Tuesday 11 May 2021

क्या ममता की जीत से संघ खुश है?

अगर यह कहा जाए कि बंगाल विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी की जीत से आरएसएस खुश है तो क्या आप यह बात हजम कर पाएंगे? निश्चय ही आप सोचने पर मजबूर हो गए होंगे कि क्या यह बात सही है? 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा बुरी तरह हार गई और इसका पालक संगठन इससे कैसे खुश होगा? नरेंद्र मोदी और भाजपा, दोनों ही राजनीतिज्ञ या पार्टी का अंतिम लक्ष्य चुनाव जीतना और सरकार बनाना है। लेकिन आरएसएस शुरू से अंत तक धार्मिक संस्था मानी जाती है और उसका लक्ष्य सत्ता पर कब्जा इतना ही नहीं है जितना भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है। संघ का मूल उद्देश्य है हर हिन्दू में हिन्दुत्व का गौरव पैदा करना। बंगाल चुनाव-प्रचार के दौरान ममता बनर्जी का चंडी-पाठ और खुद को ब्राह्मण परिवार की बेटी के रूप में दिखाना, बेशक मोहन भागवत के लिए खुशी की बात होगी। इसे लेकर सवाल उठ सकता है कि भाजपा के हिन्दुत्व को लेकर तो बहुत सारी बातें होती हैं, तो फिर? दरअसल यहां का समीकरण थोड़ा हटकर है। हिन्दुत्ववादी पार्टी का तमगा तो शुरू से ही भाजपा को मिला हुआ है। लेकिन हाल के कुछ चुनावों ने यह समझा दिया कि सिर्फ ममता बनर्जी ही नहीं, अरविन्द केजरीवाल से लेकर राहुल गांधी तक, हर राजनेता चुनाव के समय कुशलतापूर्वक हिन्दुत्व का सहारा लेता है। केजरीवाल को हनुमान चालीसा का पाठ करना पढ़ रहा है, वहीं राहुल गांधी को मंदिर-मंदिर जाकर जनेऊ दिखाना पड़ रहा है। हिन्दुत्ववादी संगठन के तौर पर भाजपा हमेशा ही कट्टर हिन्दुत्व की पक्षधर रही है। लेकिन आरएसएस की चिन्ता है कि अन्य राजनीतिक पार्टियों के नेता अपने को हिन्दुत्व के रूप में उजागर करने में सहज महसूस नहीं करते। ऐसे में वर्तमान हालात में इतिहास का पहिया अगर घूमता है और हर राजनीतिक दल के नेता हिन्दू अस्मिता को उजागर करने में जुट जाएं तो क्या संघ को खुशी नहीं मिलेगी? लंबे समय से पल रही उम्मीद संघ को खुशी देने के बावजूद भाजपा की नींव को हिलाने के लिए पर्याप्त है। बंगाल चुनाव मोदी और भाजपा के लिए खतरे का संकेत जरूर है। शून्य से सीधे इतनी सीटें जीतना बेशक बड़ी सफलता है, पर आंकड़ों की कसौटी पर एक बड़ी असफलता की ओर इशारा करता है। वर्ष 2016 के बंगाल चुनाव में सिर्फ तीन सीटें और 10 प्रतिशत वोटों से ही भाजपा को संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उससे बहुत आगे 18 सीटें और 40 प्रतिशत वोट मिले। लोकसभा सीट के इस परिणाम से स्वाभाविक तौर पर 2021 के विधानसभा चुनाव को लेकर उत्साह था। प्रधानमंत्री से लेकर अमित शाह व अन्य केंद्रीय नेता बाकी सब कुछ छोड़कर बंगाल को ही लक्ष्य करके मैदान में उतर पड़े, लेकिन बाजी हाथ से निकल गई। इस हार के कई कारण हैं। वर्ष 2002 में जिस तरह नरेंद्र मोदी गुजराती अस्मिता का कार्ड खेलकर गुजरात चुनाव जीते उसी प्रकार ममता ने 2021 में भाजपा का आक्रामकता के जवाब में बंगाल अस्मिता का इस्तेमाल किया। भाजपा के जय श्रीराम का नारा जैसा असर उत्तर भारत में छोड़ता है, वैसा बंगाल में नहीं छोड़ पाया। इसके जवाब में ममता ने जय चंडी, जय दुर्गा का नारा देकर बंगालियों का दिल जीत लिया। इसके विपरीत भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष दिलीप घोष ने बंगाल की नारीशक्ति दुर्गा की पहचान को लेकर जिस तरह का व्यंग्य किया, उससे भी पार्टी के विरोध में बंगालियों का असंतोष बढ़ा। बंगाली संस्कृति को लेकर भाजपा की समझ की कमी ने ममता मुद्दा बनाकर भुनाया। बंगाल अपनी बेटी को बहुमत के साथ वापस लौट आया है और झटका लगा है ]िहन्दुत्ववादी सर्वेसर्वा भाजपा को।

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