Wednesday, 21 July 2021

राजद्रोह कानून को खत्म करने का समय आ गया है

सुपीम कोर्ट ने एक बार फिर अंग्रेजी हुकूमत के वक्त के राजद्रोह संबंधी कानून की निरर्थकता को रेखांकित करते हुए केन्द्र से पूछा है कि सरकार इसे रद्द क्यों नहीं कर देती? इससे पहले कई मामलों में फैसला सुनाते हुए अदालत ने स्पष्ट किया है कि सरकार की नीतियों की आलोचना करना देशद्रोह नहीं माना जाना चाहिए। लोगों की आलोचना जनतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है। हाल ही में विनोद दुआ मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इस बात पर खासा जोर दिया था। इस वक्त राजद्रोह कानून के तहत देश की विभिन्न जेलें में अनेक पत्रकार, समाजसेवी और आंदोलनकारी बंद हैं। इनमें से कुछ पत्रकारों ने किसान आंदोलन के समर्थन में लिखना शुरू किया था तो कुछ ने हाथरस में बलात्कार पीड़िता को मौत और फिर पशासन द्वारा रातों-रात उसके दाह-संस्कार से जुड़े तथ्य उजागर करने शुरू किए थे। इसी तरह भीमा कोरेगांव मामले में कई समाजसेवियें और बुद्धिजीवियों पर राजद्रोह का मुकदमा कर उन्हें जेलों में बंद कर दिया गया था। इस कानून को आवाज दबाने के लिए अमल में लिया जाता है। अंग्रेजों ने तो इस कानून को स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए बनाया था। लेकिन अब इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है। यह कानून बोलने की आजादी पर रोक के समान है। यह सरकार की गलत मानसिकता है। इस कानून और अन्य कानून की समीक्षा की जाने की आवश्यकता है। सरकार लोगों को निशाना बनाने के लिए इस पकार के कानून का दुरुपयोग कर सकती है। बोलने की आजादी पर अंग्रेजों के समय के कानून के साथ चिपककर रहना सरकार की थोथी मानसिकता है। आज सोशल मीडिया पर राज सरकार को कोसा जा रहा है। गाली-गलौच की जाती है उनके खिलाफ सरकार कोई एक्शन नहीं ले पा रही है। जबकि पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए राजद्रोह कानून को अमल में लिया जा रहा है, आश्चर्यजनक बात यह है कि अभी भी राजद्रोह कानून को खत्म करने में सरकार सक्षम नहीं है। जांच एंजेसी इस कानून का दुरुपयोग करती है। सरकारी अधिकारी किसी व्यक्ति को फंसाना चाहता है तो उपरोक्त कानून का सहारा लेता है। खास बात यह भी देखने में आई कि राजद्रोह के केस में पावधान तो है लेकिन सजा बहुत ही कम हो पाती है। राजद्रोह पर औपनिवेशक काल के विवादित दंडात्मक कानून के तहत 2014 से 2019 के बीच 326 मामले दर्ज किए गए जिनमें महज छह लोगें को सजा हुई। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि आईपीसी की धारा 124 (ए) राजद्रोह के अपराध का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया गया और उसने केन्द्र सरकार से पूछा कि वह अंग्रेजों द्वारा आजादी के आंदोलन को दबाने के लिए और महात्मा गांधी जैसे लोगें को चुप कराने के लिए इस्तेमाल किए गए पावधानों को खत्म क्यों नहीं करती? समय आ गया है कि सरकार अब अविलंब इस काले कानून को खत्म करे। देश में अंग्रेजों के जमाने में बने ऐसे काले कानून को खत्म करने का समय आ गया है।

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