Sunday, 11 July 2021

हथियार की बरामदगी सजा के लिए अनिवार्य नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक अभियुक्त की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए कहा कि एक आरोपी को दोषी ठहराने के लिए अपराध में इस्तेमाल किए गए हथियार की बरामदगी अनिवार्य शर्त नहीं है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने कहा कि मामूली विरोधाभास जो मामले की तह तक नहीं जाते हैं और/या विरोधाभास जो वास्तविक विरोधाभास न हों। ऐसे गवाहों के साक्ष्य को खारिज नहीं किया जा सकता और उस पर अविश्वास नहीं किया जा सकता। मामले में अभियुक्त को 28 जनवरी 2006 को हुई घटना में भीष्मपाल सिंह की हत्या के लिए आईपीसी की धारा 302/34 के तहत दोषी ठहराया गया था। अपील में अभियुक्त की ओर से मुख्य दलील यह थी कि फोरेंसिक बैलेस्टिक रिपोर्ट के अनुसार घटनास्थल से प्राप्त गोली बरामद बंदूक के बोर से मेल नहीं खाती है। इसलिए कथित बंदूक के इस्तेमाल की बात संदेहास्पद है। अत संदेह का लाभ संबंधित अभियुक्त को दिया जाना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने यह तर्प खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि पुलिस द्वारा आरोपी से बरामद बंदूक का इस्तेमाल हत्या के लिए नहीं किया गया हो सकता है। इसलिए हत्या के लिए इस्तेमाल किए गए वास्तविक हथियार की बरामदगी को नजरंदाज किया जा सकता है और इसे माना जा सकता है कि कोई बरामदगी हुई ही नहीं, लेकिन एक आरोपी को दोषी ठहराने के लिए अपराध में इस्तेमाल किए गए हथियार की बरामदगी एक अनिवार्य शर्त नहीं है। मामला यूपी के हाथरस का है।

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