Monday 31 May 2021

किसानों को विरोध प्रदर्शन करते हुए छह महीने हो गए

तीन कृषि कानून के खिलाफ किसानों का विरोध प्रदर्शन अब भी जारी है। सिंघु बॉर्डर पर किसानों को विरोध प्रदर्शन करते हुए छह महीने से ऊपर हो गए हैं। शुक्रवार को प्रदर्शन का 183वां दिन था। किसानों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक वह प्रदर्शन को और मजबूत करेंगे। दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से शुक्रवार को बयान जारी कर कहा गया कि वह दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन को छह महीने पूरे कर चुके हैं। आंदोलन को देखते हुए हमने सिंघु बॉर्डर पर पहले पानी लंगर और रहने की पूरी सुविधा थी। अब यहां पर सैकड़ों किलो दूध की सेवा रोज हो रही है, साथ ही अन्य सामाजिक संस्था के संगठनों ने भी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के लिए रहने, खाने, मेडिकल और अन्य जरूरी सेवाओं का इंतजाम किए हुए हैं। यह आंदोलन एक लंबी लड़ाई है। केंद्र सरकार इन कानूनों को वापस न लेते हुए, किसानों को अन्य मुद्दों में उलझा कर उनके सब्र की परीक्षा ले रही है परन्तु किसानों के लगातार जोश ने सरकार को मजबूर किया हुआ है। आने वाले समय में यह लड़ाई और मजबूत होगी। लगता है कि सरकार ने किसानों की फिक्र को प्रधानमंत्री किसान सहायता राशि तक सीमित मान लिया है और आंदोलनरत किसानों को चन्द सिरफिरे लोगों का आंदोलन मानकर उनकी फिक्र करना छोड़ दिया है। दोनों तरफ जिद सवार हैं। किसानों का कहना है कि सरकार तीनों कानून वापस ले तो वह लौट जाएंगे जबकि सरकार का कहना है कि किसान तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग छोड़ दें तो कृषि कानूनों में कुछ संशोधन किए जा सकते हैं। किसान नेताओं का कहना है कि हम भी अपने घर जाना चाहते हैं। लेकिन जब कोरोना की पहली लहर में भी सरकार ने हमारी नहीं सुनी तो अब कोरोना की दूसरी लहर से किसे डरा रहे हैं। किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार ने किसानों को पुतले पूंकने पर मजबूर किया है। सरकार को पहले तय करना होगा कि कोरोना महामारी बड़ी है या तीन कृषि कानून? यदि बीमारी बड़ी है तो सरकार तीनों कृषि कानूनों को रद्द करके किसानों की घर वापसी का मार्ग क्यों नहीं खोलती? टिकैत ने तल्ख स्वर में चेताया कि सरकार अपनी जिद पर अड़ी रही तो किसान अगले आम चुनाव यानि 2024 तक सीमाओं पर डटे रहेंगे। लंबी चुप्पी के बाद दिल्ली की सीमाओं पर फिर आंदोलन की गूंज सुनाई दी है। इससे लगता है कि किसान खेतों से अपने जरूरी काम निपटा कर लौटने लगे हैं। जब अर्थव्यवस्था के दूसरे सेक्टर नकारात्मक परिणाम दे रहे हों तो ऐसे में किसानों की बात गौर से सुनी जानी चाहिए और इस मामले को निपटा देना चाहिए।

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