Tuesday, 4 May 2021
ऐतिहासिक ः पांच राज्यों में पूर्ण बहुमत वाली सरकारें
पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के चुनाव नतीजों ने साबित कर दिया कि लालच, पैसे, झूठे वादों, ताकत या सत्ता का दुरुपयोग कर धक्कामुक्की से सत्ता हासिल नहीं की जा सकती। सत्ता में वही आएगा जिसे जनता चाहती है। पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में पूर्ण बहुमत की सरकार बन रही है। बंगाल में ममता लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने जा रही हैं। वहीं असम में एक बार फिर भाजपा को सबसे ज्यादा सीट मिली हैं। केरल में सत्तारूढ़ एलडीएफ ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। पुडुचेरी में एआईएनआरसी नीत एनडीए को सफलता मिली है। वहीं तमिलनाडु में द्रमुक जीती है। वैसे तो चुनाव चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में थे, लेकिन सबकी निगाहें बंगाल के नतीजों पर ही थीं। राज्यों में हुए यह चुनाव तो प्रांतीय थे लेकिन इन्हें राष्ट्रीय स्वरूप देने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को जाता है। भाजपा के जितने नेता अकेले पश्चिम बंगाल में डटे रहे, आज तक किसी भी राज्य विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर के इतने नेता कभी नहीं डटे। सालभर से जिस तरह चुनावी तैयारियां चल रही थीं, उससे इस राज्य की राजनीतिक एहमियत का पता चलता है। यह किसी से छिपा नहीं कि बंगाल में सत्ता हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने सारे संसाधन झोंक दिए। बंगाल में ममता बनर्जी एक दशक से सत्ता में थीं और इसलिए राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि राज्य में सत्ता विरोधी लहर है। भाजपा भी यह मानकर चल रही थी कि पिछले 10 वर्षों के ममता के शासन के दौरान लोगों में तृणमूल कांग्रेस के विरुद्ध भारी नाराजगी है, एंटी इनकम्बेंसी वोट उसे मिलेगा। इसलिए भाजपा ने बंगाल में पूरी तरह ताकत झोंक दी। गृहमंत्री अमित शाह ने 200 पार का नारा दिया था। भाजपा खेमे ने ऐसा माहौल बनाया था कि मानों पश्चिम बंगाल में वह सरकार बनाने जा रही है, लेकिन भाजपा का यह सपना अधूरा रह गया। इस जीत से ममता का क्षेत्रीय कद तो बढ़ा ही है, साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में वह एक विकल्प बनकर उभरी हैं। राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में ममता बनर्जी भाजपा के लिए एक चुनौती बन सकती हैं। ममता की छवि आम जनमानस खासकर गरीब तबके की हमदर्द नेता की बनी हुई है। वह जमीन से जुड़ी एक जुझारू नेता मानी जाती हैं। सबसे बड़ी इस जीत की उपलब्धि यह है कि मोदी-शाह की जोड़ी को तमाम प्रयासों के बावजूद हराया जा सकता है। यह इनविसिवल नहीं है। अब क्षेत्रीय नेता भी खुलकर केंद्र के सामने डटेंगे। ममता की चुनावी रणनीति पांच सितारा होटलों की नहीं है बल्कि जमीनी हालात के बीच बनी दिखाई दी। चुनावों से पहले तृणमूल कांग्रेस के सांसदों, विधायकों को तोड़ने का भाजपा ने जो अभियान चलाया, उसके नितिहार्थ समझने में भी बंगाल की जनता ने देर नहीं लगाई। भाजपा ने बड़ा दांव तृणमूल के बागी नेताओं पर खेला। लेकिन यह भाजपा की उम्मीदों को पूरा नहीं कर सके। मुकुल रॉय, शुभेंदु अधिकारी, राजीव बनर्जी, बैशाली डालमिया जैसे करीब 37 विधायक भाजपा ने तोड़कर शामिल किए। कुल 140 के करीब तृणमूल नेता भाजपा में आए। इनमें से सिर्फ तीन नेता ही जीत दर्ज कर सके। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री मुकुल रॉय, ममता के खास रहे शुभेंदु अधिकारी और मिहिर गोस्वामी ही जीत दर्ज कर सके। चुनाव से ठीक पहले कोबरा (मिथुन चक्रवर्ती) को भी मुंह की खानी पड़ी। मोदी का नारा दीदी ओ दीदी का उलटा असर हुआ। तमाम महिलाओं ने इसका बुरा माना और तृणमूल को वोट दिया। भारत का मतदाता बड़ा परिपक्व हो गया है उसने इस बार पांचों जगह पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है, जिसमें कोई जोड़तोड़ की सरकार न बन सके। इन परिणामों के राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा असर पड़ना स्वाभाविक है।
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