Saturday, 3 July 2021
चुनाव निरंकुश शासन से बचने की गारंटी नहीं
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने कहा है कि चुनावों के जरिये सत्ता में बैठे हुए लोगों को बदल पाने का अधिकार, निरंकुश शासन से बचे रहने की गारंटी नहीं है। अंग्रेजी अखबार `द टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए यह जरूरी है कि तर्पसंगत और अतर्पसंगत, दोनों तरह के विचारों को जगह दी जाए। दिन-ब-दिन होने वाली राजनीतिक चर्चाएं, आलोचनाएं और विरोधियों की आवाजें, एक अच्छी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं। इनका सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की खूबसूरती इसी में है कि इस व्यवस्था में आम नागरिकों की भी एक भूमिका है। अखबार की रिपोर्ट के अनुसार रमन्ना ने 17वें पीडी देसाई मेमोरियल लेक्चर को संबोधित करते हुए यह बातें कहीं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए। इसे विधायिका या कार्यपालिका द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता, क्योंकि अगर ऐसा किया गया तो कानून का शासन छलावा बनकर रह जाएगा। सोशल मीडिया के दबाव पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि नए मीडिया टूल जिनमें किसी चीज को बढ़ाचढ़ा कर बताने की क्षमता है, वह सही और गलत, अच्छे या बुरे और असली या नकली के बीच अंतर करने में असमर्थ है। इसलिए मीडिया ट्रायल मामलों को तय करने में मार्गदर्शक कारक नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि जजों को कभी भी भावुक राय से प्रभावित नहीं होना चाहिए। कोरोना महामारी पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमें आवश्यक रूप से रुक कर खुद से पूछना होगा कि हमने अपने लोगों की सुरक्षा और कल्याण के लिए कानून के शासन का किस हद तक इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि हमें निश्चित रूप से कम से कम यह विश्लेषण करने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए कि हमने क्या सही किया और कहां गलत किया।
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