Tuesday 4 May 2021

टीके का मूल्य व वितरण उत्पादकों पर न छोड़ा जाए

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की कोविड टीकाकरण नीति पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि केंद्र और राज्यों के लिए अलग-अलग मूल्य तय करने की उत्पादकों को अनुमति नहीं दी जा सकती। केंद्र को राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के तहत कोविड के टीकों को लगाने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़, एल. नागेश्वर राव और एस. रवीन्द्र भट्ट की बेंच ने केंद्र से सवाल किया कि वह पेटेंट के तहत अनिवार्य लाइसेंस देने के अधिकार पर विचार क्यों नहीं कर रहा है। अदालत ने कहा कि टीके का मूल्य और उसके वितरण की जिम्मेदारी उत्पादकों पर न छोड़ी जाए। केंद्र को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। अदालत ने कहा कि टीके की खरीद केंद्र कर रहा हो या राज्य अंतत यह देश के नागरिकों के लिए है। हमें राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान का मॉडल अपनाना होगा। केंद्र सरकार शत-प्रतिशत टीकों की खरीददारी करे। उत्पादकों की पहचान करे और उनसे भाव-तोल करे। इसके बाद राज्यों को टीका वितरण किया जाए। टीके की खरीददारी का केंद्रीयकरण होना चाहिए और वितरण का विकेंद्रीकरण। केंद्र ने 50 प्रतिशत कोटा पहले से राज्यों को दे दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि टीके का उत्पादन करने वाली कंपनी यह तय करेगी कि किस राज्य को कितना टीका देना है। क्या निष्पक्षता और स्वाभाविक न्याय का मामला निजी कंपनी पर छोड़ा जा सकता है? बेंच ने कहा कि टीके को विकसित करने और उसके उत्पादन के लिए 4500 करोड़ रुपए का फंड दिया गया। इसलिए उत्पाद का मालिकाना हक सरकार का है। यही उत्पादक अब कह रहा है कि केंद्र के लिए मूल्य 150 रुपए और राज्य के लिए 300-400 रुपए। थोक के भाव में यह अंतर 30 से 40 हजार करोड़ होता है। देश इतनी बड़ी राशि क्यों खर्च करे? इस धनराशि का इस्तेमाल कहीं और किया जा सकता है। केंद्र सरकार थोक में टीकों को क्यों नहीं खरीदती। राज्य उससे अपना कोटा ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अमेरिका में भी एक टीके की कीमत 2.15 डॉलर है। यूरोप में इससे भी कम। भारत के लोगों के लिए महंगी वैक्सीन क्यों? राज्य सरकारों को 600 रुपए में और निजी अस्पतालों को 1200 रुपए में बेचने का क्या औचित्य है? भारत दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। 18 से 45 साल की उम्र के लगभग 59 करोड़ लोगों को टीका लगेगा। इनमें समाज के वंचित वर्ग के लोग तथा अनुसूचित जाति, जनजाति के भी लोग हैं। यह लोग कहां से पैसा लाएंगे? संकट के समय प्राइवेट सैक्टर मॉडल समझ से परे है। सुप्रीम कोर्ट आजकल जनता की आवाज बनी हुई है। कोई तो सुध लेने वाला है केंद्र की गलत नीतियों का और आम जनता की आवाज उठाने वाला।

No comments:

Post a Comment