Wednesday, 1 December 2021
न्यायाधीशों पर बढ़ते हमले
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने गत सप्ताह कहा कि अधिकारियों के पृथककरण की लक्ष्मण रेखा को पवित्र माना जाता है और कभी-कभी अदालतें न्याय के हित में हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य होती हैं जिसका इरादा कार्यपालिका को चेताने के लिए होता है, न कि उसकी भूमिका को हथियाने के लिए तथा न ही इसे इस तरह पेश किया जाना चाहिए कि न्यायपालिका दूसरी संस्था को निशाना बना रही है। उन्होंने न्यायिक हस्तक्षेप को कार्यपालिका को निशाना बनाने के रूप में पेश करने के किसी भी प्रयास को लेकर आगाह किया और कहा कि यह पूरी तरह से गलत है तथा यदि इसे प्रोत्साहित किया गया तो यह लोकतंत्र के लिए हानिकारक साबित होगा। उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह में न्यायमूर्ति रमण ने विशेष रूप से सोशल मीडिया में न्यायाधीशों और न्यायपालिका पर हमलों का मुद्दा उठाया और कहा कि वह प्रायोजित और समकालिक प्रतीत होते हैं। इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे। जज महोदय ने कहाöन्यायपालिका के लिए गंभीर चिंता का विषय जजों पर बढ़ते हमले हैं। न्यायिक अधिकारियों पर शारीरिक हमले बढ़ रहे हैं। मीडिया खासकर सोशल मीडिया में न्यायपालिका पर हमले हो रहे हैं। यह हमले प्रायोजित और समकालिक प्रतीत होते हैं। कानून लागू करने वाली एजेंसियों, विशेष रूप से केंद्रीय एजेंसियों को ऐसे दुर्भावनापूर्ण हमलों से प्रभावी ढंग से निपटने की जरूरत है। सरकारों से एक सुरक्षित वातावरण बनाने की अपेक्षा की जाती है ताकि न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी निडर होकर कार्य कर सकें। न्यायमूर्ति रमण ने विशेष रूप से निचली अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित रहने को खतरनाक करार दिया। उन्होंने कहाöवही न्यायपालिकाओं को केवल पोस्टकार्ड के आधार पर समाधान प्रदान करती है, विरोधाभासी रूप से विभिन्न जटिल कारणों से नियमित निष्कर्ष तक ले जाने के लिए वर्षों तक संघर्ष करती है। उन्होंने कहा कि संविधान द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा पवित्र है, लेकिन कभी-कभी अदालतों को न्याय के हित में हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य होना पड़ता है जिसका इरादा कार्यपालिका को चेताने के लिए होता है, न कि इसकी भूमिका को हथियाने के लिए तथा न ही इसे इस तरह पेश किया जाना चाहिए कि न्यायपालिका दूसरी संस्था को निशाना बना रही है।
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