Friday 7 May 2021

प्रधानमंत्री की 2 लाख लोगों की रैली, हम भीड़ पर गोलियां नहीं चलवा सकते

चुनावी राज्यों में संक्रमण की तेज रफ्तार पर मद्रास हाई कोर्ट की टिप्पणियों के खिलाफ चुनाव आयोग ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अपनी सफाई पेश की। मद्रास हाई कोर्ट की बेंच ने देश में कोरोना की दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि आयोग के अधिकारियों के खिलाफ हत्या करने का केस दर्ज किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में इन टिप्पणियों के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि हम चुनाव करवाते है, सरकार अपने हाथ में नहीं लेते। अगर दूर दराज इलाके में प्रधानमंत्री 2 लाख लोगों की रैलियां कर रहे हो तो हम (आयोग) भीड़ पर गोली नहीं चलवा सकते। इस पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि मीडिया के जजों की मौखिक टिप्पणियों की fिरपोर्टिंग से रोका नहीं जा सकता। टिप्पणियां न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होती है। इनकी भी उतनी ही अहमियत होती है जितनी कोर्ट के औपचारिक आदेश की। कोर्ट ने आयोग को नसीहत देते हुए कहा कि आप हाई कोर्ट द्वारा दी गई टिप्पणियों को वैसे ही लीजिए जैसे डाक्टर की कड़वी दवाई ली जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। हालांकि मद्रास हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद चुनाव आयोग ने मतगणना के बाद विजय जुलुसों पर रोक लगाई थी। रविवार को नतीजों के बाद पार्टी कर्ताकर्ताओं और मतगणना केन्द्राsं के बाहर लगी भीड़ पर चुनाव आयोग ने कहा था कि इसे रोकने में नाकाम रहे पुलिस अधिकारियें पर कार्रवाई होनी चाहिए। चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेद्वी ने कहा कि हत्या का आरोप अनुचित है। जज को अपने फैसले में लिखना चाहिए कि टिप्पणी का क्या अर्थ है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम आपकी बात समझते है। पर हम हाई कोर्ट के जजों को हतोत्साहित नहीं करना चाहते। ऐसा नहीं है कि जज घर से सोचकर आते है कि क्या बोलना हैं। संवैधानिक संस्थान के रूप में हम चुनाव आयोग का सम्मान करते है। पं. बंगाल में 2 मार्च से रोजाना कोविड के 131 केस आ रहे थे जो 2 मई को 13515 हो गए यानी 102 गुना। असम में 2 मार्च को 15 से 2 मई में 2,385 केस हो गए 158 गुना वृद्धि। ऐसे ही तमिलनाडु में 123 गुना, केरल में 10.5 गुना और पुडुचेरी में 96 गुना केस बढ़ गए। पीठ ने माना कि टिप्पणी काफी कठोर थी पर पीड़ा व हताशा में की गई होगी। कभी-कभी न्यायाधीश बड़े जनहित में कुछ बातें करते हैं। जस्टिस शाह ने कहा, एक के बाद एक आदेश पारित किए जाने के बावजूद अथॉरिटी द्वारा आदेशों का पालन नहीं किया जाता है। जमीनी हकीकत के आधार पर ऐसी टिप्पणियां की जाती है।

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