Sunday 5 December 2021

यूपीए जैसी कोई चीज नहीं रही

पश्चिम बंगाल जीतने के बाद अब ममता बनर्जी देशभर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले में एक संयुक्त मोर्चा या विपक्ष बनाने में जुट गई हैं। गोवा से हरियाणा तक के नेताओं को पार्टी में शामिल करने के अलावा वह अलग-अलग राज्यों का दौरा भी कर रही हैं। ममता ने बुधवार को मुंबई में कांग्रेस पर बड़ा हमला बोला। उन्होंने कहा कि अब यूपीए जैसी कोई चीज नहीं रही। उन्होंने कहा था कि विपक्षी रणनीति बनाने के लिए एक सलाहकार परिषद का गठन किया जाए। इसमें सिविल सोसाइटी की प्रमुख हस्तियों को शामिल किया जाए लेकिन अफसोस इस बात का है कि यह योजना सफल नहीं हो पाई। इसे अमल में लाना जरूरी नहीं समझा गया। ममता ने कहा कि चल रहे फासीवाद के खिलाफ किसी भी लड़ाई के रूप में एक मजबूत वैकल्पिक रास्ता बनाया जाना चाहिए। ममता ने सिविल सोसाइटी के कुछ सदस्यों से बातचीत में कहा कि अगर सभी क्षेत्रीय दल एक साथ आ जाते हैं तो भाजपा को हराना आसान होगा। उन्होंने कहा कि हम कहना चाहते हैं कि भाजपा हटाओ-देश बचाओ। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा का अकेला कोई मुकाबला नहीं कर सकता जो मजबूत है उसे करना पड़ेगा। हाल के दिनों में ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के बाहर कई दौरे किए हैं और विपक्ष के नेताओं से मुलाकात की है। राजनीतिक विश्लेषक इसे ममता की विपक्ष की राजनीति में कांग्रेस की जगह लेने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं। दरअसल 2004 में बनी राजनीतिक परिस्थितियों के जवाब में कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानि यूपीए बना था। तब से यूपीए ने कई चुनौतियों का सामना किया है। शुरुआत में वामदल इसके अहम घटक थे लेकिन साल 2008 में वो इससे अलग हो गए। यही नहीं, यूपीए के कई सहयोगी दलों ने अपनी बात मनवाने के लिए दबाव की राजनीति का भी इस्तेमाल किया। 2004 से 2014 के बीच कांग्रेस के नेतृत्व में डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार बनी पर सरकार का हिस्सा रहे कई दल गठबंधन का साथ छोड़ गए। 2009 के चुनाव में यूपीए ने अप्रत्याशित जीत हासिल की, वहीं 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ी भाजपा के मुकाबले यूपीए गठबंधन को करारी हार मिली। पश्चिम बंगाल का चुनाव जीतने के बाद से ममता में एक भटकाव दिख रहा है, तो क्या यूपीए अब नहीं है? कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों की बैठकों में टीएमसी भी शामिल होती रही। लेकिन हाल के महीनों में टीएमसी ने दूरी बनाने की कोशिश की है। अभी संसद के शीतकालीन सत्र से पहले जब कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों की बैठक हुई तो टीएमसी इससे दूर रही। टीएमसी नेता डैरेक ओ. ब्राइन ने तो ट्वीट कर यह स्पष्ट किया कि टीएमसी कांग्रेस की सहयोगी नहीं है। कांग्रेस के नेतृत्व में हुई इस बैठक में 10 अन्य दलों ने हिस्सा लिया। ममता के बयानों से स्पष्ट है कि उन्हें कांग्रेस से नाराजगी है। लेकिन यह नाराजगी कम और क्या विपक्ष में कांग्रेस की जगह लेने की कोशिश ज्यादा है। ऐसा हो सकता है कि ममता बनर्जी के सलाहकार प्रशांत किशोर ने उन्हें समझा दिया हो कि वो ही विपक्ष की एकजुटता का केंद्र और नेतृत्व कर सकती हैं और वो उसी का प्रयास कर रही हों। शायद ममता के दिमाग में यह रहा हो कि भले ही कांग्रेस बड़ी पार्टी है लेकिन विपक्ष का नेतृत्व करने का मौका उन्हें दिया जाए। लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस को नजरंदाज कर भाजपा के खिलाफ कोई असरदार गठबंधन बनाया जा सकता है?

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