Friday, 7 May 2021
लोकतांत्रिक चुनाव में हिंसा का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बीते रविवार जो हिंसा का दौर आरंभ हुआ उस पर अविलंब रोक लगानी चाहिए। राज्य के विभिन्न इलाकें में तीन और लोगों की मौत होने के साथ ही मरने वालों का आंकड़ा 17 तक पहुंच गया है। भाजपा ने इनमें से नौ के अपना कार्यकर्ता होने का दावा किया है तो टीएमसी ने अपने सात लोगों की भाजपा के हाथें हत्या का आरोप लगाया है। इस बीच भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा दो दिनों के दौरे पर कोलकाता पहुंच गए हैं। उन्होंने मंगलवार शाम को इस हिंसा के कथित टीएमसी समर्थकों के हाथों मारे गए पार्टी के दो कार्यकर्ताओं के घर जाकर पfिरजनों से मुलाकात की। दूसरी और ममता बनर्जी का आरोप है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में शर्मनाक हार पचा नहीं पा रही है। इसलिए वह साम्प्रदायिक हिंसा भड़काकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का प्रयास कर रही है। पूर्व मेदिनीपुर के बीजेपी जिला अध्यक्ष प्रलय पाल दावा करते है कि टीएमसी कार्यकर्ताआंs को अत्याचार से आजिज आकर पार्टी के कई कार्यकर्ता जान बचाने के लिए घर से भाग गए हैं। कई जगह घरों में लूटपाट और आगजनी की घटनाएं हुई है और महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि हिंसा की घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर भाजपा बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू कराने का प्रयास कर रही है। उनका कहना था, राज्य मे चुनाव के बाद हिंसा की कुछ घटनाएं जरूर हुई हैं। लेकिन भाजपा इस आग में घी डालने का प्रयास कर रही है। हिंसा उन इलाकों में ज्यादा हो रही है जहां भाजपा जीती है। इस हिंसा को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश भी हो रही है। लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। मैने सचिव, गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक और कोलकाता के पुलिस आयुक्त के साथ बैठक में हिंसा से उपजी परिस्थिति की समीक्षा की और प्रशासन को इस पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी कार्रवाई का मैने निर्देश दिया है। ममता ने कहा कि सोमवार तक पूरा प्रशासन चुनाव आयोग के हाथों में था। लेकिन उसने 24 घंटे के दौरान इस पर अंकुश लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मंगलवार शाम कुछ पीड़ित परिवारों के साथ मुलाकात के बाद कहा, भाजपा कार्यकर्ताओं की शहादत बेकार नहीं जाएगी। पार्टी ने बीते दिनों के दौरान राज्य में हिंसा की एक सूची तैयार की है जिसमें हत्या, हिंसा, आगजनी और लूटपाट की 273 घटनाआंs होने का दावा किया गया है। हिंसा की ज्यादातर घटनाएं ग्रामीण इलाकों में हुई है। वहां स्थानीय लोगों की आपसी तनातनी इसकी एक वजह हो सकती है। यह संभव है कि शीर्ष नेताओं ने इसका समर्थन नहीं किया हो। लेकिन अब इन मामलों को अपने हित में भुनाने की कवायद तेज हो गई है। तीसरी बार प्रदेश की कमान संभाल रही ममता बनर्जी की यह पहली प्राथमिकता होनी चाहिए कि हिंसा को नियंत्रित करने के लिए वह राज्य की कानून व्यवस्थाओं को संभालने वाली एजेंसियों के साथ बेकाबू हो रहे तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को कड़ा संदेश दें। दरअसल बंगाल के राजनीतिक हिंसा के अतीत को देखते हुए पहले ही आशंका जताई जा रही थी कि वहां नतीजे आने के बाद हिंसा भड़क सकती है। यह वाकई त्रासद है कि जिस समय पश्चिम बंगाल को पूरे देश की तरह कोविड-19 की महामारी को नियंत्रित करने के लिए एकजुटता दिखानी चाहिए तब वहां राजनीतिक बदला लेने के लिए हिंसा की जा रही है। यह नहीं भूलना चाहिए कि माकपा और कांग्रेस तक ने हिंसा को लेकर तृणमूल को जिम्मेदार ठहराया है। अब जब ममता बनर्जी अपनी नई पारी की शुरुआत कर रही हैं तो यह कहने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि हिंसा पर कड़ाई से काबू पाने के बाद ही वह महामारी और उससे उपजी परिस्थिति से प्रभावी ढंग से निपटेंगे।
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