Wednesday 21 July 2021

केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद, अश्विनी, राहुल गांधी की जासूसी

भारत समेत दुनिया के कई देशों में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, राजनीतिक नेताओं, एक्टिविस्टों की जासूसी का दावा किया गया है। दावा किया गया है कि इन लोगों के फोन को टेप करने के लिए इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप के हैकिंग सॉफ्टवेयर पेगासस का इस्तेमाल किया गया। दुनियाभर की सरकारों पर पत्रकारों और एक्टिविस्टों की जासूसी का आरोप हैं। भारत के 38 पत्रकारों के फोन टेप करने का दावा किया गया। दुनियाभर के 17 मीडिया संस्थानों की कंसोर्टियन ने दावा किया है कि दुनियाभर में सरकारें पत्रकारों और एक्टिविस्टों की जासूसी करा रही हैं। रविवार को पब्लिश हुई रिपोर्ट के मुताबिक भारत समेत कई देशों की सरकारों ने करीब 180 पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और एक्टिविस्टों की जासूसी की। द गार्जियन ने पेगासस स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर के डेटा का अध्ययन कर दावा किया है कि इस सूची में समाचार वेबसाइट द वायर के एक सह-संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और वरिष्ठ पत्रकार परजॉय गुहा ठाकुरता का नाम शामिल है। ठाकुरता के फोन को 2008 में हैक कर लिया गया था। गार्जियन की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि उस समय ठाकुरता इस बात की जांच कर रहे थे कि नरेंद्र मोदी सरकार कैसे फेसबुक का इस्तेमाल करके भारतीय लोगों के बीच ऑनलाइन गलत सूचना फैला रही है। सन 2019 में जब कैलिफोर्निया की कोर्ट में फेसबुक ने रहस्य खोला कि कई देशों में पेगासस स्पाइवेयर का प्रयोग कर उसके क्लाइंट्स के फोन की सभी जानकारियां ली जा रही हैं, जिसमें भारत भी था। तब सॉफ्टवेयर बनाने वाली इजरायली कंपनी एनएसओ ने इसे कुबूल किया, लेकिन कहा कि वह केवल संप्रभु देशों के खुफिया प्रतिष्ठानों को ही पेगासस देती है। भारत सरकार ने संसद में इस आरोप से इंकार किया है। कैलिफोर्निया की कोर्ट ने 16 जुलाई 2020 के अपने फैसले में फेसबुक द्वारा लगाए आरोप सही पाए। दुनियाभर की लोकतांत्रिक सरकारों के लिए यह एक बड़ा धब्बा था। पश्चिमी दुनिया के अखबारों ने खुलासा किया कि भारत सरकार अपने कुछ मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट के जजों, विपक्ष के नेताओं और दर्जनों पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के फोन इस स्पाइवेयर के जरिये टेप कर रही है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस मामले को भी विदेशी साजिश करार देकर कमजोर करने का प्रयास कर रही है। इंटरनेशनल मीडिया कंसोर्टियन के खुलासे और आरोप गंभीर हैं और आगे चलकर इन पर मुहर लग जाती है, तो सरकार पर कई सवाल खड़े होने लाजिमी हैं। अगर विदेशी मीडिया के खुलासे और आरोपों को सच मानें तो सवाल उठता है.... सुप्रीम कोर्ट के जज और सरकार के अपने मंत्रियों की जासूसी की नौबत क्यों आई? अगर केंद्रीय मंत्री संदिग्ध हैं तो देश सुरक्षित कैसे रह सकता है? विपक्ष को शक है कि सरकार की खुफिया एजेंसियों द्वारा इस तरह के सर्विलांस कहीं बड़े पदों पर बैठे लोगों को डराने और अपने अनुकूल व्यवहार करवाने के लिए तो नहीं किया गया है? संसद से लेकर सड़क तक बेचैनी है। उम्मीद है कि सच जल्द सामने आएगा और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

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