Tuesday, 18 May 2021
प्रवासी मजदूरों को मुफ्त सूखा राशन दें
कोरोना काल में विभिन्न राज्यों में लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूर फिर बेरोजगारी और खाने के संकट से जूझ रहे हैं। इनके पलायन पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र सरकार पर गहरी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहाöपिछले साल प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए शीर्ष अदालत ने कई आदेश दिए, मगर उनका पालन नहीं हुआ। साथ ही केंद्र, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में फंसे मजदूरों को सूखा राशन उपलब्ध कराया जाए। साथ ही उनके लिए सामुदायिक रसोई भी शुरू करने पर विचार करें। इसके लिए मजदूरों से कोई पहचान पत्र भी न मांगा जाए। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने कहा कि जो मजदूर घर वापस लौटना चाहें, प्रशासन उनके लिए परिवहन की व्यवस्था कराए। जस्टिस शाह ने पूछा कि पिछले साल के आदेश पर क्या किया? हम उस पर गौर करेंगे। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहताöहम महामारी से लड़ रहे हैं। हमें महामारी से लड़ने दें। पिछली बार सब बंद था। इस बार औद्योगिक ईकाइयों का निर्माण जारी है। दो-तीन को छोड़कर यह नहीं कह सकते कि सभी राज्य गैर-जिम्मेदार हैं। जस्टिस भूषणöएनसीआर में मजदूरों से चार-पांच गुना किराया वसूलने की बातें आ रही हैं। मेहताöहमारी योजना पलायन को प्रोत्साहन देने के लिए नहीं है। जस्टिस शाहöमजदूरों की मानसिकता और आशंकाएं अलग होती हैं। मेहताöयह याचिका जमीनी स्थिति देखकर नहीं बल्कि ड्राइंग रूम में बैठकर बनी है। जस्टिस शाहöआप यह जानकारी रिकॉर्ड पर रखें कि पिछले साल के आदेश पर क्या-क्या किया? भूषणöपिछली बार केंद्र ने कहा कि मजदूर सड़क पर नहीं हैं। अब कह रहे हैं कि मजदूर फ्री ट्रेन के चक्कर में काम छोड़ देंगे। जस्टिस भूषणöहम किसी फ्री राइड का आदेश नहीं देने जा रहे। मेहताöराज्यों को जवाब दायर करने दें। स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। ऑक्सीजन, अस्पतालों के इंतजाम या बदइंतजामी से घिरी राज्य सरकारों को सिवाय कोरोना से लड़ने के कुछ और नहीं सूझ रहा है। पर दूसरे मसले बराबर बने हुए हैं। दुखद यह है ]िक जो समस्याएं गत वर्ष देखी गई थीं, लगभग वैसी ही समस्याएं प्रवासी कामगारों की इस साल भी देखी जा रही हैं। अचानक लॉकडाउन की घोषणा, फिर प्रवासी कामगारों में भगदड़, अपने गांव जाने की जल्दबाजी। इससे यही साबित होता है कि प्रवासी कामगारों को यकीन ही नहीं हो पा रहा है कि ठप कारोबार या बंद उद्योगों के दौर में उनको खाने के लिए पैसे कहां से आएंगे? मकान मालिक को किराया कैसे देंगे? यह तमाम राज्य सरकारों की तरफ से उन्हें कुछ न्यूनतम सहायता भी मिलेगी या नहीं? समस्या लंबी खिंच रही है, इसके लिए सुविचारित नीति की जरूरत होती है, सिर्प फौरी उपायों से बात नहीं बनेगी।
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