Thursday, 2 December 2021

पार्टी छोड़ने वालों की पहली पसंद तृणमूल कांग्रेस

लंबे समय तक कांग्रेस नीत यूपीए गठबंधन का हिस्सा रही टीएमसी आज की तारीख में कांग्रेस के लिए ही सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। चुनौती इस मायने में बड़ी है कि कांग्रेस के नेताओं की पहली पसंद तृणमूल कांग्रेस ही बनती जा रही है। कांग्रेस के जो भी नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, उनमें से ज्यादातर टीएमसी में ही जा रहे हैं। पहले यह सिलसिला बंगाल में देखा गया तो कहा गया कि बंगाल में टीएमसी सत्ता में है, इस वजह से ऐसा हो रहा है। फिर ऐसा ही ट्रेंड पूर्वोत्तर राज्यों में दिखा, तो कहा गया कि वहां पर टीएमसी का वजूद पहले से है। लेकिन अब जब यूपी, बिहार, हरियाणा जैसे हिन्दीभाषी राज्यों में जहां टीएमसी का वजूद नहीं है, वहां के कांग्रेस नेताओं ने टीएमसी के साथ जाना शुरू किया तो राजनीतिक गलियारों में इस पर अचरज जताया जा रहा है। यूपी में कांग्रेस का एक बहुत पुराना घराना हुआ करता था कमलापति त्रिपाठी का परिवार। कमलापति त्रिपाठी यूपी के सीएम रह चुके हैं और यह परिवार बनारस का बहुत नामचीन ब्राह्मण परिवार माना जाता है। इस परिवार ने पिछले दिनों अपनी सियासी वफादारी बदली। यूपी के लिहाज से उसके पास बहुत सारे विकल्प हो सकते थे। अगर भाजपा में नहीं तो सपा, बसपा में जा सकते थे। लेकिन इस परिवार ने टीएमसी को चुना। इसी तरह हरियाणा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर के पास भी राज्य की सियासत के लिए कई विकल्प थे, लेकिन उन्होंने भी टीएमसी को चुना। बिहार में कीर्ति आजाद ने भी टीएमसी को चुना। इससे पहले मेघालय में कांग्रेस के सीनियर लीडर मुकुल संगमा एक दर्जन विधायकों के साथ टीएमसी में आ गए। विधायकों की संख्या के लिहाज से कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा प्राप्त था, जबकि अब टीएमसी के पास आ गया है। उससे पहले त्रिपुरा में भी सुष्मिता देव जैसा बड़ा चेहरा कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में चला गया। गोवा में कांग्रेस के पूर्व सीएम लूइजिन्हो फेलेरो भी टीएमसी के साथ हो लिए। हैरान-परेशान कांग्रेस को यह कहना पड़ा कि ममता को अब सोनिया ही नहीं, बल्कि नरेंद्र मोदी की जरूरत है। कांग्रेस को तोड़ने की सुपारी उन्हें भाजपा से ही मिली है। कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि इस सबके पीछे प्रशांत किशोर का दिमाग चल रहा है। क्या ममता का बढ़ता कद कांग्रेस को लुभा रहा है? पहली वजह तो यह कही जा रही है कि ममता बनर्जी मोदी के खिलाफ विपक्ष का मुख्य चेहरा बन रही हैं। कांग्रेस के जिन नेताओं को अपनी पार्टी की कोई बड़ी उम्मीद नहीं दिख रही है, उन्हें अपने राज्यों में पहले से स्थापित किसी अन्य पार्टी में सीधे जाने पर तालमेल में कठिनाई आ सकती है। लेकिन वाया ममता बनर्जी उनको आसानी होगी। ममता जिस भी राज्य में जिस भी पार्टी से चाहेंगी, अपने लोगों के लिए सीट छुड़वा लेंगी। दूसरी बात कांग्रेस में उनकी वापसी आसान होगी। टीएमसी को कांग्रेस से बहुत अलग नहीं माना जाता, परिवार ही पार्टी मानी जाती है। जिन बड़े चेहरों ने हाल के दिनों में कांग्रेस से पाला बदल कर टीएमसी का रुख किया है, उनमें ज्यादातर खुद या उनके परिजन कभी न कभी ममता के साथ काम कर चुके हैं। इस वजह से उनकी ममता के साथ सहजता है। कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में आकर घर जैसे अपनेपन का अहसास हुआ। ममता बनर्जी कांग्रेस से निकली हैं तो उनकी स्कूलिंग, विचारधारा व प्रक्रिया मिलती-जुलती है। फिर ममता ने यह साबित कर दिया है कि वह मोदी-शाह की जोड़ी को मात दे सकती हैं।

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