Sunday, 11 July 2021

परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में क्या aबदल सकता है?

परिसीमन होने से जम्मू-कश्मीर में सियासी तस्वीर बदल सकती है? इस प्रक्रिया का असर राज्य पर किस तरह पड़ेगा, क्या इससे किसी एक क्षेत्र को अधिक लाभ मिलेगा? कुछ राजनीतिक दल परिसीमन प्रक्रिया के पूरे होने से पहले ही इसका विरोध कर रहे हैं। परिसीमन से राज्य में कितनी विधानसभा सीटें बढ़ने की संभावना है, यह सवाल तब उठे हैं जब ऐसी सहमति बनती दिख रही है कि जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद 370 के हटने के बाद राजनीतिक प्रक्रिया परिसीमन प्रक्रिया के पूरे होने के तुरन्त बाद शुरू हो सकती है। पीएम नरेंद्र मोदी की हाल में अध्यक्षता में जम्मू-कश्मीर के राजनेताओं की मीटिंग में भी सरकार की ओर से कहा गया कि प्रक्रिया जल्द पूरी हो जाएगी। पांच अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाते हुए उससे राज्य का दर्जा वापस लिया गया तो उसके बाद यह केंद्र शासित प्रदेशोंöजम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो भागों में बंट गया। इसके बाद केंद्र ने यहां नए सिरे से विधानसभा और संसद की सीटों को बनाने के लिए पिछले साल फरवरी में एक विशेष परिसीमन आयोग का गठन किया था। तीन सदस्यों के इस आयोग को सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज रंजन प्रकाश देसाई लीड कर रहे हैं। कमेटी को एक साल में रिपोर्ट देनी थी लेकिन कोविड के कारण ऐसा नहीं हो सका। कमेटी को अपनी रिपोर्ट देने के लिए एक साल का विस्तार और दिया गया है। पिछले कुछ दिनों से तमाम राजनीतिक दलों और अधिकारियों के साथ परिसीमन आयोग की लगातार मीटिंग हो रही हैं। माना जा रहा है कि इस साल अगस्त तक परिसीमन आयोग अपनी रिपोर्ट सौंप सकता है। परिसीमन क्या होता है? परिसीमन जनसंख्या के बदलते स्वरूप को देखते हुए जनप्रतिनिधित्व को भी नए सिरे से गठित करने की एक प्रक्रिया है। हर जनगणना के बाद परिसीमन की प्रक्रिया चलाई जा सकती है। जम्मू-कश्मीर का परिसीमन इसलिए देश के दूसरे हिस्सों से अलग था क्योंकि अनुच्छेद 370 के तहत ऐसा कराने का विशेषाधिकार राज्य विधानसभा के पास था। परिसीमन के आधार पर कम जनप्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों में संतुलन बनाने की कोशिश होती है। साथ ही आरक्षित सीटों के प्रतिनिधित्व को नए सिरे से तय करने का रास्ता खुलता है। जम्मू-कश्मीर में अंतिम बार परिसीमन 1995 में हुआ था। मौजूदा परिदृश्य में कश्मीर चुनावों में जो बेहतर प्रदर्शन करता है वह लाभ में रहता है। लेकिन नए परिसीमन के बाद अगर जम्मू के पक्ष में आंकड़े हो गए तो इसका असर पूरे इलाके की सियासत पर पड़ सकता है। कश्मीर की सीटों में लद्दाख के भी इलाके आते थे जो पहले ही अलग हो चुका है। पिछले दिनों जिला विकास परिषद के चुनाव में इसका साफ असर दिखा। जम्मू में भाजपा ने लगभग पूरी जीत हासिल की तो कश्मीर में गुपकार गठबंधन ने बाजी मारी। भाजपा का हमेशा से मानना रहा है कि अगर जम्मू के पक्ष में आंकड़ों का गणित आ गया तो जम्मू-कश्मीर में अकेले शासन करने का रास्ता खुल सकता है और ठीक यही आशंका कश्मीर के दलों में भी है और वह मौजूदा लाभ किसी भी सूरत में नहीं खोना चाहते हैं। यही कारण है कि परिसीमन प्रक्रिया पर अपनी सहमति दे या नहीं, इसे लेकर कई दिनों तक राजनीतिक दलों में अनिर्णय की स्थिति बनी रही। राजनीतिक दलों को भरोसा दिलाया गया है कि अगर उनके पास कोई तथ्य आधारित आपत्ति हो तो उसे जरूर सुना जाएगा।

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