Thursday 27 May 2021

कागजों में घटती महंगाई

बीते अप्रैल महीने में खुदरा महंगाई के आंकड़ों में कमी आई है, लेकिन रसोई में घुस चुकी महंगाई फिलहाल जाने वाली नहीं है। जनवरी से अब तक के आंकड़े देखें तो सब्जियों और चावल के अलावा सभी खाद्य पदार्थ महंगे हो चुके हैं। इसमें भी खाद्य तेल और दालें विशेष रूप से महंगी हो चुकी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी कीमतों में फिलहाल अभी कोई बड़ी राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। जनवरी में सरसों के तेल के दाम थोक में 120 से 125 रुपए प्रति किलो थे, जो अब बढ़कर 150 रुपए तक पहुंच गए है। थोक में इनके 200 रुपए प्रति किलो तक वसूले जा रहे है। सोयाबीन रिफाइंड के थोक भाव भी जनवरी में 120 रुपए प्रति लीटर से बढ़कर अब 145 रुपए प्रति लीटर हो गए हैं। रिटेल में कीमत और भी ज्यादा हैं। इसी तरह मूंग के अलावा सभी प्रकार की दालों की कीमतों में भी चार महीनों में अच्छी-खासी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। रबी में गेहूं की आवक होती है इसके बावजूद जनवरी की तुलना में मई में आटे के भाव बढ़ गए हैं। रसोई गैस के दामों में भी बढ़ोतरी हुई है। कमेडिटीट एडवाइजरी फर्म केडिया के डायरेक्टर अजय केडिया कहते हैं, जब भी महामारी का दौर आता है एसी एग्रो प्रोडक्ट के दाम बढ़ते हैं। सरसों, सोयाबीन आदि के आवक के सीजन में भी कम करने के बजाए बढ़ गए हैं। ऐसे में फिलहाल खाद्य तेलों की कीमतों में राहत मिलने के आसार नहीं हैं। दालों में भी ऐसा ही है। आयात छूट से भी ज्यादा राहत नहीं मिलेगी, क्योंकि ज्यादातर देशों से शिपिंग समेत लागत अधिक है। अभी तंजानिया से दाल आ रही है, लेकिन वह भी पर्याप्त नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक सप्लाई चेन बिगड़ने से भी कीमतों को हवा मिल रही है। इसके अलावा, लॉकडाउन के डर से लोगों द्वारा भंडार बनाने की कोशिश से भी दाम बड़े हैं। -अनिल नरेन्द्र

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