, लेकिन गांव दर गांव गम की कहानी तकरीबन एक जैसी रही थी। पंजाब के इन परिवारों के जख्म हरे हैं और न जाने उन्हें भरने में कितना वक्त लगेगा। अगर यह जख्म भर भी गए तो भी इनके निशान इन परिवारों के जहन में जिंदगीभर रहेंगे। जो इन परिवारों ने खोया है उसकी भरपायी शायद कभी नहीं हो पाएगी।

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